Ads Area

Aaradhya beauty parlour Publish Your Ad Here Shambhavi Mobile Aaradhya beauty parlour

तो क्या निशांत कुमार की सियासी लॉन्चिंग से वंशवादी लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी?

sv news


दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को, सबसे सफल लोकतंत्र को हमारे नेताओं ने वंशानुगत राजतंत्र की तरह ही वंशानुगत लोकतंत्र में तब्दील कर दिया है। यदि कुछ बची-खुची कसर है तो वो गुजश्ते दशक या आने वाले दशक में पूरी हो जाएगी। इसका कारण प्रतिभाशाली डीएनए है या पूंजीवादी षड्यंत्र, यह आपको बाद में पता चलेगा...

वंशवादी लोकतंत्र का क्रांतिकारी भूमि बिहार में अपनी गहरी जड़ें जमाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है! यह लोकतंत्र की जननी वैशाली की मूल भावनाओं को मुंह चिढ़ाने जैसा है। ऐसा इसलिए कि सूबाई राजनीति को विगत 4 दशकों तक प्रभावित करते रहने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री बिहार, जदयू के मुखिया नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री बिहार और लोजपा आलाकमान रहे स्व. रामविलास पासवान, पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार ने अपने-अपने लाडले क्रमशः तेजस्वी यादव, पूर्व उपमुख्यमंत्री बिहार, चिराग पासवान, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, भारत सरकार और निशांत कुमार, सीएम इन वेटिंग, बिहार को अपनी राजनीतिक विरासत (सियासी जमींदारी) सौंप चुके हैं! 

इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भले ही देरी से फैसला किया हो, लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद की भांति वो निशांत कुमार के लिए अपने समर्थकों से मजबूत फील्डिंग भी करवा रहे हैं। इससे प्रदेश की राजनीति में कई सवाल पैदा हो रहे हैं, क्योंकि चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, एक दूसरे को शिकस्त देने के लिए इन क्षेत्रीय राजनीतिक सूबेदारों को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की राह पर भाजपा का चलना देश की वैचारिक राजनीति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, जबकि भाजपा को इतनी ऊंचाई देने वाली टीम का मानना है कि चूंकि लोहा ही लोहे को काटता है, इसलिए कांग्रेस मुक्त भारत के लिए वो लोग जैसे को तैसा वाली राजनीति देंगे।

भाजपा की इसी सोच का फायदा उठाते हुए उसके दो बड़े कद्दावर नेताओं यानी पार्टी में नम्बर 2 की हैसियत रखने वाले अमित शाह, केंद्रीय गृहमंत्री, भारत सरकार और नम्बर 3 की हैसियत पर जा चुके राजनाथ सिंह, केंद्रीय रक्षा मंत्री, भारत सरकार भी अपने पुत्रों क्रमशः जय शाह और पंकज सिंह-नीरज सिंह को महत्वपूर्ण पदों तक पहुंचा चुके हैं। यदि देखा जाए तो कांग्रेस और भाजपा के अलावा जितने भी यूपीए या एनडीए समर्थक क्षेत्रीय दल हैं, वो भी अपने अपने पुत्रों को अपनी राजनीतिक विरासत सौंप चुके हैं या ऐसी तैयारी में हैं।

इसलिए कहा जा सकता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को, सबसे सफल लोकतंत्र को हमारे नेताओं ने वंशानुगत राजतंत्र की तरह ही वंशानुगत लोकतंत्र में तब्दील कर दिया है। यदि कुछ बची-खुची कसर है तो वो गुजश्ते दशक या आने वाले दशक में पूरी हो जाएगी। इसका कारण प्रतिभाशाली डीएनए है या पूंजीवादी षड्यंत्र, यह आपको बाद में पता चलेगा। क्योंकि यूपी के समाजवादी पार्टी प्रमुख रहे स्व. मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश अपनी सत्ता अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र अखिलेश यादव को सौंप चुके थे। वहीं महाराष्ट्र के शिवसेना प्रमुख रहे स्व. बाला साहेब ठाकरे अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र उद्धव भाऊ ठाकरे, पूर्व मुख्यमंत्री महाराष्ट्र को सौंप चुके हैं। ये तो महज बानगी भर है, जबकि इसकी फेहरिस्त बड़ी लंबी है।

इसके पीछे अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि जब नौकरशाह का बेटा नौकरशाह, न्यायाधीश का पुत्र न्यायाधीश, उद्यमी का बेटा उद्यमी बन सकता है तो किसी राजनेता का बेटा राजनेता क्यों नहीं बन सकता है! बात में तो दम है, लेकिन भारतीय संविधान भी इस विषय में मौन है! इससे साफ है कि सत्ता की एक अलग सोच होती है जो राजतंत्र, लोकतंत्र और तानाशाही में भी लगभग एक समान होती है। यह सोच है वंशवादी सोच, जहां राजा या नेता खुद को महफूज समझता है।

