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सप्ताह में 2 दिन प्लेटलेट डोनेट कर सकते हैंः डॉ. अक्षय बत्रा

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प्रयागराज (राजेश सिंह)। इलाहाबाद नर्सिंग होम्स और प्राइवेट डॉक्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से वार्षिक कॉन्फ्रेंस हेल्थकॉन-2025 रविवार को प्रो. प्रीतम दास ऑडिटोरियम में हुआ। आज के समय में और लगातार बदलते मेडिकल साइंस और नई टेक्नोलॉजी के आने से यह जरूरी है कि हर डॉक्टर को अपने इलाज के तरीके की अच्छी जानकारी हो। इस पर मंथन हुआ।

होमी भाभा कैंसर हॉस्पिटल, वाराणसी के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के चीफ डॉ. अक्षय बत्रा ने रैंडम डोनर प्लेटलेट्स पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा अब हमें एफेरेसिस से रैंडम डोनर प्लेटलेट की जगह सिंगल डोनर प्लेटलेट पर जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सिंगल डोनर प्लेटलेट (एफेरेसिस) का एक पाउच लगभग 8-10 रैंडम डोनर प्लेटलेट के पाउच के बराबर होता है और एक पाउच से प्लेटलेट 40-50 हजार बढ़ जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि एक डोनर हफ्ते में दो बार, महीने में 5 बार या साल में 25 बार प्लेटलेट डोनेट कर सकता है।

डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर बने कानून पर फोकस

डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए, एडवोकेट डॉ. अरुण मिश्रा (मुंबई) ने मेडिको लीगल कॉम्प्लीकेशंस और हॉस्पिटल और नर्सिंग होम पर लागू होने वाले अलग-अलग कानूनों पर एक सेशन किया। उन्होंने लाइसेंस, मेडिको लीगल केस, हर घटना के डॉक्यूमेंटेशन की अहमियत, क्रिमिनल लायबिलिटीज, पैरामेडिकल स्टाफ की गलतियों और हॉस्पिटल और नर्सिंग होम के लिए अलग-अलग लायबिलिटीज के बारे में बात की।

लखनऊ के मेदांता हॉस्पिटल के डॉ. निशांत मालवीय ने एडवांस्ड लैप्रोस्कोपिक और रोबोटिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी और हेपेटोबिलरी सर्जरी के बारे में बताया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि रोबोटिक सर्जरी ने मरीज़ों के पॉजिटिव नतीजे और जल्दी ठीक होने में बड़ा बदलाव किया है। आजकल कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ (हार्ट अटैक) जवान और अधेड़ उम्र के लोगों में बहुत आम हो रही है, यह अब सिर्फ़ बुज़ुर्गों की बीमारी नहीं रही।

फोर्टिस हॉस्पिटल, नई दिल्ली के जाने-माने कार्डियो थोरेसिक सर्जन और डस्छ मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद के एल्युमिनाई डॉ. संजय गुप्ता ने कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ को मैनेज करने के मौजूदा तरीकों और बाईपास सर्जरी की भूमिका के बारे में डिटेल में जानकारी दी। उन्होंने कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ का पता लगाने और उसे रोकने के तरीकों के बारे में भी डिटेल में बताया।

उन्होंने कहा, हर साल एक के बाद एक शहर डेंगू और दूसरी वायरल बीमारियों के बोझ तले दब रहे हैं। इस बीमारी की वजह से प्लेटलेट की डिमांड बहुत ज़्यादा बढ़ गई है। प्लेटलेट्स की इस कमी को प्लेटलेटफेरेसिस (ैक्च्) से बहुत आसानी से पूरा किया जा सकता है।

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