दोनों कान व त्वचा रोग की बीमारी से तंग हूं, भगवान ने बहुत दुख दिया...
प्रयागराज (राजेश सिंह)। स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल स्थित नर्सिंग हॉस्टल में बुधवार सुबह जीएनएम प्रथम वर्ष की छात्रा प्रीति सरोज (20) ने पंखे पर फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली। घटनास्थल पर मिले सुसाइड नोट में उसने लिखा है कि कान और शरीर की खुजली की बीमारी से तंग आ चुकी हूं, भगवान ने बहुत दुख दिया है। मौत को गले लगा रही हूं। कोतवाली थाना पुलिस मामले की जांच में जुट गई है।
घटना सुबह 10:15 बजे की है। मूलरूप से कौशाम्बी के थाना संदीपन घाट स्थित फरीदपुर की रहने वाली प्रीति नर्सिंग हॉस्टल में रहकर जीएनएम की पढ़ाई कर रही थी। हॉस्टल कमरे में छह अन्य छात्राएं रहती थीं। इनमें छात्राएं महाशिवरात्रि पर दर्शन करने तो कुछ बाहर गई थीं। जबकि एक सहेली कमरे में ही थी। सुबह 10 बजे के करीब प्रीति ने उससे कहा कि नहाना है। तुम थोड़ी देर के लिए बाहर जाओ, ताकि दवा लगा सकूं। यह सुनकर उसकी सहेली छत पर कपड़ा फैलाने चली गई।
करीब 15 बाद वापस लौटी अंदर से दरवाजा बंद था। आवाज लगाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो हॉस्टल प्रबंधन मौके पर आ गया। दरवाजा धक्का देने पर खुला तो प्रीति पंखे पर नायलॉन की रस्सी से लटकी थी। यह देख सभी सन्न रहे गए। फंदे से उतार एसआरएन ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने प्रीति को मृत घोषित कर दिया। वहीं, कोतवाली थाना प्रभारी रोहित तिवारी ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है।
पुलिस को प्रीति के नोटबुक में आधे पेज का सुसाइड नोट मिला है। इस नोट में लिखा है कि मैं डॉक्टर बनना चाहती थी। लेकिन, मेरा सपना अधूरा रह गया। मैं बहुत परेशान होकर सुसाइड करने जा रही हूं। कान की बीमारी से परेशान हूं। दोनों कानों में सुनने में तकलीफ होती है। पूरे शरीर में भी खुजली रहती है। अब और नहीं झेल सकती। मम्मी-पापा मुझे माफ कर देना। वहीं, पुलिस जांच में पता चला कि बीमारी घातक थी, इसलिए प्रीति अपने पूरे शरीर पर खुजली की दावा लगाने के बाद ही नहाती थी।
प्रीति की मौत की सूचना मिलते ही पिता शत्रुघन पत्नी के साथ अस्पताल पहुंचे। राजमिस्त्री का काम करने वाले शत्रुघन ने बताया कि उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह बेटी की पढ़ाई का खर्च उठा पाते। बीमारी की वजह से 12 फरवरी उसे अपने साथ ले गया था और रविवार को वह वापस आ गई थी। सुबह करीब 7:30 बजे बेटी का फोन आया कहा कि पापा घर में रखा मेडिकल सर्टिफिकेट लेकर आ जाइए। वहीं लेकर आया था। लेकिन, यहां आने पर बेटी की मौत की खबर मिली।
बेटी कहती थी कि एक दिन वह बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी। सबको दिलासा देती थी कि गरीबी से लड़ना सीखो। लेकिन, वो खुद नहीं लड़ पाई। यह शब्द प्रीति की मां शांतिदेवी के हैं। प्रीति के शव को देख मां फफक पड़ी आंखों से आंसू छलकने लगे। बार-बार यही कहतीं रहीं कि बेटी तूने ऐसा क्यों किया।
प्रीति अपने घर की सबसे लाडली बेटी थी। उसकी बड़ी बहन उमा की शादी हो चुकी है। जबकि अंकित और आशीष है। घटना की सूचना पाकर माता-पिता और भाई अंकित के अलावा अन्य रिश्तेदार पहुंचे थे। इस दौरान पिता ने शत्रुघन ने बताया कि बेटी होनहार थी, इसलिए उसे सरकारी कॉलेज मिला था। उन्हें लग रहा था कि अब उनके घर के हालात बदलेंगे। लेकिन, सब कुछ उल्टा हो गया। वहीं, देर-शाम मृतका का पोस्टमार्टम कराकर शव परिजनों को सौंप दिया गया है।