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महाकुंभ का दर्शन, तेरा तुझको अर्पण... महाकुंभ में सेवा का अनुपम अनुभवः गौतम अदाणी

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नई दिल्ली। आज महाशिवरात्रि का पावन पर्व है। सभी को इस शुभ अवसर की हार्दिक मंगलकामनाएं। यह पावन अवसर 45 दिनों तक चलने वाले सेवा के महायज्ञ महाकुंभ की पूर्णाहुति का दिन भी है। महाशिवरात्रि न केवल शिव और शक्ति के दिव्य मिलन का पर्व है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, भक्ति और लोककल्याण के आदर्शों को जीवन में आत्मसात करने का शुभ अवसर भी है। शिव की आराधना हमें सिखाती है कि सच्ची सेवा वही है, जो निःस्वार्थ भाव से की जाए और जिसमें समस्त मानवता का हित निहित हो। जो कालकूट विष को अपने कंठ में धारण कर समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए नीलकंठ बन गए, वही शिव निःस्वार्थ सेवा के परम प्रतीक हैं।

यह महाकुंभ मेरे लिए अनंत आध्यात्मिक अनुभवों से परिपूर्ण रहा, जिसमें सेवा का अनुभव सबसे मूल्यवान है। मेरा मानना है कि जीव मात्र की सेवा ही ईश्वर के साक्षात्कार का श्रेष्ठ मार्ग है। महाकुंभ ‘तेरा तुझको अर्पण’ की भावना को साकार करने का अवसर देता है, जहां हम जननी जन्मभूमि से प्राप्त सब कुछ उसे समर्पित कर सकते हैं। लाखों श्रद्धालुओं की सेवा करके हम स्वयं को धन्य मानते हैं। वास्तव में, सेवा करने वाला नहीं, बल्कि सेवा ग्रहण करने वाला ही हमें परमात्मा तक पहुंचने का अवसर देता है। ऐसे हमें जिन भाई-बहनों और संतजनों की सेवा करने का पुण्य प्राप्त हुआ उन्हें करबद्ध नमन।

इस वर्ष करोड़ों श्रद्धालुओं के साथ साथ मुझे भी परिवार समेत प्रयागराज जाकर मां गंगा के दर्शन पाने और अद्भुत एवं अद्वितीय महाकुंभ का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रयागराज जाकर ऐसा लगा मानो पूरी दुनिया की आस्था, सेवाभाव और संस्कृतियां यहीं मां गंगा की गोद में समाहित हो गई हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला अनुभव है।

महाकुंभ को लेकर अपने पूर्वजों की अंतर्दृष्टि पर विचार करता हूं तो हर्षवर्धन जैसे महान शासकों की सेवा और त्याग की परंपरा स्मरण होती है, जिन्होंने अपना सर्वस्व दान कर दिया। यह दिखाता है कि भारतवर्ष में निःस्वार्थ सेवा परंपरा कितनी पुरानी है। आज भी करोड़ों श्रद्धालु उसी समर्पण भाव से यहां आते हैं - अमीर-गरीब, साधु-संत, नौकरीपेशा या व्यवसायी - मां गंगा की गोद में सभी समान हैं।

50 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का यह अद्वितीय संगम केवल संख्या में बड़ा नहीं, बल्कि प्रभाव में भी अनुपम है। जब इतने लोग श्रद्धा और सेवा के भाव से एकत्र होते हैं, तो यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि जीवात्माओं का अद्वितीय मिलन बन जाता है।

इस महाकुंभ के दौरान अदाणी परिवार में एक अनोखा प्रयोग किया गया। हमने परिवार के सदस्यों को महाकुंभ में अपनी सेवाएं देने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने का विकल्प दिया, और कुछ ही घंटों में हज़ारों सदस्यों ने इस पवित्र कार्य के लिए खुद को समर्पित कर दिया। परिणामस्वरूप, अदाणी परिवार के 5000 से अधिक सदस्यों को श्रद्धालुओं और कल्पवासियों की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त किया।

