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पहले दो भाई और भतीजे ने कारगिल युद्ध में पाक से लिया था लोहा, अब बेटे दे रहे जवाब

SV News

प्रयागराज (राजेश सिंह)। बहादुरपुर विकास खंड के जमुनीपुर गांव निवासी दो भाई और भतीजे ने कारगिल युद्ध में पाक को मुंहतोड़ जवाब दिया था। अब दोनों भाइयों के बेटे यानी चचेरे भाई एकबार फिर मोर्चे पर पाकिस्तान के दांत खट्टे कर रहे हैं। शुक्रवार को परिजनों से बातचीत में उन्होंने युद्ध के हालात बयां किए। साथ ही परिजनों को हिदायत दी कि आप फोन मत करना, मुझे समय मिलेगा तो स्वयं फोन करूंगा। 
जमुनीपुर गांव के पूर्व सैनिक रामकृष्ण मिश्र और उनके छोटे भाई बालकृष्ण मिश्र तथा भतीजे सुधाशंकर मिश्र ने कारगिल की जंग में हिस्सा लिया था। अब भारत की ओर से शुरू किए गए आपरेशन सिंदूर में रामकृष्ण मिश्र के पुत्र संदीप कुमार मिश्र तथा भतीजे सूरज कुमार मिश्र एकबार फिर मोर्चे पर हैं। दोनों श्रीनगर बार्डर पर तैनात हैं।
सूरज के पिता विनय कुमार मिश्र ने बताया कि जब से पाकिस्तान से युद्ध हो रहा है बेटे को लेकर चिंतित हैं। दूसरी ओर सूरज ने फोन पर बताया कि रात भर सीमा पार से पाकिस्तान ड्रोन से हमला करता रहा, जिसे हम लोगों ने नाकाम कर दिया। उसने कहा कि अभी-अभी ड्यूटी प्वाइंट से आया हूं, थोड़ा सोने जा रहा हूं। किसी भी समय दोबारा ड्यूटी प्वाइंट पर जाना पड़ सकता है, इसलिए आपलोग फोन मत करना, मुझे समय मिलेगा तो फोन करूंगा।
वहीं दूसरी भाई रामकृष्ण मिश्र के बेटे संदीप ने शुक्रवार की सुबह फोन कर परिजनों को बताया कि बृहस्पतिवार की शाम सात बजे से देर रात डेढ़ बजे तक पाकिस्तान की तरफ से जमकर गोलाबारी हुई जिसका हम लोगों ने मुंहतोड़ जवाब दिया है।
रामकृष्ण मिश्र के छोटे भाई बालकृष्ण मिश्र भी सेना में रहे हैं। उन्होंने बताया कि 22 अगस्त 1986 को सेना में ईएमई यूनिट में इंजीनियरिंग में भर्ती हुए थे। वे 1999 में श्रीनगर के द्रास सेक्टर में तैनात थे। अपने कारगिल युद्ध के अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उस वक्त आज की तरह सुविधाएं नहीं थी। दुश्मन ऊपर पहाड़ की ऊंचाई पर था और हम लोग नीचे। फिर भी हमने हार नहीं मानी और पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। बालकृष्ण 2010 में सेवानिवृत होने के बाद एसबीआई कोटवा शाखा में सुरक्षा गार्ड के पद पर तैनात हैं।

सेवानिवृत्ति के बाद भी देशसेवा का जज्बा बरकरार, सरकार चाहे तो दुश्मन के खट्टे कर सकते हैं दांत

पूर्व सैनिक रामकृष्ण मिश्र ने बताया कि वह 22 मई 1980 को सेना के 100 फील्ड यूनिट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। 1999 में वे कारगिल युद्ध के वक्त सांभा बार्डर जम्मू कश्मीर में तैनात थे। सेवानिवृत्ति के बाद भी उनमें देशसेवा का जज्बा कम नहीं हुआ है। उनका कहना है कि अब भी उनमें इतना दम है कि बार्डर पर जाकर पाकिस्तान से लोहा ले सकते हैं। जोशीले अंदाज में कहा कि सरकार चाहे तो वह पुराने जज्बे के साथ फिर से युद्ध के मैदान में उतरकर पाकिस्तानियों के दांत खट्टे कर सकते हैं।

परिजन बनाना चाहते थे इंजीनियर और सूरज चोरी छिपे सेना में हो गया भर्ती

सूरज कुमार मिश्र के घर वाले उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे, पर बचपन से ही चाचा एवं चचेरे भाई की तरह सेना में भर्ती होकर वह देश की सेवा करना चाहता था। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए सूरज ने बगैर घर वालों को बताए ही सेना की सभी परीक्षा पास कर ली। इसके बाद घरवालों को जानकारी दी। इस पर परिजनों ने भी उसकी इच्छा का सम्मान किया।

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