Ads Area

Aaradhya beauty parlour Publish Your Ad Here Shambhavi Mobile

ग्रामीणों की जनपंचायत में सामाजिक सरोकारों पर हुई रोचक परिचर्चा

 पति नहीं है पत्नी का मालिक , तब हाय-तौबा क्यों?


विवाहेतर संबंधों पर जरा फिर गौर करें हुजूर...


Svnews

मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी)

इस समय उत्तर प्रदेश की एक महिला एसडीएम और उसके चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पति का मामला भरपूर चर्चा में बना हुआ है। यह विमर्श को विवश कर रहा है। प्रश्न यह है कि इस पीड़ित पति को अब कानून से क्या न्याय मिलेगा? न तो वह पत्नी द्वारा किये जा रहे व्यभिचार के विरुद्ध पत्नी को कोई दंड दिला सकता है, सिवाय तलाक के, और न ही पत्नी के व्यभिचारी साथी को कटघरे में खड़ा कर सकता है।

दरअसल स्त्री और पुरुष के बीच विवाहेतर संबंध यानी व्याभिचार से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बना दिया। इस निर्णय के बाद पत्नी को विवाहेतर संबंधों की खुली छूट मिल गई। व्याभिचार अब कानूनी अपराध नहीं रहा है। 

बहरहाल, यह बेचारा पति रो-रोकर मीडिया के सामने गुहार लगाते दिखा कि उसकी एसडीएम पत्नी का किसी दूसरे पुरुष अधिकारी के साथ संबंध स्थापित हो गया है। दो छोटी बेटियां भी हैं और अब परिवार टूटने की ओर है। 

हुआ यह कि पति की इस मार्मिक गुहार के सामने आने पर समाज में व्यापक विमर्श शुरू हो गया। कुछ ने कहा कि यदि 'नारी सशक्तीकरण' का यही सिला मिलना है तो कोई पति अपनी पत्नी को घर की दहलीज से बाहर पैर आखिर क्यों निकालने दे? समाचार तो यह भी आए कि कुछ सौ पतियों ने नौकरी के लिए पढ़ाई कर रही अपनी पत्नी की पढ़ाई तक छुड़वा डाली। भले जो भी हुआ हो, किंतु मध्यम वर्ग में इससे जमकर मंथन चल पड़ा‌।

इस पीड़ित पति को सोशल मीडिया पर जिस प्रकार से व्यापक सहानुभूति प्राप्त हुई उसने परिदृश्य को बदल कर रख दिया। अब पीड़ित पतियों का दर्द और लोकलाज की चादर में ढका रहने वाला समाज का यह भीषण कोढ़ खुलकर सामने आ रहा है। यद्यपि हर दूसरे दिन समाचार पढ़ने को मिल जाते थे कि पत्नी ने प्रेमी संग मिलकर की पति की हत्या या पति और बच्चों को उतारा मौत के घाट..। किंतु जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के इस पीड़ित पति ने रो-रोकर अपनी बेबसी को उजागर किया, वैसा अब तक नहीं होता था। 

एक पहलू यह भी है कि मध्यम वर्ग इस कोढ़ को उघाड़ कर दिखाने का साहस कभी नहीं कर सका था, जो अब शुरू हो गया है। अब तक इसे उच्च और निम्न वर्ग की  समस्या के रूप में आंक कर मध्यम वर्ग चादर तले खुजाता आया था। अब खुलकर खुजाने का समय आ गया है। 

विवाहेतर संबंधों की बात करें तो अभिनेताओं से लेकर राजनेताओं तक, हाई सोसायटी का चलन मानकर समाज इसे चटखारे लेकर पढ़ता था, किंतु ऐसी हाय-तौबा पहली बार मची है जब मध्यम वर्ग का मसला आम हो गया। 