यदि आप आजादी के आंदोलनों, संपूर्ण क्रांति और अन्ना हजारे के आंदोलनों पर गौर करेंगे तो यह साफ पता चलेगा कि इन सबका कुछ अघोषित एजेंडा रहा है, जिसमें व्यक्तिवाद, सम्पर्कवाद और वंशवाद सर्वाेपरि है। कहीं यह साफ दिखता है तो कहीं पर यह घुमाफिरा कर, लेकिन मूल मर्म यही कि सत्ता बड़ी बेवफा होती है, इसलिए चाहे जैसे भी हो इसे अपने परिवार के खूंटे से बांधे रहो। नेहरू-गांधी परिवार, संघ परिवार और क्षेत्रीय जातीय राजनीतिक परिवारों की सफलता-विफलता का कारण भी यही है।

हैरत की बात तो यह है कि जो समाजवादी-राष्ट्रवादी 1970-80-90 के दशक तक नेहरू-गांधी परिवार के वंशवाद का विरोध कर रहे थे, और ष्तख्त बदल दो ताज बदल दो, वंशवाद का राज बदल दोष् जैसे नारे लगा रहे थे, उन्होंने कैसा क्षेत्रीय वंशवाद चलाया, अब जगजाहिर हो चुका है। हालांकि, इनमें सबसे धैर्यशाली निकले बिहार के कद्दावर मुख्यमंत्री और जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने भी जब अपने बेटे निशांत कुमार को सियासत में उतारने की हरी झंडी दे दी और उनके संग गुलदस्ता वाली फोटो वायरल करवा दिया, तो लोगों के दिलोदिमाग में इस वंशवादी लोकतंत्र को लेकर कई सवाल पैदा हो रहे हैं।

पहला सवाल यह कि क्या पारिवारिक लोकतंत्र से आम भारतीयों का भला हो पाएगा? दूसरा सवाल यह कि, जो लोग हर बात में ब्राह्मणों या सवर्णों को कोस रहे थे, उन्होंने सत्ताधीश बनने के बाद कैसा आचरण प्रस्तुत किया? तीसरा सवाल यह कि, वंशवादी नेताओं ने अकूत सम्पत्ति जमा करते हुए हमारे देश की राष्ट्रीय सम्पदाओं को निजी हाथों में सौंपते जा रहे हैं और कोई राजनीतिक चहलकदमी नहीं दिखाई-सुनाई पड़ रही है, क्या इससे आम आदमी का भला होगा? चौथा सवाल यह है कि आरक्षण और सामाजिक न्याय, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद, क्षेत्रीयता बनाम राष्ट्रीयता का हश्र आने वाले दिनों में क्या होगा।

यह सवाल इसलिए कि जब तपे-तपाए नेताओं की जगह उनके अनुभवहीन पुत्र ले लेते हैं तो सिस्टम वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाता है, जैसा कि उससे उम्मीद किसी भी सभ्य समाज को होती है। इससे पार्टी और नेता, दोनों कमजोर होते हैं। सत्ता से हट जाते हैं। लेकिन जब उनका लक्षित दुरुपयोग एक दूसरे को शह-मात देने के लिए किया जाता है तो स्थिति काफी विकट हो जाती है। भारत और भारतीय जनमानस इसी संक्रमण कालीन स्थिति से गुजर रहे हैं।

चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हों, या इन जैसे अन्य नेतागण, जिन्होंने वंशवादी किले को बारीकीपूर्वक जमींदोज किया और खुद मठाधीश बन बैठे।

ऐसे में बिहार में पूर्व कैबिनेट मंत्री शकुनि चौधरी के पुत्र और मौजूदा उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी (कुशवाहा जाति) की सियासी धार को कुंद करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार (कुर्मी जाति) की जो सियासी लॉन्चिंग हो रही है, उससे लवकुश समाज की राजनीति कितनी मजबूत होगी, यह तो वक्त बताएगा।लेकिन जब उम्र गत कारणों से नीतीश कुमार राजनीति से अवकाश लेने के मुहाने पर खड़े हैं, तब उन्होंने अपने पुत्र की सियासी लॉन्चिंग कराकर यह संदेश दिया है कि भाजपा और कांग्रेस चाहे जो मंसूबे पाले, लेकिन बिहार की भावी राजनीति तेजस्वी यादव, निशांत कुमार, चिराग पासवान के ही इर्द-गिर्द घूमेगी।

