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अपराध की श्रेणी में नहीं आता गोवंशी पशुओं का परिवहनः हाईकोर्ट

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प्रयागराज (राजेश सिंह)।  इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने दोहराया है कि उत्तर प्रदेश में गोवंशी पशुओं का परिवहन अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। न्यायालय के सामने ऐसे मुकदमों की बाढ़ आ रही, जिसमें लोगों को गोहत्या अधिनियम में फर्जी तरीके से फंसाया जा रहा है।

कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद और डीजीपी राजीव कृष्ण से शपथ-पत्र मांगा है कि गोहत्या अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने के लिए क्या किया गया है? सात नवंबर तक शपथ-पत्र नहीं आता है तो दोनों अधिकारी कोर्ट में स्वयं प्रस्तुत होकर उत्तर दें। कोर्ट ने उक्त दोनों शीर्ष अधिकारियों से पूछा है कि क्यों नहीं ऐसे मामलों में सरकार पर भारी जुर्माना लगाया जाए। इसके अतिरिक्त न्यायालय ने गोवंशी पशुओं के मामलों में भीड़ हिंसा व कुछ लोगों-संगठनों की अति सक्रियता पर लगाम लगाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में भी उत्तर मांगा है।

यह आदेश जस्टिस अब्दुल मोईन व जस्टिस एके चौधरी की पीठ ने प्रतापगढ़ के वाहन मालिक राहुल यादव की याचिका पर पारित किया। कोर्ट ने कहा कि इन दिनों उसके सामने गोहत्या अधिनियम में फर्जी फंसाए जाने के बहुत मामले आ रहे हैं, जिनमें याची का काफी पैसा और कोर्ट का बहुमूल्य समय बर्बाद हो जाता है। कोर्ट ने पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि प्रदेश में गोवंशी पशुओं का मात्र परिवहन करना अपराध नहीं है।

इस लिए पुलिस कर रही परेशान

कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि याची को पुलिस केवल इसलिए परेशान कर रही थी, क्योंकि गाड़ी उसके नाम पंजीकृत थी। गाड़ी उसका ड्राइवर चला रहा था और उस पर नौ गोवंशी पशु लादकर अमेठी से प्रतापगढ़ ले जाए जा रहे थे। कोर्ट ने यह भी पाया कि सभी नौ गोवंशी पशुओं को कोई चोट नहीं थी और ना ही उनका वध ही हुआ था, ऐसे में याची को गोहत्या अधिनियम में फंसना गलत है। कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि याची को प्रताड़ित ना किया जाए।

हालांकि, कोर्ट ने केस की विवेचना नहीं रोकी है और याची को पुलिस का सहयोग करने को कहा है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी को यह बताने के लिए कहा है कि गोवंशी पशुओं के मामलों में सतही प्राथमिकियां क्यों दर्ज की जा रही हैं और ऐसा हो रहा है तो सूचनाकर्ता और संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है?

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