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चाचा शिवपाल को साथ रखने में अखिलेश यादव क्यों नहीं दिखा रहे दिलचस्पी? समझिए सियासत

SV News

लखनऊ (राजेश सिंह)। अब लगभग-लगभग यह बात तय दिखने लगी है कि देश के सबसे ताकतवर समझे जाने वाले यूपी के यादव परिवार से एक और शख्स की देर-सवेर बीजेपी में एंट्री होने वाली है। यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव हैं। जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वह उस नींव का पत्थर हैं, जिसके ऊपर मुलायम सिंह यादव की विशाल शख्सियत खड़ी है। शिवपाल की बीजेपी में जाने की जो गुंजाइश बनती दिख रही है, वह उतना नहीं चौकाती, जितना यह बात चौंकाने वाली है कि उन्हें समाजवादी पार्टी में बनाए रखने में अखिलेश यादव कोई दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव के वक्त जब अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी का 'सिंबल' देकर चुनाव लड़ाया था, तब ऐसा लगने लगा था कि यादव परिवार में एका हो गया है। लेकिन नतीजों के बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को पार्टी विधायकों की बैठक में नहीं बुलाया, कहा वह तो सहयोगी संगठन हैं। जब सहयोगी संगठन की बैठक होगी, उसमें बुलाएंगे। सहयोगी संगठनों की जिस दिन बैठक थी, उसमें उन्हें सूचना देने में काफी देर की गई, जिसकी वजह से वह बैठक में शामिल नहीं हुए। जिस दिन शिवपाल यादव योगी से मिलने के लिए पहुंचे तो समाजवादी पार्टी कार्यालय से इसकी जानकारी देने के लिए अखिलेश यादव को कॉल की गई तो बताया जाता है कि उनका जवाब था 'उनको तो वहीं जाना ही था।' 2012 में समाजवादी पार्टी को बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार शिवपाल सिंह यादव भी थे। लेकिन जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने पर अपनी रजामंदी दे दी तो यादव परिवार में यहीं से बिखराव की शुरुआत हुई। शिवपाल विधायकों की उस बैठक में शामिल होने को राजी नहीं हो रहे थे, जिसमें अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री चुना जाना था। बाद में मुलायम सिंह यादव के दबाव में वह उस बैठक में शामिल हुए और उन्हीं को अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के चुने जाने का प्रस्ताव करना पड़ा। नाम न छापने की शर्त पर अखिलेश यादव के एक करीबी कहते हैं, 'अखिलेश भैया को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए चाचा शिवपाल यादव की तरफ से जिस तरह की कोशिशें की गईं, उन्हें कदम दर कदम अपमानित करने के लिए जिस तरह से कदम उठाए, उस अपमान को अखिलेश भैया भूल नहीं पा रहे हैं।' यह सही है कि देश की अकेली यह ऐसी मिसाल रही थी, जिसमें सरकार चला रहे एक मुख्यमंत्री (अखिलेश यादव) को अचानक उनकी पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया गया हो। अध्यक्ष के रूप में उस वक्त मुलायम सिंह यादव ने जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित करने का ऐलान किया था, वह शिवपाल यादव ने आयोजित की थी। अमर सिंह भी उस वक्त शिवपाल यादव को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में लगे थे। यह अलग बात है कि अखिलेश यादव अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो गए थे। पार्टी से निकाले जाने की घोषणा के बाद भी बहुमत में पार्टी के विधायक उनके साथ खड़े थे। बाद में चुनाव आयोग ने भी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी को ही असली समाजवादी पार्टी करार दिया था। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिवपाल सिंह यादव के साथ जो भी विधायक थे, उनमें से किसी एक को भी अखिलेश यादव ने 2022 में टिकट नहीं दिया। अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल सिंह यादव को साथ रखने में फायदा कम दिख रहा है और नुकसान की उम्मीद ज्यादा है। 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से एक बात तो साबित हो गई है कि समाजवादी पार्टी को जो बेस वोट मुलायम सिंह यादव के जमाने से चला आ रहा है (मुस्लिम+यादव), उसने अखिलेश यादव को अपना नेता मान लिया है। अखिलेश यादव को M+Y वोट के लिए शिवपाल यादव की कोई जरूरत नहीं दिखती। दूसरी बात, पार्टी पर उनका पूरी तरह से नियंत्रण हो चुका है, ऐसे में वह अब शिवपाल यादव के लिए फिर से स्पेस बनने की कोई गुंजाइश नहीं बनने देना चाहते। कहा जाता है कि पार्टी में शिवपाल सिंह यादव ने जो पकड़ बनाई, वह पहले मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई के रूप में बनाई, बाद में अखिलेश यादव के चाचा के रूप में। जब समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में चलती थी तो शिवपाल यादव को 'भैया' का खिताब हासिल था। मुलायम सिंह यादव तक सभी लोगों का पहुंचना आसान नहीं होता इस वजह से शिवपाल सिंह यादव समानांतर 'पावर सेंटर' बन गए थे। फिर जब 2012 में अखिलेश यादव सीएम हुए तो शिवपाल यादव 'भैया' से 'चाचा' में बदल गए। जो लोग अखिलेश यादव तक पहुंच नहीं बना पा रहे थे, उन सबके लिए 'चाचा' पावर सेंटर बन चुके थे। अखिलेश यादव को लगता है कि शिवपाल यादव अगर उनके साथ रहे तो उन्हें पार्टी के अंदर अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिल जाएगा। 'चाचा' की शक्ल में वह 'पावर सेंटर' में बदल सकते हैं। इसलिए वह पहले दिन से स्थापित करने की कोशिश में रहे कि शिवपाल यादव का समाजवादी पार्टी के साथ बस उतना ही रिश्ता है, जितना ओमप्रकाश राजभर और पल्लवी पटेल का है। इसलिए उन्होंने शिवपाल सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के विधायकों की बैठक में शामिल करने के बजाए सहयोगी संगठन के नेता के रूप में आमंत्रित किया था।

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