यही वजह है कि बिहार में निशांत कुमार की शानदार लॉन्चिंग का गुप्त ठेका तेजस्वी यादव ने ले लिया है। उनका यह कहना कि प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश जी को श्लाडलाश् मुख्यमंत्री कहा। हालांकि, एक बार नीतीश पर भोजन की प्लेटें छीन लेने का आरोप भी उन्होंने ही लगाया था। उन्होंने कहा कि बिहार ने अपना मन बना लिया है। इसलिए बीजेपी यहां सत्ता हासिल नहीं कर पाएगी। वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में मौजूद संघी तत्व उनके बेटे निशांत कुमार के राजनीति में प्रवेश को रोकने के लिए साजिश रच रहे हैं। दरअसल, विपक्ष के नेता का मानना है कि निशांत कुमार के राजनीति में आने से जदयू के विलुप्त होने से बच जाने की संभावना है, जो बीजेपी और उसके समर्थकों को पसंद नहीं है। इससे उनकी भावी सियासत का मकसद कोई भी समझ सकता है।

वहीं, तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि सबसे पहले तो यह साफ होना चाहिए कि चाहे निशांत कुमार हो या कोई और राजनीति में प्रवेश करने का निर्णय व्यक्ति का अपना होना चाहिए। मेरे माता-पिता (पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और राबड़ी देवी) ने मुझे राजनीति में आने के लिए नहीं कहा था।जबकि मैंने बिहार का दौरा करने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं और आम जनता का मूड भांपते हुए खुद यह निर्णय लिया।

उन्होंने आगे कहा कि बेशक, अगर निशांत कुमार आगे आते हैं तो जदयू पार्टी को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। इसलिए जदयू में मौजूद संघियों की मदद से बीजेपी में कई लोग उनके प्रवेश को रोकने की साजिश में लगे हुए हैं।

वहीं, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश जी को ‘लाडला’ मुख्यमंत्री कहा। हालांकि, एक बार नीतीश पर भोजन की प्लेटें छीन लेने का आरोप भी उन्होंने ही लगाया था। मसलन, उन्होंने कई साल पहले नीतीश द्वारा एक रात्रिभोज को रद्द करने की घटना का जिक्र किया। फिर कहा कि पीएम मोदी जी को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई जब नीतीश जी ने, जब वो एनडीए में नहीं थे, विधानसभा के भीतर कुछ टिप्पणी की। अब नीतीश जी बीजेपी के सहयोगी हैं और उनके अपमानजनक बयानों से प्रधानमंत्री का सीना 56 इंच से भी ज्यादा चौड़ा हो गया है। इसलिए बिहार ने अपना मन बना लिया है। बीजेपी यहां सत्ता हासिल नहीं कर पाएगी, लेकिन वह मोदी और योगी जैसे अपने पोस्टर बॉय भेजकर कोशिश जारी रख सकती है।

आखिर में तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि यह उन सभी के लिए आखिरी मौका हो सकता है, क्योंकि चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं और बिहार के लोगों ने राजग को वोट नहीं देने का मन बना लिया है, जिसने राज्य पर करीब 20 साल तक शासन किया है। इसलिए उन्होंने हाल ही में भागलपुर दौरे पर आए बिहार के मुख्यमंत्री पर स्नेह बरसाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मखौल उड़ाया और दोनों नेताओं को पुरानी कटुता की याद दिलाई। दरअसल, बिहार में निशांत कुमार की शानदार लॉन्चिंग का गुप्त ठेका तेजस्वी यादव ने सिर्फ इसलिए ले लिया है कि उन्हें पता है कि जबतक जदयू है, तभी तक राजद की सत्ता में वापसी की संभावना है। और यदि भाजपा, जदयू के गैप को भर देगी तो राजद भी कभी बिहार की सत्ता में नहीं आ पाएगा, पड़ोसी यूपी वाली सपा की तरह।

हालांकि, स्वभाव से सुस्त निशांत कुमार अपने पिताश्री नीतीश कुमार की उम्मीदों पर कितने खरे होंगे, यह तो बिहार विधानसभा चुनाव जनादेश 2025 से ही पता चलेगा। क्योंकि सियासी सफलता के लिए जिस राजनीतिक चतुराई की जरूरत होती है, वह तो उनमें कभी दिखी नहीं। हां, जैसे राजद नेताओं ने राबड़ी देवी को सफल बना दिया, उसी तरह से जदयू नेताओं की फौज निशांत कुमार को भी सफल बना सकती है।


إرسال تعليق

0 تعليقات

Top Post Ad