यह अनुभव न केवल मानवता की सेवा का सुनहरा मौका था, बल्कि इतने विशाल आयोजन के प्रबंधन, योजना और विभिन्न विभागों के समन्वय को निकट से समझने और सीखने का भी अवसर प्रदान करता है। कुंभ जैसे महाआयोजन में सेवा के माध्यम से उन्होंने मैनेजमेंट, लीडरशिप, क्राइसिस हैंडलिंग, और टीमवर्क जैसे व्यावहारिक पाठ सीखे, जो उन्हें एक बेहतर प्रबंधक ही नहीं, बेहतर इंसान भी बनाएगा।

यह अनुभव न केवल इन सभी सदस्यों के लिए बल्कि अदाणी समूह की कार्यशैली के लिए भी परिवर्तनकारी सिद्ध होगा। ष्नर सेवा ही नारायण सेवाष् के भाव को आत्मसात करते हुए, वे न केवल सेवा का पुण्य लेकर लौटे, बल्कि एक नई दृष्टि और अनुभव भी साथ लेकर आए हैं।

महाकुंभ के पावन अवसर पर अदाणी समूह ने इस्कॉन (प्ैज्ञब्व्छ) के सहयोग से देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं के लिए महाप्रसाद सेवा का संकल्प लिया। प्रतिदिन 1 लाख श्रद्धालुओं को भोजन प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन सेवा की यह लहर इससे कहीं आगे बढ़ी। इस्कॉन ने कुछ ही दिनों में विश्वस्तरीय रसोई और वितरण प्रणाली स्थापित कर दी, जिसका हिस्सा बनना एक दिव्य अनुभव था।

प्रयागराज में जब मैंने इस्कॉन की महाप्रसाद सेवा और गीता प्रेस के सहयोग से आरती संग्रह के वितरण में भाग लिया, तो यह एक आध्यात्मिक परिवार का हिस्सा बनने जैसा था। इस्कॉन, गीता प्रेस और अदाणी परिवार के हजारों सदस्यों ने मिलकर ष्सेवा ही साधना हैष् के मंत्र को सिद्ध किया।

मुझे अब भी वह भावपूर्ण क्षण याद है जब मैं प्रयागराज के लेटे हनुमान मंदिर के पास गीता प्रेस के शिविर में आरती संग्रह वितरित कर रहा था। तभी लगभग 80 वर्ष की एक वृद्ध मां भीड़ को चीरते हुए मेरे पास आईं और मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। उस पल जो अनुभूति हुई, वह शब्दों से परे थी - एक गहरा आत्मिक स्पर्श, जिसे मैं जीवनभर संजोकर रखूंगा। मेरे लिए सेवा केवल एक कर्म नहीं, बल्कि अंतर्मन में गूंजने वाली प्रार्थना है-एक ऐसी प्रार्थना जो सदा विनम्रता और समर्पण के धरातल से जोड़े रखती है।

महाकुंभ रूपी सेवा महायज्ञ में हम अकेले नहीं थे। साधु संतों और कल्पवासियों समेत शासन-प्रशासन, विभिन्न संस्थान, स्वच्छता कर्मी, पुलिस बल, सभी का धैर्य और समर्पण वास्तव में प्रशंसनीय था। यह उन्हीं की तपस्या थी जिसने इस विशाल आयोजन को सुगम बनाया। उनकी संवेदनशीलता और समर्पण ने महाकुंभ के अनुभव को और भी दिव्य और भव्य बना दिया। भले ही महाकुंभ का पर्व समाप्त हो रहा है, लेकिन इसने हमें निःस्वार्थ सेवा का गहरा दर्शन और नया दृष्टिकोण दिया। यह सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि मानवता की सेवा का अनुपम अनुभव था। हमारे लिए सेवा का महापर्व सदा जारी रहेगा। मैं हृदय से यह मानता हूं कि सेवा ही साधना है, सेवा ही प्रार्थना है, और सेवा ही परमात्मा है। जय हिंद!


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