मेजा, प्रयागराज (राजेश शुक्ला)।पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। शुभ मुहूर्त में विधि विधान से पूजा करने पर संतान पर कोई संकट नहीं आता है।
ललही छठ पूजा संतान के सुख समृद्धि और उसके स्वास्थ्य के लिए की जाती है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भी ललही छठ का व्रत रखती हैं। कुंवारी कन्या भी ललही छठ का व्रत एक अच्छा पति प्राप्त करने की अभिलाषा से रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। इस दिन विधि विधान से भगवान की पूजा करने से संतान के ऊपर आने वाले सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला रहकर ललही छठ व्रत का पालन करती हैं। रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही जल ग्रहण करती हैं।
ललही छठ भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है। 24 अगस्त दिन शनिवार को शाम 12:45 तक पंचमी तिथि है। उसके पश्चात षष्ठी तिथि आ रही है। का समापन 25 अगस्त दिन रविवार को पूर्वाह्न 10.30 मिनट तक षष्ठी तिथि है।
ललही छठ पूजा विधि
हरछठ की पूजा के दिन एक गड्ढा बनाकर उसे गोबर से लीप कर तालाब का रूप दिया जाता है। इस तालाब में झरबेरी और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दिया जाता है। विधि विधान से उसकी पूजा की जाती है। पूजा के समय 7 तरह का अनाज चढ़ाया जाता है। इस व्रत में हल से जोत कर उगाए हुए अन्न को नहीं खाया जाता है। ललही छठ में आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा, भुना हुआ चना, जौ की बालियां भी चढ़ाई जाती हैं भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन किया जाता है। रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
ललही छठ व्रत का महत्व
ललही छठ का व्रत रखने से संतान ही ने दंपति को संतान की प्राप्ति होती है। संतान की सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए ललही छठ का व्रत रखा जाता है। सच्ची निष्ठा और विश्वास के साथ ललही छठ का व्रत पूरा करने कुंवारी कन्याओं की अच्छा पति पाने की मनोकामना पूरी होती है। सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत पूरा करने से उनके पति की उम्र लंबी होती है। कारोबार में वृद्धि होती है। जिससे परिवार सुखी जीवन व्यतीत करता है।
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पंडित कमला शंकर उपाध्याय |
ललही छठ को लेकर ज्योतिषाचार्य पंडित कमला शंकर उपाध्याय ने बताया कि ललही छठ का व्रत दिनांक 25 अगस्त दिन रविवार को मनाया जाएगा। 24 अगस्त दिन शनिवार को दोपहर 12:45 मिनट तक पंचमी तिथि है। उसके पश्चात षष्ठी तिथि आ रही है।
25 अगस्त रविवार को पूर्वाह्न 10:30 मिनट तक षष्ठी तिथि है। सप्तमी से युत षष्ठी का व्रत किया जाता है न की पंचमी से विद्ध षष्ठी का। बाण बिद्धा यदा षष्ठी मुनीबेधी च अष्टमी। एकादशी दशमी बेधी, हंति पुण्यम पुराकृतम।।
अर्थात: पंचमी से विद्ध षष्ठी सप्तमी बेधी अष्टमी एवं दशमी बेधी एकादशी का व्रत करने पर पहले किया गया पुण्य भी नष्ट हो जाता है।
अतः शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर ललही छठ का व्रत 25 अगस्त दिन रविवार को किया जाएगा।