प्रयागराज (राजेश सिंह)। भाजपा के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की रिहाई से तमाम राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। उनकी पहचान ब्राह्मण चेहरे के रूप में होती है। भाजपा 2027 के विधानसभा चुनाव में उसका फायदा उठाना चाहेगी। भाजपा से राजनीति की शुरुआत करने वाले उदयभान पहले प्रयास में सफल हो गए थे।
वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी के संरक्षण में राजनीतिक सफर में आगे बढ़ते रहे। यही वजह रही कि 2002 के चुनाव में उन्हें बारा विधानसभा का संयोजक बनाकर भेजा गया। जैसे ही चुनाव घोषित हुए उन्हें पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी बना दिया गया। उन्होंने बसपा उम्मीदवार को मात दी।
उसके बाद 2007 में फिर पार्टी ने विश्वास जताया और उम्मीदवार बनाया। दोबारा सफलता मिली। इसके बाद बारा विधानसभा सीट सुरक्षित घोषित हो गई। इसकी वजह से पार्टी ने उन्हें 2012 में शहर उत्तरी से उम्मीदवार बनाया। इस बार हार का सामना करना पड़ा। उनके प्रतिद्वंद्वी अनुग्रह नारायण सिंह सफल हुए थे।
2014 में जारी हुआ वारंट, न्यायालय में किया आत्मसमर्पण
13 अगस्त, 1996 को सिविल लाइंस में सपा के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया था। पहली बार ऐसा हुआ था, जब इलाहाबाद में एके-47 तड़तड़ाई थी।
आरोप करवरिया बंधुओं पर लगा
मामले में कपिलमुनि करवरिया, उनके भाई उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया व उनके रिश्तेदार रामचंद्र उर्फ कल्लू नामजद हुए, लेकिन राजनीति में तीनों भाइयों का रसूख बढ़ता गया। कपिलमुनि से बसपा सांसद, उदयभान भाजपा से विधायक व सूरजभान बसपा से एमएलसी बने।
उदयभान ने वर्ष 2014 में न्यायालय में तब आत्मसमर्पण किया था, जब उनके खिलाफ वारंट जारी हो गया था। अदालत ने चार नवंबर 2019 को तीनों भाइयों सहित चार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। करवरिया परिवार और पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित के बीच बालू के ठेकों पर वर्चस्व को लेकर अदावत शुरू हुई थी। वहीं विधायक व जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव का कहना है कि उदयभान करवरिया की हुई रिहाई को न्यायालय में चुनौती दूंगी।