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पाठा क्षेत्र में पानी का संकट गहराया

 तालाबों व पोखरों का पानी सूखने से भटक रहे पशु


Svnews

मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी)

मेजा तहसील के गांव-चन्द्रहास,भोजपुरवा, नेवादा,भइयां,पथरा,हड़गड़,दुघरा,दरी सहित सैंकड़ों राजस्व ग्रामों के अधिकांश तालाबों में पानी नहीं है। शासन द्वारा जल संवर्धन की दिशा में बार-बार प्रयास  के बाद भी जमीनी सच्चाई यह है कि लावारिश की तरह दिखाई दे रहे हैं ।कहीं अतिक्रमण युक्त हैं,तो कहीं पानी विहीन। कुछ जो तालाब मत्स्य पालन हेतु पट्टे हुए हैं, वहां पर भी मछली मारने की नीयत से पानी निकाल दिया गया है । हालांकि ऐसे तालाबों की संख्या बहुत ही कम है , लगभग नब्बे प्रतिशत तालाब आज भी ऐसे हैं जो कि वजूद की बाट जोह  रहे हैं। आश्चर्यजनक ही लगता है कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अतिक्रमण मुक्त आदेश जारी होने के बावजूद धड़ल्ले से तालाब अभी भी अवैध अतिक्रमण के संकट से जूझ रहे हैं। 

कई तालाबों पर धड़ल्ले से पक्के निर्माण भी हो रहे हैं। विभागीय सम्बंधित राजस्व कर्मियों का कहना है कि प्रशासनिक कार्रवाई कर दी गयी है बावजूद इसके निर्माण कार्य नहीं रूक पा रहे हैं। ग्रामीणों के बीच जागरूकता विषयक कार्यक्रमों को संचालित करने वाले जनसुनवाई फाउंडेशन के जनपद प्रभारी अधिवक्ता विवेक सिंह "रानू"का कहना है कि नहर से नाली का जुड़ाव न होना,तथा पानी निकास हेतु पाइप न लगने की वजह से  तालाबों में पानी का अभाव रहता है। तालाबों पर बनाए जा रहे पक्के मकान पर निर्माण कर्तावों द्वारा कहा गया कि प्रधानमंत्री आवास बनाने के लिए पैसे आने के बाद शंख,आवासीय भूखंड का पट्टा न मिलने की स्थिति में पुस्तैनी रूप में आबादस्थल तालाब पर निर्माण किया जा रहा है। जबकि ग्राम प्रधानों का आरोप है कि पट्टा पत्रावली तहसील में लम्बित होने की वजह से आवासीय भूखंड की पैमाइश अधर में है। संबंधित ग्राम के ग्रामीण बन्धू आदिवासी,नचकू, सन्तोष, रामपति,आदि ने बताया कि विगत वर्षों में आवासीय भूखंड की प्राप्ति हेतु ग्रामीणों द्वारा सत्याग्रह आन्दोलन तक किया गया, जिसके परिणामस्वरूप मण्डलाधिकारी प्रयागराज एवं जिला अधिकारी प्रयागराज द्वारा तालाबों पर बसे भूखंड विहीन लोगों को आवासीय भूखंड आवंटित हेतु आदेश किया गया था किन्तु ग्राम पंचायत की पत्रावली तहसील स्तर से स्वीकृत नहीं हो पायी।इधर सिंचाई के लिए तालाबों व पोखरों का पानी प्रयोग किए जाने से गर्मी से पहले ही सुख जाते हैं,जिससे पशुओं के सामने पीने के लिए पानी का घोर संकट सुरसा की भांति मुंह बाए खड़ी हो जाती है और फिर जंगली पशु ग्रामीण इलाको की ओर रुख करना शुरू कर देते है,जिससे ग्रामीणों को उनसे दो चार होना पड़ता है।फिलहाल शासन को चाहिए कि समय रहते तालाबों व पोखरों को भरने के लिए संबंधित प्रधानों को निर्देश देना चाहिए।

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