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शिव-पार्वती कथा जीवन की व्यथा को समाप्त कर देती हैः देवी प्रियंवदा

 

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मेजा, प्रयागराज (विमल पाण्डेय)। उरूवा विकास खंड अंतर्गत सोरांव गांव में महादेव महावीर सत्संग समारोह प्रांगण में चल रहे सात दिवसी श्री रामकथा के चतुर्थ दिवस शनिवार को नैमिषारण्य (लखनऊ) से पधारी कथा वाचिका देवी प्रियंवदा ने शिव पार्वती के विवाह का प्रसंग सुनाया। माता सती के त्याग का वर्णन करते हुए कहा कि शिवजी माता सती का त्याग करते हुए तपस्या में लीन हो गये और 87 हजार साल लगातार तपस्या में लीन रहे।

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कथा वाचिका ने आगे कहा कि शिव पार्वती कथा जीवन की व्यथा को समाप्त कर देती है। आज हजारों साल बाद माता सती भोलेनाथ के सम्मुख बैठी हैं और भगवान शिव ने उनको क्षमा कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर देवाधिदेव महादेव महाराज हिमांचल की कन्या पार्वती से विवाह को तैयार हो गए। जब शिव की बारात हिमालय पर जाने के लिए तैयार हुई तो समस्त देवता भी बारात के साथ निकल पड़े। शिव अपने गणों के साथ नंदी पर सवार होकर महाराज हिमाचल के द्वार पर पहुंचते हैं। शिवगणों को देखकर महारानी मैना डर जाती हैं और पार्वती को पकड़कर रोने लगती हैं। तभी नारद जी प्रकट होते हैं और शिव और पार्वती के पूर्व जन्म की कथा का वर्णन करते हैं। इससे महारानी मैना का संताप दूर होता है और बड़ी धूमधाम से शिव और पार्वती का विवाह संपन्न होता है। विवाह प्रसंग के दौरान कथा पंडाल में बम बम भोले, हर हर महादेव का जयघोष गूंजता रहा। 

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इससे पूर्व कथावाचक रविकृष्ण शास्त्री ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन्म के साथ ही बाललीला व विश्वामित्र आगमन, ताड़का व अहिल्या उद्धार की संगीतमयी कथा व रामनाम की महत्ता समझाई।

कथा का संचालन मानस प्रचारिणीस समिति के अध्यक्ष विजयानंद उपाध्यान ने किया। उक्त अवसर पर उक्त अवसर पर पूर्व विधायक आनंद कुमार उर्फ कलट्टर पाण्डेय, विहिप जिलाध्यक्ष नित्यानंद उपाध्याय, समाजसेवी सिद्धांत तिवारी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य लक्ष्मी शंकर उर्फ लल्लन शुक्ल, पूर्व प्रधान केशव प्रसाद शुक्ल, पूर्व उपप्रधान नागेश्वर प्रसाद उर्फ कलक्टर शुक्ल, मिथिलेश प्रसाद शुक्ल, उरुवा ब्लाक प्रमुख पद प्रत्याशी श्याम नारायण शुक्ल उर्फ लोलारक, श्रीकांत द्विवेदी उर्फ लल्लन, बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मुनेश्वर प्रसाद शुक्ल, विंध्यवासिनी प्रसाद शुक्ल, तुंगनाथ शुक्ल, कृष्ण कुमार उर्फ नंघेसर शुक्ल, संतोष शुक्ल, श्रीराम शुक्ल, हरिकिशन विश्वकर्मा, आशीष शुक्ल, अवधेश शुक्ल, नारायण दत्त शुक्ल, विनय कुमार शुक्ल (बुटानू), विनय शुक्ल उर्फ लल्लू शुक्ल, पंकज शुक्ल, रजनीकांत उर्फ सोनू शुक्ल, विमलेश शुक्ल, लालबहादुर कुशवाहा, भूपेंद्र शुक्ल, राजू शुक्ल, धर्मेंद्र शुक्ल, राकेश शुक्ल उर्फ दादा, शिव लखन कुशवाहा, भगवान दास प्रजापति, पवन कुशवाहा, फूलचंद्र कुशवाहा, पप्पू शुक्ल सहित भारी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे। कथा के अंत में कथा आयोजन अध्यक्ष आशीष शुक्ल ने सभी श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया।

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