Ads Area

Aaradhya beauty parlour Publish Your Ad Here Shambhavi Mobile

चाइनीज झालरों का प्रचलन तेज, मिट्टी का दीपक बनाने वाले हुये बदहाल

SV News

मेजा, प्रयागराज (श्रीकान्त यादव)। ईंधन और मिटटी महंगी हो जाने से दीपक बनाने का धंधा मंदा हो गया है। मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम होने से कुम्भकारों के लिए ये काम घाटे का सौदा साबित हो रहा है। दीपावली पर दीप मालिका सजाने की पंरपरा काफी पुरानी है। इस मौके पर कुंभकार पहले दीपक बनाकर बेचने के बाद अच्छा मुनाफा कमा लेते थे। अब ईंधन व मिट्टी मंहगी हो जाने सहित इलेक्ट्रानिक झालरों का चलन बढ़ने से अब दियों का धंधा पहले से काफी मंदा हो गया है। देखा जाए तो आधुनिकता की चकाचौंध में लोग घरों में दीपक की बजाय झालरें व बल्ब जलाना ज्यादा पसंद करते हैं, पर वे शायद ये नहीं जानते कि शास्त्रों के मुताबिक दीपावली में मिट्टी के दीपक जलाने और मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करने का विशेष महत्व है। अब कुंभकार करवा चौथ के बाद से जैसे-तैसे महंगाई झेलकर दीपक बनाने को काम तेज कर देते हैं। इस बार कुंभकारों ने कम संख्या में दीपक बनाए हैं उन्हें इस बात का डर है कि यदि सारे दीपक नहीं बिके तो साल भर इन्हें पूछने वाला कोई नहीं होगा। महंगी मिट्टी व मंहगा ईंधन लगाकर तैयार दीपक की बिक्री से खास मुनाफा नहीं होता है। मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम होने से युवा इस व्यवसाय में जुडने से बचते हैं। बाजार में दीपावली के एक सप्ताह पहले से मिट्टी के दीपक की बिक्री शुरू हो जाती है। इस बार बाजार में 20-30 रुपये दर्जन दीपक बिक रहे हैं।

SV News

बड़ी मेहनत से तैयार होते हैं दीपक

दीपावली में लोगों के घरों को रोशन करने वाले मिट्टी के दीपक बड़ी मेहनत से तैयार होते हैं। विडंबना तो ये है कि पसीना बहाकर दीपक तैयार करने वाले कारीगरों को उनकी मेहनत व लागत की कीमत भी नहीं मिल पाती है। दीपक तैयार करने वाले कुंभकार लल्लू प्रजापति व श्रवण ने बताया कि दीपावली पर दीपक की मांग को देखते हुए चार महीने पहले से ही इन्हें बनाने का काम शुरू हो जाता है। लेकिन इस बार बारिश की वजह से 10-15 दिनो पूर्व से तैयारी शुरू हुआ है। दीपक के लिए बिना कंकड़ वाली काली मिट्टी खरीदते हैं जो काफी मंहगी पड़ती हैं। इस मिट्टी को धूप में सुखाकर छानते हैं और गडढ़े में डालकर फुलाते हैं। मिट्टी तैयार होने के बाद उससे दीपक बनाकर सुखाकर भट्ठे में पकाते हैं। इस प्रक्रिया में करीब एक माह का वक्त लग जाता है। लल्लू का कहना है कि मिटटी के दीपक बनाने का धंधा यदि इसी तरह से मंदा होता गया तो आने वाले कुछ सालों में यह काम बंद हो जाएगा।

إرسال تعليق

0 تعليقات

Top Post Ad