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भारत-जापान ने दुनिया को दिया स्पष्ट संदेश- एकध्रुवीय दबाव की राजनीति अब टिकाऊ नहीं रही

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देखा जाये तो अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत तक के टैरिफ ने भारत के कई क्षेत्रों पर दबाव डाला है। किन्तु, टोक्यो में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन ने यह दिखा दिया कि भारत अब वैश्विक दबाव से भयभीत नहीं, बल्कि अवसर तलाशने वाला देश है...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा केवल एक कूटनीतिक पड़ाव भर नहीं है। यह यात्रा उस ऐतिहासिक मोड़ का संकेत है जहाँ भारत और जापान मिलकर एशिया ही नहीं, बल्कि पूरे वैश्विक परिदृश्य को प्रभावित करने वाले साझेदार के रूप में उभर रहे हैं। टोक्यो में भारत-जापान आर्थिक मंच पर प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब अपने आर्थिक, सामरिक और भू-राजनीतिक विकल्पों को लेकर कहीं अधिक आत्मविश्वासी और निर्णायक हो चुका है।

देखा जाये तो अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत तक के टैरिफ ने भारत के कई क्षेत्रों पर दबाव डाला है। किन्तु, टोक्यो में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन ने यह दिखा दिया कि भारत अब वैश्विक दबाव से भयभीत नहीं, बल्कि अवसर तलाशने वाला देश है। मोदी ने बिना नाम लिए यह संदेश अमेरिका को दिया कि भारत किसी एक बाज़ार या शक्ति पर निर्भर नहीं रहेगा। जापान में दिया गया यह भाषण वस्तुतः आर्थिक स्वायत्तता का घोषणापत्र था। सुधार, पारदर्शिता, राजनीतिक स्थिरता और नीति की प्रेडिक्टेबिलिटी पर बल देकर मोदी ने निवेशकों को यह विश्वास दिलाया कि भारत उनके लिए न केवल सुरक्षित, बल्कि लाभकारी गंतव्य है।

हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिका इन दिनों अपने आर्थिक और सामरिक हितों के लिए लगभग हर देश पर दबाव बनाने की नीति पर चल रहा है। कभी वह 50ः तक का टैरिफ लगाकर व्यापार को नियंत्रित करता है, तो कभी तकनीकी निर्यात और डॉलर प्रणाली के माध्यम से देशों को अपनी शर्तें मानने पर मजबूर करता है। यह नीति भले ही अमेरिका को अल्पकालिक लाभ दे, लेकिन लंबे समय में यह वैश्विक असंतोष और नए गठबंधनों को जन्म दे रही है। देखा जाये तो 21वीं सदी का एशिया अब केवल “बाज़ार” नहीं रह गया है। चीन के बढ़ते प्रभाव, भारत के उदय और जापान की तकनीकी ताक़त ने अमेरिका की एकतरफ़ा दबाव नीति को चुनौती दी है। एशिया की यह नई तस्वीर इस सदी को सचमुच “एशियाई सदी” बनाने की दिशा में आगे बढ़ा रही है।

भारत और जापान के बीच साझेदारी अमेरिकी दबाव का सबसे ठोस जवाब है। जापान की तकनीक और भारत का विशाल बाज़ार मिलकर वैकल्पिक सप्लाई चेन खड़ा कर सकते हैं। सेमीकंडक्टर, एआई, क्वांटम और न्यूक्लियर ऊर्जा में संयुक्त पहल अमेरिका की तकनीकी पकड़ को संतुलित कर सकती है। इसके अलावा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यह साझेदारी चीन और अमेरिका दोनों के वर्चस्ववादी रुख को संतुलित करेगी।

भारत-जापान का सहयोग दुनिया को यह स्पष्ट संदेश देता है कि एकध्रुवीय दबाव की राजनीति अब टिकाऊ नहीं रही। एशियाई सहयोग ही वैश्विक स्थिरता का आधार बनेगा। साथ ही साझेदारी और सह-समृद्धि का मॉडल, दबाव और एकाधिकार से कहीं अधिक व्यवहार्य है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका जितना दबाव बढ़ाएगा, भारत और जापान जैसे साझेदार उतनी ही मज़बूती से वैकल्पिक गठजोड़ खड़े करेंगे। इस साझेदारी में केवल द्विपक्षीय हित ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संदेश छिपा हैकृ भविष्य दबाव और एकाधिकार का नहीं, बल्कि सहयोग और साझा समृद्धि का है।