ऐसी हाय-तौबा तब क्यों नहीं मची जब एक विख्यात टीवी पत्रकार ने पति को तलाक दिये बिना एक विख्यात राजनेता से मंदिर में विवाह कर लिया था। तब पीड़ित पति ने उस नेता के विरुद्ध जिस कानून के अंतर्गत शिकायत दर्ज कराई थी, वह कानून अब नहीं रहा।

अब थोड़ा पीछे चलते हैं और समझते हैं कि क्या था व्याभिचार संबंधी वह कानून, जिसे रद कर दिया गया और तब सुप्रीम कोर्ट व सरकार ने आखिर क्या मंथन किया था?वह कानून डेढ़ सौ साल पुराना था। इसके तहत अगर कोई पुरुष किसी दूसरी विवाहिता के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर पुरुष को उक्त कानून के तहत अपराधी माना जाता था। ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल का कारावास और अर्थदंड या दोनों का प्रावधान था।इसे रद करने संबंधी याचिका पर निर्णय देते हुए न्यायालय ने कहा था कि धारा 497 महिला के सम्मान के विरुद्ध है। स्त्री की देह पर उसका अपना अधिकार है, इससे समझौता नहीं किया जा सकता है और न ही उस पर किसी प्रकार की शर्तें थोपी जा सकती हैं। महिला को समाज की इच्छा से सोचने को नहीं कहा जा सकता। पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है...।

न्यायालय ने कहा था कि यह कानून महिला की यौन इच्छाओं को रोकता है और इसलिए यह असंवैधानिक है। महिला को विवाह के बाद यौन इच्छाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है...। 

न्यायालय ने केंद्र सरकार से जब पक्ष रखने को कहा तो सरकार ने उक्त कानून को आवश्यक बताया था‌। तर्क दिया था कि व्याभिचार को अपराध की श्रेणी में रखा जाना विवाह की पवित्रता को बचाए रखने के लिए आवश्यक है। ऐसा न होने पर विवाह संस्था और परिवार नष्ट हो जाएगा। 

बहरहाल, पश्चिम या विकसित देशों की नकल करना भारत में नया चलन नहीं है। विकसित देशों में यह मान लिया गया है कि दो वयस्कों के बीच सहमति से होने वाला यौन संबंध गलत या अनैतिक तो हो सकता है, किंतु इसे अपराध नहीं ठहराया जा सकता। अब प्रश्न यह है कि क्या भारतीय समाज, विशेषकर मध्यवर्ग, इस व्यवस्था को आत्मसात करने को तैयार है? सोशल मीडिया पर जिस प्रकार से पीड़ित पति को सहानुभूति मिली, उसे देखकर तो ऐसा नहीं लगता है कि कभी भी स्वीकार करेगा। तब प्रश्न यह कि क्या समाज को अपना कोई कानून स्वयं बनाना पड़ेगा?

सामाजिक संस्था जनसुनवाई फाउंडेशन के प्रदेश प्रभारी अधिवक्ता कमलेश मिश्र का कहना है कि ग्रामीण समाज में, जहां विवाह संस्था को धर्म व समाज का मूल आधार आंका जाता है, वहां व्याभिचार के लिए कतई कोई स्थान नहीं है। परिवार के टूटने का सबसे बड़ा दुख मासूम बच्चों को झेलना पड़ता है। मां ही बच्चों की प्राथमिक आवश्यकता होती है और यह उसका बुनियादी दायित्व है कि बच्चों का भरपूर भावनात्मकपालन-पोषण करे। ऐसी स्थिति में पत्नी को, जो कि एक मां भी है, उसे व्याभिचार की छूट कैसे दे दी जाए। अतः ऐसी दशा में ऐसी महिला को पति का कम जबकि बच्चों का घोर अपराधी मानते हुए कठोरतम दंड का प्रावधान अवश्य किया जाना चाहिए। सरकार को इस विषय में पुनः ठोस कदम उठाने पर विचार करना होगा।

إرسال تعليق

0 تعليقات

Top Post Ad