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झारखंड में तेजी से कैसे बढ़ रहे ‘जमाई टोले’?

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 आदिवासियों की घटती संख्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों से कनेक्शन

नई दिल्ली। झारखंड में तेजी के साथ ‘जमाई टोलेश्’ बढ़ते जा रहे हैं. आखिर ये टोले क्या हैं और इनके बढ़ने से राज्य के मूल निवासी कैसे सिमटते जा रहे हैं। इन टोलों का बांग्लादेशी घुसपैठियों से क्या कनेक्शन है।

बंगाल के बॉर्डर से सटे झारखंड के पाकुड़ का, जहां जमाई के नाम पर एक गजब का खेल चल रहा है. बांग्लादेश की सीमा से सटे झारखंड के कुछ इलाकों में कुछ जमाई ऐसे जम गए हैं कि पूरे के पूरे इलाके की डेमोग्राफी बदलकर रख दी है. यहां इतने जमाई राजा आकर बस गए हैं कि इलाके को नाम ही दे दिया गया है। जमाई टोला, इन जमाई टोलों में कैसे चल रहा है कथित जमीन जिहाद का खेल और कैसे बांग्लादेश से आए जमाई राजा कर रहे हैं खेल. आज हम इस रिपोर्ट में आपको बताते हैं।

शौहर के कहने पर बदल लिया धर्म और नाम

पाकुड़ जिले में रहने वाली सुनीता टुडू संथाल जनजाति से आती हैं. उनकी शादी शमशुल अंसारी से हुई है. इसकी तरह एक अन्य महिला सकीना हंसदा का पहले नाम हुआ करता था मोनिका हंसदा. उन्होंने आजाद अंसारी से शादी करने के बाद अपना नाम बदल लिया. इन दो महिलाओं और उनके परिवार की पहचान हम यूं ही नहीं बता रहे हैं बल्कि इनके नाम और पहचान में छिपा है बांग्लादेश की सीमा से सटे झारखंड का बहुत बड़ा खेल. खबर है कि सरहद पार बांग्लादेश से लोग भारत में घुसपैठ कर के आते हैं और फिर झारखंड की आदिवासी महिलाओं को अपने प्रेमजाल में फंसाकर उनसे शादी करके जमाई बन जाते हैं। जमाई बाबू यहीं नहीं रुकते हैं बल्कि इसके बाद शुरु होता है कथित लैंड जिहाद का खेल। इस इलाके में पहले कभी आदिवासी झुग्गी झोपड़ियों में रहते थे. ये इलाका कभी आदिवासी बहुल हुआ करता था। लेकिन अब वहां पक्के मकान हैं और थोड़ी थोड़ी दूर पर हैं मस्जिद. इसके साथ ही इलाके का नाम पड़ गया है जमाई टोला।

मुस्लिम शौहर का गांवों में दबदबा

बांग्लादेश से लगे झारखंड के इलाकों में ये सब कैसे हो रहा है अब उसे तफ्सील से समझिए। दावा है कि पाकुड़ और आसपास के कई इलाकों में मुस्लिम घुसपैठियों ने आदिवासी महिलाओं को बहला फुसलाकर उनके शादी की. इसके बाद आरक्षण का फायदा उठाकर पत्नियों को पंचायत चुनाव लड़वाया और जीतने के बाद इलाके में अपना दबदबा बढ़ाया।

ऐसी ही एक महिला सुनीता टुडू गोपलाडीह पंचायत की मुखिया हैं.. लेकिन माना जाता है कि ये तो सिर्फ नाम की मुखिया हैं क्योंकि यहां असल दबदबा तो इनके पति का है। सुनीता टुडू पहले टीचर थीं लेकिन शादी के बाद इन्होंने पति के कहने पर नौकरी छोड़ दी। जो आरोप लग रहे हैं ठीक उसी तरह की कहानी खुद शमशुल मियां भी बता रहे हैं।

जमाई बाबू के लव ट्रैप में फंस रही महिलाएं

अब दूसरे जमाई टोला के इस परिवार से मिलिए.. इलाके की मुखिया सकीना हंसदा पहले मोनिका के नाम से जानी जाती थीं। लेकिन ये भी जमाई बाबू के लव ट्रैप में फंस गईं। आजाद अंसारी ने पहले इनसे शादी की और फिर पंचायत चुनाव में रिजर्व सीट होने की वजह से पत्नी को चुनाव लड़वा दिया. पत्नी चुनाव जीत गईं। अब जमाई बाबू यहां राज करते हैं। अब जमाई नंबर 2 अंसारी साहब ने भी वही किया जिसका आरोप लग रहा है।

गोड्डा से एमपी निशिकांत दुबे ने इस मामले को तो संसद में उछाला था। लेकिन अंसारी को इन बातों का बुरा लग गया। बांग्लादेशी जमाई राजा का ये खेल किस स्तर पर चल रहा है ये आपको हम नहीं बल्कि आंकड़े बताएंगे।

संथाल में आदिवासी घटे, मुस्लिम बढ़े! 

संथाल परगना में 1951 में आदिवासियों की आबादी 44.66 प्रतिशत थी. 2011 में आदिवासी घटकर 28.11 फीसदी रह गए. वहीं मुस्लिमों की आबादी 9.44 से बढ़ कर 22.73 प्रतिशत हो गई। संथाल परगना के इन सभी छह जिलों में आबादी में औसत 7 से 8 लाख का इजाफा हुआ है. जिसमें मुस्लिम आबादी बहुत तेजी से बढ़ी है।

बांग्लादेश से सटे झारखंड में जमाई बाबू का खेल किस लेवल पर चल रहा है इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि इलाके में एक के बाद एक कई जमाई टोला बन गए हैं। पाकुड़ के पूर्व विधायक बेनी प्रसाद गुप्ता कहते हैं, एक भी गांव अब नही बचा, जहां आदिवासी हो. आदिवासी को भगा कर घुसपैठियों ने कब्जा जमा लिया. इसका उदाहरण किताझोड़, रामचन्द्र पुर है जहां अब सिर्फ मुस्लिम ही हैं. वहां की पूरी डेमोग्राफी बदल दी गयी है।

बांग्लादेशी घुसपैठियों का पूरा नेटवर्क

माना जाता है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को जमाई बनाने के लिए एक पूरा नेटवर्क काम करता है। जो इन्हें इजी टारगेट चुनने से लेकर उसे फांसने तक में मदद करता है। एडवोकेट धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि घुसपैठियों का कथित नेटवर्क मुस्लिम युवक को आदिवासी युवती के नजदीक लाता है, जो चंद रुपयों के लेन-देन के क्रम में प्यार में बदल जाता है।

इसके बाद लड़की शादी के लिए मान जाती है। शादी के बाद घुसपैठिया मुस्लिम वहीं बस जाता है. ऐसे कई लोग जिन जगहों पर रह रहे हैं, उन्हें संथाल परगना में जमाई टोला कहा जाता है। शादी के बाद आदिवासी लड़की की जमीन पर भी मुस्लिम पति का अधिकार हो जाता है।

देश में कितने जमाई टोले

बड़ा सवाल तो ये है कि आखिर झारखंड में ऐसे कितने जमाई टोला हैं. सवाल तो ये भी है कि क्या है झारखंड तक सीमित है या फिर और भी राज्यों में ऐसा ही खेल चल रहा है।

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