नई दिल्ली। 50 साल पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के बाद सुशीला कार्की ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि वह नेपाल की राजनीति में एक कीर्तिमान स्थापित करेंगी। नेपाली सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश रहीं 73 वर्षीय कार्की अब देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं।
सुशीला कार्की को जुलाई, 2016 में नेपाल की 24वीं प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। वह लगभग 11 महीने इस पद पर रहीं। कार्की को तत्कालीन शेरबहादुर देउबा सरकार द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था, जिसे राजनीतिक रूप से पक्षपाती माना गया था और बाद में इसे वापस ले लिया गया था।
सात जून, 1952 को भारतीय सीमा के निकट विराटनगर के शंकरपुर-3 में जन्मी कार्की ने 1971 में नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय के महेंद्र मोरंग परिसर से स्नातक और 1975 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। 1978 में कानून की डिग्री हासिल करने के लिए वह त्रिभुवन विश्वविद्यालय लौट आई थीं।
साधारण किसान परिवार में पली बढ़ीं
कार्की अपने माता-पिता की सात संतानों में सबसे बड़ी हैं और साधारण किसान परिवार में पली-बढ़ी हैं। कार्की ने न्यायिक पेशे में 32 वर्ष बिताए। उन्होंने 1979 में विराटनगर में वकालत शुरू की। इसी बीच 1985 में उन्हें महेंद्र मल्टीपल कैंपस, धरान में सहायक शिक्षिका के रूप में भी नियुक्त किया गया। 2007 में वह वरिष्ठ अधिवक्ता बनीं और 2009 में सुप्रीम कोर्ट में तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त हुईं। 18 नवंबर, 2010 को वह स्थायी न्यायाधीश बनीं।
दुर्गा प्रसाद सुबेदी से हुई शादी
कार्की का विवाह नेपाली कांग्रेस के पूर्व लोकप्रिय नेता दुर्गा प्रसाद सुबेदी से हुआ है। उनकी मुलाकात बीएचयू में अध्ययन के दौरान हुई थी। नेपाली कांग्रेस के एक सूत्र ने बताया, सुबेदी 1970 के दशक में नेपाली कांग्रेस के युवा क्रांतिकारी सदस्य थे। वह उस समूह का हिस्सा थे जिसने नेपाल के इतिहास में पहली बार तत्कालीन राजा बीरेंद्र शाह के शासनकाल के दौरान पार्टी विहीन पंचायत व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए पार्टी की सशस्त्र क्रांति के लिए 30 लाख रुपये जुटाने हेतु रायल नेपाल एयरलाइंस के एक विमान का अपहरण किया था।
2018 में सुबेदी ने राजनीतिक उद्देश्य के लिए विमान अपहरण के अपने अनुभव पर विमान विद्रोह नामक एक पुस्तक लिखी। सेवानिवृत्ति के बाद कार्की ने भी दो पुस्तकें लिखी हैं। श्न्यायश् उनकी जीवनी है, जबकि कारा 1990 के जन आंदोलन के दौरान जेल में उनके अनुभवों से प्रेरित उपन्यास है, जिसके कारण नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र बहाली हुआ।
