प्रयागराज के गंगा और यमुना में स्नान के लिए पहुंचेंगे श्रद्धालु
प्रयागराज (राजेश सिंह)। 5 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्वयं देवता दीपावली का उत्सव मनायेंगे। इस वर्ष देव दीपावली पर भद्रावास और शिववास जैसे मंगलकारी योग बन रहे हैं। इस योग में श्रद्धापूर्वक पूजा करने से सुख-समृद्धि आती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
झूंसी स्थित स्वामी नरोत्तमानंद गिरि वेद विद्यालय के प्राचार्य ब्रजमोहन पाण्डेय ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में किसी भी पवित्र नदी, विशेष रूप से गंगा, यमुना आदि में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। कार्तिक स्नान के बाद श्रद्धालु भगवान शिव और विष्णु की पूजा करते हैं और सायंकाल दीप दान व आरती की जाती है जिसमें देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है।
उन्होंने बताया कि इस दौरान प्रमुख रूप से मंदिरों में, घर के मुख्य द्वार पर, तुलसी के पौधे के पास और पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाए जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। माता तुलसी का पृथ्वी पर प्राकट्य भी इसी तिथि को माना जाता है। सिख धर्म में इसी दिन गुरु नानक देव जयंती (गुरु पर्व) मनाया जाता है।
भगवान शिव की विजय गाथा से जुड़ी है दीप दीपावली
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली मुख्य रूप से भगवान शिव की विजय गाथा से जुड़ी है। तारकासुर के तीन पुत्रों, (तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली) जिन्हें सामूहिक रूप से त्रिपुरासुर कहा जाता था, ने धरती समेत स्वर्ग में आतंक फैला रखा था और तीन अभेद्य नगर (त्रिपुर) बना लिए।
त्रिपुरासुर के अत्याचारों से सभी देवता बहुत दुखी और परेशान थे। देवताओं के अनुरोध पर, भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में एक विशेष रूप धारण कर त्रिपुरासुर का वध किया और उनके तीनों नगरों को नष्ट कर दिया। त्रिपुरासुर के वध से प्रसन्न होकर, सभी देवी-देवताओं ने स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर दीप जलाकर खुशियां मनाईं। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
यह है मूहुर्त
कार्तिक पूर्णिमा तिथिः 4 नवंबर को रात 09.33 बजे शुरू होकर 5 नवंबर को शाम 7.18 बजे समाप्त होगी।
शुभ मुहूर्त (प्रदोष काल)ः शाम 05.15 बजे से 07.18 बजे तक (यह दीपदान के लिए शुभ समय है)।