भारत-जापान संबंधों की मजबूती की बात करें तो आपको बता दें कि “जापान टेक्नोलॉजी पावरहाउस है और भारत टैलेंट पावरहाउस” है, यह कह कर प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों देशों के बीच भविष्य की साझेदारी का खाका पेश कर दिया है। देखा जाये तो ऑटोमोबाइल सेक्टर में जिस प्रकार जापानी तकनीक और भारतीय बाज़ार ने सफलता का मॉडल पेश किया, वैसी ही संभावनाएँ अब सेमीकंडक्टर, रोबोटिक्स, बैटरियों, शिपबिल्डिंग और न्यूक्लियर ऊर्जा में हैं। भारत की विशाल युवा शक्ति और जापान की अनुसंधान क्षमता मिलकर 21वीं सदी की तकनीकी क्रांति को दिशा दे सकती है। यही वह आधार है जिस पर “एशियाई सदी” की बहुप्रतीक्षित इमारत खड़ी हो सकती है।

वैश्विक साउथ और एशिया की भूमिका

मोदी का यह वक्तव्य कि “भारत, जापानी कारोबार के लिए ग्लोबल साउथ का स्प्रिंगबोर्ड है” केवल कूटनीतिक विनम्रता नहीं, बल्कि एक गहरी रणनीति का भी संकेत है। चीन के बढ़ते प्रभाव और अमेरिका के संरक्षणवादी रुख के बीच भारत-जापान साझेदारी विकासशील देशों के लिए एक नया विकल्प है। इसके अलावा, अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में भारत की स्वीकृति और जापान की पूंजी मिलकर वह शक्ति-संतुलन तैयार कर सकते हैं, जिसकी आज दुनिया को आवश्यकता है। यह साझेदारी चीन के “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” के विकल्प के रूप में भी देखी जा सकती है।

भारत की वैश्विक छवि रू एक विश्वसनीय ध्रुव

मोदी ने अपने भाषण में भारत की आर्थिक उपलब्धियों को गिनाते हुए बताया कि 18ः वैश्विक वृद्धि में योगदान, 700 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार, कम महँगाई, कम ब्याज दरें और मजबूत बैंकिंग प्रणाली, ये आंकड़े केवल सांख्यिकी नहीं हैं; यह उस विश्वसनीयता का प्रमाण हैं, जो आज भारत को निवेशकों की पहली पसंद बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिम के अनेक देशों में जहाँ अस्थिरता और मंदी का माहौल है, वहीं भारत एक स्थिर, पारदर्शी और ऊर्जावान अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है।

अमेरिका और चीन को संदेश

इस यात्रा के राजनीतिक संदेश को अनदेखा नहीं किया जा सकता। अमेरिका के लिए संदेश यह था कि भारत केवल दबाव झेलने वाला बाज़ार नहीं, बल्कि वैश्विक साझेदारों के साथ स्वतंत्र रणनीति बनाने वाला राष्ट्र है। चीन के लिए संदेश यह था कि एशिया में अकेले उसकी दावेदारी नहीं है। जापान और भारत मिलकर एक वैकल्पिक ध्रुव बना सकते हैं, जो “एशियाई सदी” को बहुध्रुवीय बनाएगा।

देखा जाये तो भारत-जापान संबंधों में यह नया अध्याय केवल निवेश या कारोबार तक सीमित नहीं है। यह एक रणनीतिक दृष्टि का हिस्सा है, जहाँ दोनों देश एशिया और विश्व के भविष्य को परिभाषित करने की भूमिका निभा सकते हैं। मोदी की यह यात्रा ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि इसमें आर्थिक सहयोग को रणनीतिक साझेदारी का रूप दिया गया, अमेरिकी दबाव के बीच भारत की आत्मनिर्भरता का संदेश दिया गया और यह संकेत भी दिया गया कि आने वाली सदी केवल पश्चिम की नहीं, बल्कि एशिया की भी होगी। प्रधानमंत्री मोदी का यह जापान दौरा उस बड़े बदलाव का प्रतीक है, जिसमें भारत अब विश्व व्यवस्था का ‘पार्टिसिपेंट’ नहीं, बल्कि ‘शेपिंग पावर’ बनता जा रहा है।


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