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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूजा सामग्री नोट कर लें, जानें होलिका पूजा विधि

 

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surajvarta.in
धर्म-आस्था डेस्क

आज रविवार, 06 मार्च 2022 है। होली का त्योहार 18 मार्च 2022 को मनाया जाएगा. होली के पहले दिन को होलिका दहन होता है. होलीका दहन 17 मार्च को होगा.

होली का त्योहार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है. जानना चाहते हैं कि इस साल होली कब है तो बता दें कि होली का त्योहार 18 मार्च 2022 को मनाया जाएगा. ज्यादातर जगहों पर होली दो दिन मनाई जाती है. होली के पहले दिन को होलिका दहन होता है. होलीका दहन 17 मार्च को होगा. इस दिन होलिका की पूजा-अर्चना की जाती है. वहीं दूसरे दिन पूरे जोश-उत्साह के साथ रंग-अबीर वाली होली मनाई जाती है. बता दें कि होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाता है.

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इस साल 10 मार्च 2022 से होलाष्टक लगेगा। होलाष्टक के दिन कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते हैं. होली से पहले होलिका पूजा को काफी महत्वपूर्ण माना गया है. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि, नियम के बारे में डिटेल में जानें.

*होलिका दहन पूजा सामग्री*
एक लोटा जल, गाय के गोबर से बनी माला, अक्षत, गन्ध, पुष्प, माला, रोली, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, एवं बताशे, गुलाल, नारियल, गेंहू की बालियां.

*होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है?*
होलिका दहन बृहस्पतिवार, मार्च 17, 2022 को
होलिका दहन मुहूर्त - 09:06 शाम से 10:16 शाम
अवधि - 01 घण्टा 10 मिनट्स
रंगवाली होली शुक्रवार, मार्च 18, 2022 को

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - मार्च 17, 2022 को 01:29 शाम बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त - मार्च 18, 2022 को 12:47 शाम बजे

*होलिका दहन हिन्दु मध्य रात्रि के बाद*

वैकल्पिक मुहूर्त- हिन्दु मध्य रात्रि के बाद - 01:12 सुबह से 06:28 सुबह, मार्च 18
अवधि - 05 घण्टे 16 मिनट्स

- बनारस के पण्डितों एवं उत्तर भारत के अन्य लोगों द्वारा दूजे मुहूर्त का अनुसरण किया जाता है जिसके अनुसार अगर मध्य रात्रि के बाद भी भद्रा प्रचलित हो तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा की जाती है और उसके पश्चात होलिका दहन किया जाता है.

*कैसे करें होलिका पूजा ?*
सभी पूजन सामग्री को एक थाली में रख लें साथ में जल का लोटा भी रखें.

पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं. उसके बाद पूजा थाली पर और अपने आप पानी छिड़कें और 'ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु' मंत्र का तीन बार जाप करें.

अब अपने दाएं हाथ में जल, चावल, फूल और एक सिक्का लेकर संकल्प लें.

फिर दाहिने हाथ में फूल और चावल लेकर गणेश जी का स्मरण करें.

गणेश पूजा के बाद देवी अंबिका का स्मरण करें और 'ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि' मंत्र का जाप करें.

मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर देवी अंबिका को सुगंध सहित अर्पित करें.

इसके बाद अब भगवान नरसिंह का स्मरण करें. मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर भगवान नरसिंह को अर्पित करें.

इसके बाद अब भक्त प्रह्लाद का स्मरण करें. फूल पर रोली और चावल लगाकर भक्त प्रह्लाद को चढ़ाएं.

अब होलिका के आगे खड़े हो जाएं और अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना करें. होलिका में चावल, धूप, फूल, मूंग दाल, हल्दी के टुकड़े, नारियल और गाय के गोबर से बनी माला जिसे बड़कुला या गुलारी भी कहते हैं होलकिा में अर्पित करें.

अब होलिका की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत की तीन, पांच या सात फेरे बांधे. इसके बाद होलिका के ढेर के सामने लोटे के जल को पूरा अर्पित कर दें.
इसके बाद होलिका दहन किया जाता है. लोग होलिका के चक्कर लगाते हैं. जिसके बाद बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है. लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं और अलाव में नई फसल चढ़ाते हैं और भूनते हैं. भुने हुए अनाज को होलिका प्रसाद के रूप में खाया जाता है.

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