Ads Area

Aaradhya beauty parlour Publish Your Ad Here Shambhavi Mobile

प्राचीन गौरव हासिल करने हाईकोर्ट पहुंचे पृथ्वीराज चौहान के वंशज

SV News

ओबीसी सूची में शामिल करने पर जताई आपत्ति

प्रयागराज (राजेश सिंह)। भारतीय क्षत्रिय महासभा और सांभरी क्षत्रिय राजपूत एकता फाउंडेशन ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति की सूची में नोनिया बिरादरी के साथ लोनिया चौहान जाति दर्ज किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने लोनिया चौहान बिरादरी को ओबीसी की सूची से बाहर करने और उन्हें क्षत्रिय घोषित करने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनका दावा है कि लोनिया चौहान मेवाड़ के राजा पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं, जबकि राजनीतिक लाभ के लिए उन्हे ओबीसी की सूची में नोनिया विरादरी के संग शामिल कर दिया गया है।
गौरतलब है कि छह सितंबर 1995 और 31 अगस्त 2002 को उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिसूचना जारी कर लोनिया चौहान बिरादरी को नोनिया जाति की शाखा मानते हुए उसके साथ ओबीसी की सूची में दर्ज कर दिया था। इसके बाद से लोनिया चौहान को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलने लगा था। हालांकि, लोनिया चौहान जाति का एक वर्ग इससे खफा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने वाले मऊ जिले के भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मीकांत चौहान का दावा है कि लोनिया और नोनिया दो अलग-अलग जातियां हैं। नोनिया कई राज्यों में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के रूप में जाने जाते हैं,जबकि लोनिया चौहान क्षत्रिय राजपूत हैं। यह जाति मेवाड़ के राजा पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं। इनका सामाजिक और सांस्कृतिक अस्तित्व नोनिया बिरादरी से बिल्कुल भिन्न है। इनके बीच रोटी और बेटी का रिश्ता नहीं होता।

लोनिया चौहान के हैं 13 उपनाम

दावा है कि ऐतिहासिक साक्ष्यों और ग्रंथों के मुताबिक लोनिया चौहान मूलतः राजस्थान के 98 राजवंश से ताल्लुक रखते हैं। इन्हें 13 उपनाम से पुकारा जाता है।
1. कच्छवाहा
2. गहलोत
3. चौहान
4. चंद्रवंशी
5. तोमर
6. परमार
7. भुवार
8. भाटी
9. मकवाना
10. राठौर
11. सेनवंशी
12. परिहार
13. सोलंकी

देश की आजादी के पहले भी इस बिरादरी के अस्तित्व और स्वाभिमान पर संकट के बादल छाए रहे हैं। इसे लेकर अस्तित्व की लड़ाई जारी रही। हालांकि, तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के दौरान कानपुर कलेक्टर ने तत्कालीन राजपूत धर्म प्रचारिणी महासभा की मांग पर 16 अप्रैल 1926 को आदेश पारित कर इन्हें लोनिया के बजाय राजपूत लिखने पर रजामंदी दे दी थी।
इसी क्रम में 31 अक्तूबर 1947 में संयुक्त प्रांत के उप सचिव सी.डब्ल्यू. लॉग मैन ने सभी जिला कलेक्टरों को पत्र लिख कर राजस्व अभिलेखों में नोनिया और लोनिया समाज को सिंह (राजपूत) के रूप में मान्यता दिया जाने का निर्देश जारी किया था। हालांकि, आजादी के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1995 में इन्हें ओबीसी की सूची में दर्ज कर दिया, जिससे लोनिया बिरादरी का एक समूह इसे क्षत्रिय राजपूत के स्वाभिमान के खिलाफ मानते हुए आज भी संघर्ष की राह पर है।
समय-समय पर होने वाले सामाजिक अधिवेशनों में भी लोनिया चौहान को क्षत्रिय राजपूत घोषित किया गया, पिछड़ा वर्ग आयोग का दरवाजा भी खटखटाया गया, लेकिन इनकी सुनी नहीं गई। राजनीतिक महत्वाकांक्षा में यूपी की तत्कालीन सरकार ने इन्हें क्षत्रिय घोषित करने के बजाय नोनिया बिरादरी की शाखा मानते हुए ओबीसी की सूची में शामिल कर दिया। इसे लेकर दशकों से संघर्ष जारी है। अब मामला जनहित याचिका के माध्यम से इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा है। इसकी सुनवाई शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश के कोर्ट में होगी।

إرسال تعليق

0 تعليقات

Top Post Ad