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गंगा मंच पर संगीतमय भक्ति का हुआ सांस्कृतिक आयोजन

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कुंभनगर (राजेश शुक्ला)। आध्यात्मिकता और कला के अद्भुत संगम से सजे इस भव्य कार्यक्रम का शुभारंभ मुंबई की प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना रूपाली देसाई और उनकी टीम द्वारा की गई। उन्होंने "शिव पंचाक्षर स्तोत्र" की दिव्य ध्वनि के साथ एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली नृत्य प्रस्तुति दी, जिसने दर्शकों को शिवमय कर दिया।

"अंगिकं भुवनं यस्य, वाचिकं सर्व वाङ्मयम्।

आहार्यं चन्द्रतारादि, तं वन्दे सात्विकं शिवम्॥" इस श्लोक के माध्यम से भगवान शिव की व्यापकता, उनकी अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों—अंगिक (शारीरिक प्रदर्शन), वाचिक (वाणी), और आहार्य (श्रृंगार) की महिमा को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। नृत्य की भावपूर्ण मुद्राओं और संगीत की लयबद्धता ने एक ऐसा दिव्य वातावरण रचा, जिससे दर्शकों में भक्ति और आध्यात्मिक चेतना का संचार हुआ।

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दूसरी प्रस्तुति के तहत प्रसिद्ध गायिका सुश्री निशि सिंह ने अपनी सुरीली वाणी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी भक्ति-भाव से ओत-प्रोत प्रस्तुतियों 'ये प्रयागराज है', 'राम को देखकर श्रीजनक नंदिनी' और 'तुम उठो सिया श्रृंगार करो' ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। निशि सिंह लोकगीत, सूफी, ग़ज़ल और भजन गायन में पारंगत हैं। उन्हें अटल रत्न सम्मान व राजीव गांधी रत्न सम्मान प्राप्त हैं। वे चित्रकार व कवयित्री भी हैं और नाद फाउंडेशन के माध्यम से समाजसेवा में सक्रिय हैं।

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 अंत में प्रसिद्ध भजन गायिका सुश्री आस्था गोस्वामी ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति से भक्तों को भक्ति और श्रद्धा के भाव में डुबो दिया। उनके मधुर स्वरों में गाए गए 'तिहरोदरस मोहे भावे श्री यमुना मैया' (सूरदास), 'गंगा स्तुति', 'जतन बताये जैयो कैसे दिन कटि हैं' (कबीर), और 'रे मन हरि सुमिरन कर लीजे' जैसे भजनों ने भक्तों को आध्यात्मिक अनुभूति कराई। भारतीय शास्त्रीय संगीत में पारंगत आस्था गोस्वामी अपनी भक्ति-रसपूर्ण गायकी के लिए जानी जाती हैं। उनकी प्रस्तुति ने दर्शकों को न केवल संगीतमय कर दिया, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा से भी भर  दिया।

 कार्यक्रम के अंत में संस्कृति विभाग के कार्यक्रम अधिषासी कमलेश कुमार पाठक ने सभी कलाकारों को अंगवस्त्रम और प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया।

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