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साधक के सिद्धि तक की यात्रा में आती हैं चार बाधाएंः पं निर्मल कुमार शुक्ल

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मानस सम्मेलन पांती मेजा रोड द्वितीय दिवस 

मेजारोड, प्रयागराज (विमल पाण्डेय)। रामायण के सुंदर काण्ड में वर्णित हनुमान जी की लंका यात्रा का बड़ा ही दार्शनिक रहस्य है यह मात्र एक कहानी नहीं बल्कि साधक के परम लक्ष्य प्राप्त करने का सूत्र है। हनुमान जी जब सीता जी के शोध के लिए लंका चले तो उन्हें चार बाधाएं पार करना पड़ा। सबसे पहले मैनाक पर्वत आया शास्त्रों में वर्णन है कि ए सोने का पर्वत है। सोना प्रत्यक्ष लोभ का स्वरूप है।जीव की साधना यात्रा में लोभ पहली बाधा है। बड़े बड़े साधक भी घर बार छोड़कर जब आध्यात्मिक यात्रा पर निकलते हैं तो लोभ अनेकों रूप धारण करके प्रकट है जाता है मठ मंदिर आश्रम धर्मशाला शिष्य परिवार ए सब उसी लोभ के स्वरूप हैं। हनुमान जी ने मैनाक को प्रणाम करके उसे विदा किया इस प्रकार पहली लोभ की वाधा पार हुए। दूसरे क्रम में सुरसा का आगमन हुआ यह सुरसा देवताओं द्वारा हनुमान जी की परीक्षा लेने के लिए भेजी गई है।उसने कहा कि मैं तुम्हें खाऊंगी और हनुमान जी की को खाने के लिए अपना मुंह फैलाने लगी वह जितना मुंह फैलाती हनुमान जी तुरंत उससे दूना हो जाते। अंत में सुरसा ने 100 योजन मुंह फैलाया ए तुरंत ही छोटे बन गये तथा उसके मुंह में जाकर वापस आ गए प्रणाम करके बोले मैं तो आपके मुंह में प्रवेश कर गया खाई क्यों नहीं अंततः सुरसा आशीर्वाद देकर विदा हो गई।ए सुरसा हमारे जीवन की कीर्ति है जब हमारी कीर्ति 100 योजन विस्तृत हो जाए तो हमें छोटा बन जाना चाहिए। हनुमान जी ने सुरसा पर प्रहार नहीं किया क्योंकि कीर्ति मनुष्य से सत्कर्म कराती है कीर्ति के लोभ में ही मानव सत्कर्म करता है इसलिए कीर्ति की कामना समाप्त नहीं होनी चाहिए किन्तु विस्तृत कीर्ति वाले को छोटा बनने की कला भी सीखना चाहिए।तीसरे क्रम में सिंहिका का आगमन होता है यह हमारे जीवन की ईर्ष्या है। सुरसा समुद्र की गहराई में रहती है किन्तु आकाश में उडने वालों का भक्षण करती है। समुद्र में लाखों जीव रहते हैं लेकिन ईर्ष्या तै अपने से ऊपर रहने वाले से होती है। हनुमान जी ने कीर्ति रूपी सुरसा को नहीं मारा किंतु ईर्ष्या स्वरूपा सिंहका को मार डाला ईर्ष्या का समूल विनाश कर देना चाहिए। चौथे क्रम में लंकिनी आती है यह हमारे जीवन की आसक्ति है।ए हनुमान जी से कहती है लंका में प्रवेश करने वाला चोर मेरा आहार है मैं तुझे खा जाऊंगी। हनुमान जी ने कहा सबसे पहले तेरा राजा रावण माता सीता को चुराकर ले गया उसे तो नहीं खाई और उसे  खाने जा रही है जो चोर का पता लगाने जा रहा है। मुष्टिका प्रहार करके हनुमान जी ने उसकी बुद्धि परिवर्तन कर दिया इस प्रकार आसक्ति पर विजय पाकर लंका में प्रवेश करते हुए सीता जी का दर्शन प्राप्त करके धन्य हो गये इस प्रकार सुंदर का साधना सिद्धि का अनुपम उदाहरण है। कथा में स्वामी श्रीधरा चार्य जी प्रयाग पीठाधीश्वर पं राम सूरत जी मानस मराल वाराणसी और आस्था दूबे जबलपुर ने भी विभिन्न प्रसंगों पर गंभीर विवेचन करके श्रृद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। मंच संचालन करते हुपं विजया नंद उपाध्याय जी ने सभी विद्वानों का स्वागत किया। आयोजन के सूत्रधार पं नित्यानंद उपाध्याय ने सभी क्षेत्रीय श्रृद्धालुओं से अधिकाधिक संख्या में कथामृत पान करने का आग्रह किया है।

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