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नवरात्रि के दूसरे दिन हुई ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा - अर्चना

 


मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी)

शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा -अर्चना हुई। देवी के भक्तों ने पूरे विधि विधान से पूजा के बाद आरती का कार्यक्रम चला।मेजा खास स्थित बैंक ग्रैंड में भव्य दुर्गा पांडाल में सक्षम श्रीवास्तव के नेतृत्व में भक्तों ने दूसरे दिन भव्य आरती का कार्यक्रम आयोजित किया।बता दें कि नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है -नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिन के दौरान,शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और दसवां दिन दशहरा मनाया जाता है। माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप देवी ब्रह्मचारिणी का हैं। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या हैं। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी हैं-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद,तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता हैं।गौरतलब है कि

अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर में पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इस दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हज़ार वर्ष उन्होंने केवल फल, मूल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पश्चात तीन हज़ार वर्षों तक केवल ज़मीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वे भगवान शिव की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया और कई हज़ार वर्षों तक वे निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम 'अर्पणा' भी पड़ गया। कई हज़ार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो उठा,उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज़ दी 'उ मा'। तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता,ऋषि,सिद्धगण,मुनि सभी देवी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वर में कहा-'हे देवी!आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की जैसी तुमने की हैं। तुम्हारे इस आलोकित कृत्य की चारों ओर सराहना हो रही हैं। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन  परिपूर्ण होगी।भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति रूप में प्राप्त अवश्य होंगे।अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हे बुलाने आ रहे हैं।'

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विद्वानों के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप,त्याग,वैराग्य,सदाचार,

संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती हैं।जीवन के कठिन संघर्षों में भी व्यक्ति अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता।मॉ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती हैं।लालसाओं से मुक्ति के लिए माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान लगाना अच्छा होता हैं।देवी की "या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।"इस मंत्र के जाप से सभी का कल्याण होता है।

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