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अध्यात्म साधना और वैराग्य सांसारिक त्याग - शंभु शरण

 दूसरे दिन भगवान के विभिन्न अवतार, सुकदेव व परीक्षित जन्म की कथा हुई


निबैया में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में उमड़ी भीड़



मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी/राजेश गौड़)

 उरुवा ब्लाक के निबैया गांव में ओ पी शुक्ला विकास शुक्ला के निवास पर चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ के दूसरे दिन कथा व्यास आचार्य  शम्भु शरण महाराज ने भगवान के विभिन्न अवतार, शुकदेव जन्म, परीक्षित जन्म और सुकदेव आगमन की कथा सुनाई। भगवान के विभिन्न अवतारों के बारे में विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हुए कहा कि उनके 24 अवतारों में 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं।   10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार  मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार माने जाते हैं।कल्कि अवतार अभी बाकी है। कथा व्यास ने श्रोताओं को संगीत मय कथा सुनाते हुए कहा कि शुकदेव महाभारत काल के मुनि थे। वे वेदव्यास जी के पुत्र थे। वे बचपन में ही ज्ञान प्राप्ति के लिये वन में चले गये थे। इन्होंने ही परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण की कथा सुनायी थी।शुक देव जी ने व्यास जी से महाभारत भी पढा था और उसे देवताओं को सुनाया था। ये बहुत कम अवस्था में ही ब्रह्मलीन हो गये थे।


श्रोताओं को कथा सुनाते हुए कहा कि

शुकदेव के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि ये महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे और यह बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे। एक बार भगवान शिव, पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गयी और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक ने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब उन्होंने शुक को मारने के लिये दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा। शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा। भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आया और सूक्ष्मरूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गया। वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाये।व्यास ने कहा गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था।उन्होंने श्रोताओं को कथा सुनाते हुए कहा कि

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जन्म लेते ही ये बाल्य अवस्था में ही तप हेतु वन की ओर भागे, ऐसी उनकी संसार से विरक्त भावनाएं थी। परंतु वात्सल्य भाव से रोते हुए श्री व्यास जी भी उनके पीछे भागे। मार्ग में एक जलाशय में कुछ कन्याएं स्नान कर रही थीं, उन्होंने जब शुकदेव जी महाराज को देखा तो अपनी अवस्था का ध्यान न रख कर शुकदेव जी का आशीर्वाद लिया,लेकिन जब शुकदेव के पीछे मोह में पड़े उनके पिता श्री व्यास वहां पहुंचे तो सारी कन्याएं छुप गयीं। ऐसी सांसारिक विरक्ति से शुकदेव जी महाराज ने तप प्रारम्भ किया ।।भगवान श्री शुकदेव जी ने पहली बार भागवत शुकतीर्थ मे सुनाई थी।परीक्षित के जन्म के बारे में विस्तार से बताते हुए कथा व्यास ने कहा कि महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र से लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ था। वह जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुकदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुकदेव का आगमन हुआ। कथा के अंत में राम दरबार की सुंदर झांकी प्रस्तुत की गई, जिसमें राम के रूप में आस्था तिवारी,लक्ष्मण के रूप में तृप्ति पांडेय,सीता के रूप में खुशी शुक्ला और कृष्णा मिश्र हनुमान के रूप में दर्शन दिया।कथा के दौरान मुख्य यजमान सपत्नीक लालजी शुक्ल,सपत्नीक श्यामजी शुक्ल(शुक्ला बंधु)के अलावा समाजसेवी नित्यानंद उपाध्याय,सिद्धांत तिवारी,आद्या प्रसाद,उमेश चंद्र,राजा गुरु,अशोक शुक्ला,प्रमोद शुक्ला,मधुकर तिवारी,पिंटू तिवारी,धीरज दुबे, विष्णु कांत शुक्ला,विश्वास शुक्ला और

 हिमांशु आदि मौजूद रहें।

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