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जानें क्यों भारत से भिड़ना चाहता है पाकिस्तान

 


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नई दिल्ली। भारत को आजाद हुए 75 साल गुजर गए हैं। लेकिन वर्तमान दौर में भी भारत के समक्ष अपने साथ-साथ दुनिया से संबंधित हजारों चुनौतियां खड़ी हैं। भारत को समय-समय पर युद्ध का सामना भी करना पड़ा है। 1947, 1965, 1971 या वर्ष 1999 में हुआ कारगिल का युद्ध भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को वहां से युद्ध लड़कर भगा दिया। पाकिस्तानी सेना का पुराना इतिहास रहा है। इसके साथ ही वो दुनिया की एकलौती ऐसी सेना है जिसने आज तक कोई युद्ध नहीं जीता है। लेकिन फिर भी भारत के साथ किसी भी तरह की तकरार को पाकिस्तान की तख्त पर बैठे हुक्मरान अपने लिए फायदेमंद ही मानते हैं। ये तकरार भारत से सीधी जंग तो नहीं, लेकिन ऐसी आतंकवादी घटनाएं भी होती हैं, जिसके सहारे पड़ोसी मुल्क अपना वर्षों पुराना जम्मू कश्मीर राग अलापता रहे। पाकिस्तीन की सरकार को भी ऐसी परिस्थिति का इंतजार रहता है। 

अनंतनाग हमला

13 सितंबर को अनंतनाग जिले के कोकेरनाग इलाके में गोलीबारी के दौरान दो सेना अधिकारियों और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी की हत्या ने अस्थायी शांति के बाद दक्षिण कश्मीर को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। हाल के महीनों में पीर पंजाल रेंज के दक्षिण के क्षेत्र, जैसे कि पुंछ, राजौरी और जम्मू, आतंकवाद विरोधी अभियानों का केंद्र रहे हैं, क्योंकि ये क्षेत्र हमलों की तुलना में अधिक उच्च दृश्यता वाले आतंकवादी हमलों का लक्ष्य रहे हैं। अनंतनाग के कोकेरनाग में मुठभेड़ उस वक्त हुई जब जम्मू कश्मीर पुलिस और सेना का आतंकवाद विरोधी संयुक्त अभियान चल रहा था। मुठभेड़ में कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धोनैक और डीएसपी हुमायीं भट शहीद हो गए हैं। 

भारत का अस्थिर पड़ोसी पाकिस्तान

पाकिस्तान की घरेलु राजनीति पर गौर करें तो ये हमेशा से ही उथल-पुथल से भरी रही है। वर्तमान में सरकार कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकड़ के भरोसे चल रही है। पूर्व पीएम नवाज शरीफ की भी इसी अगले महीने वतन वापसी होने वाली है। इसके साथ ही पाकिस्तानी राष्ट्रपति की तरफ से नवंबर में चुनाव का ऐलान भी कर दिया गया है। इन सब के अलावा इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई पर लगाम लगाने की कोशिशें उन्हें और प्रसिद्धि ही देती नजर आ रही है। इसके अलावा पाकिस्तान की माली हालत से तो दुनिया वाकिफ है। दाने दाने को मोहताज मुल्क की मुसीबतें फिर भी थम नहीं रही हैं। यहां तक के इसके विमान को उड़ान भरने और स्टॉफ को वेतन देने तक के पैसे नहीं है। पाकिस्तान की सरकारी एयरलाइंस भी डूबने की कगार पर है। सऊदी और यूएई की तरफ से ईंधन का पैसा नहीं चुकाने की वजह से हाल ही में विमान तक को बंधक बना लिया गया था। 

किसी भी देश की सैन्य ताकत से उसके आवाम में सुरक्षा की भावना पैदा होती है। पाकिस्तान में भी सेना द्वारा देशवासियों को अपने पर भरोसा करने को लेकर कई कोशिशें की जाती रही हैं। 1971 में भारत के सामने सरेंडर और  बांग्लादेश के रूप में देश का एक हिस्सा गंवाने के बाद इमरान खान की गिरफ्तारी के वक्त कोर कमांडर के घर पर हमले वाला नजारा देखने के बाद ये साफ हो गया कि पाकिस्तानी सेना भरोसे के संकट से भी जूझ रही है। आपको याद होगा कुछ दिनों पहले का पाकिस्तान के आर्मी चीफ सैयद असिम मुनीर का भीख के कटोरा फेंकने वाला बयान। जब उन्होंने देश को विदेशी लोन पर निर्भरता खत्म कर आत्मनिर्भर बनने की अपील की है। जियो न्यूज के हवाले से यह बात कही गई है। सेना प्रमुख ने खानेवाल मॉडल कृषि फार्म के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान एक स्वाभिमानी, उत्साही और प्रतिभाशाली देश है। सभी देशवासियों को भीख का कटोरा फेंक देना चाहिए। जनरल मुनीर लोगों को ये दिखाना चाह रहे थे कि सेना उनके बेहतरी और देश के विकास के लिए काम कर रही है। उनके काम करने का तरीका लोगों द्वारा चुनी गई सरकार से भिन्न है जो सिर्फ भीख का कटोरा लिए घूमते हैं। 

इस्लामिक मुल्कों में भी अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान

जी20 से इतर सऊदी अरब के प्रिंस एमबीएस संग भारत के पीएम मोदी की डील ने चीन और पाकिस्तान को परेशान कर दिया है। वहीं 57 मुस्लिम देशों का इस्लामी सहयोग संगठन जहां पाकिस्तान की तरफ से यूएन के अलावा जम्मू कश्मीर का राग अलापता रहा है। फिर भी भारत के मजबूत स्टैंड के सामने धारा 370 खत्म किए जाने के बाद पाकिस्तान का सभी मंच पर इसे मुद्दा बनाने की कोशिश बुरी तरह असफल साबित हुई। उस वक्त के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने तमाम कोशिशें की लेकिन फिर भी ओआईसी के मंच पर कश्मीर के मुद्दे पर बहस नहीं हो पाई। इस मुद्दे पर आईओसी ने पाकिस्तान को अकेला छोड़ दिया। 

जी20 का मंच जिसमें शामिल करना तो दूर की बात है उसमें कहीं भी किसी नेता द्वारा पाकिस्तान का जिक्र तक नहीं हुआ। वहीं नई दिल्ली घोषणापत्र के जरिए भारत ने अपनी ताकत का अहसास दुनियाभर को करा दिया। पाकिस्तान की हुकूमत खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इस्लामिक कट्टपंथ को बनाए रखने की कोशिश भी समय समय पर करता रहा है। जमात ए इस्लामी जैसी कट्टरपंथी धार्मिक संस्थाओं से सेना को सहयोग और समर्थन भी मिलता रहा है। 

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