प्रयागराज (राजेश सिंह)। संगम से कूछ दूरी पर यमुना नदी के तट पर स्थित मनकामेश्वर महादेव मंदिर हैं। वैसे तो मंदिर में पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की कतार लगती है लेकिन शिवरात्रि एवं सावन के सोमवार को रुद्राभिषेक एवं पूजन का विशेष महत्व है। इसलिए इस दौरान भक्तों की लंबी कतार लगती है। महात्म है कि श्रद्धापूर्वक पूजन से आदि काल से मंदिर में बिराजे भगवान रुद्र हर मनोकामना की पूर्ति करते हैं। वन गमन के समय प्रयाग प्रवास के दौरान भगवान राम ने माता सीता के संग रास्ते की हर बाधा को दूर करने की कामना के साथ रुद्राभिषेक किया था। फिर चित्रकूट गए थे।
मनकामेश्वर महादेव की गिनती दुर्लभ शिवलिंगों में होती है। धार्मिक मान्यता है कि यहां शिवलिंग स्वयंभू प्रकट हुए हैं। कामदेव को भस्म करने के बाद भगवान शंकर यहां मनकामेश्वर के रूप में विराजमान हो गए। मंदिर के महंत ब्रम्हचारी श्रीधरानंद बताते हैं कि शिव पुराण, पद्म पुराण व स्कंद पुराण में इस मंदिर का उल्लेख कामेश्वर तीर्थ के नाम से है। त्रेता युग में भगवान राम वनवास में जाते समय जब प्रयाग आए तो अक्षयवट के नीचे विश्राम करके इस शिवलिंग का जलाभिषेक किया। मनकामेश्वर महादेव को सच्चे हृदय से एक लोटा जल में बेलपत्र डालकर अर्पित करने से मनुष्य को दैहिक, दैविक व भौतिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
मंदिर परिसर में ऋणमुक्तेश्वर महादेव का भी प्राचीन शिवलिंग है। मान्यता है कि इनकी स्थापना त्रेतायुग में भगवान सूर्यदेव ने की। इनका अभिषेक करने वाले को समस्त ऋणों से मुक्ति मिल जाती है। परिसर में सिद्धेश्वर महादेव का शिवलिंग भी विराजमान हैं। रुद्रावतार कहे जाने वाले बजरंगबली की दक्षिणमुखी मूर्ति भी यहां पर है। भैरव, यक्ष और किन्नर भी यहां पर विराजमान हैं। धार्मिक मान्यता है कि जहां पर शिव विराजमान होते हैं वहां पर माता पार्वती का भी वास होता है। ऐसे में यहां पर दोनों के दर्शन का लाभ श्रद्धालुओं को प्राप्त होता है।
भोले बाबा के दर्शन-पूजन के लिए वैसे तो यहां पर रोज शिवभक्तों की भीड़ आती है लेकिन शिवरात्रि के दिन एवं सावन माह में श्रद्धालुओं की संख्या में खासा बढ़ोत्तरी हो जाती है। शिवरात्रि, सावन के सोमवार, प्रदोष और खास तिथियों पर तो श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती है और व्यवस्था बनाए रखने के लिए फोर्स की तैनाती की करनी पड़ती है। भोर से ही शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ जुट जाती है। रुद्राभिषेक आदि धार्मिक अनुष्ठान मंदिर परिसर में संपन्न कराए जाते हैं। कुंभ, अर्द्धकुंभ और माघ मेला के दौरान भी यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं।
इस बार शिवरात्रि प्रदोष और शनिवार को पड़ रही है। इस दुर्लभ संयोग से महात्म और बढ़ गया है। ऐसे में शिवरात्रि के दिन खासा भीड़ होने की उम्मीद है। मंदिर प्रशासन की ओर से शिवरात्रि के लिए विशेष तैयारी की गई है। ब्रह्मïचारी श्रीधरानंद बताते हैं कि सुबह चार बजे मंगला आरती होगी। इसके बाद मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा। दिन मेंं 12 बजे भोग लगेगा। इसके बाद रात में 10 बजे श्रृंगार आरती होगी। शिवरात्रि के दिन चांदी से श्रृंगार होगा। रात में चार पहर का रुद्राभिषेक होगा। इसके अलावा पूरे दिन फलाहार का वितरण किया जाएगा।
आगामी सावन महीने के बीच में पुरुषोत्तम मास भी पड़ रहा है। इसकी वजह से सावन इस बार 59 दिन का होगा। मनकामेश्वर मंदिर के महंत ब्रह्मïचारी श्रीधरानंद बताते हैं कि पुरुषोत्तम मास में भगवना विष्णु और शिव के पूजन का विशेष महत्व है। इससे सावन का महात्म भी बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि सावन के सोमवार को सुबह चार बजे मंगला आरती होगी। रात में 10 बजे चांदी से भगवान का श्रृंगार होगा। फिर आरती होगी।
सामान्य दिनों में पांच बजे मंगला आरती के बाद मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल जाता है। रोजाना दिन में 12 बजे भगवान को भोग लगता है। इस दौरान मंदिर कुछ देर के लिए भक्तों के लिए बंद रहता है। फिर रात में नौ बजे श्रृंगार आरती होती है। भगवान का श्रृंगार फूलों से किया जाता है।