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प्रयागराजः सोमदत्त की मजीरा की मधुर धुन, भक्ति में डूब जाते हैं सुनने वाले श्रद्धालु

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प्रयागराज (राजेश सिंह)। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की लहरें संगम तट पर आस्था के ज्वार को असीमित ऊंचाई दे रही है। यहां प्रभु किस रूप में मिल जाएं साधक को नहीं पता। फिर भी मानव मन अपने प्रभु को पहचान कर उसके अनुरूप धुन गुनगुनाने और तराना छेड़ने में पीछे नहीं है। कभी सीता राम, राधे श्याम की तान तो कभी नन्नहीं सी प्यारी सी आई कोई परी, पालना में झूलती रहे...सुनाई देता है।

यज्ञ की धरा पर माघ मेला की तैयारी 

यज्ञ की इस धरा पर इन दिनों माघ मेला की तैयारियां चल रही हैं। मेला प्राधिकरण में संत महात्मा और संस्थाएं भूमि आवंटन के लिए आवेदन कर रहे हैं। दूसरी ओर देशभर से तरह तरह के दुकानदारों, हस्तशिल्पियों और कलाकारों के आने का क्रम भी शुरू हो चुका है।

मजीरा की धुन पर लोगों को लुभा रहे कुंडा के सोमदत्त

इन्हीं में से एक हैं कुंडा तहसील के सोमदत्त शिल्पकार। इनमें सुर और ताल में सामंजस्य भी रखते हैं। वह अपने साथ मजीरा लेकर आए हैं। उनका लक्ष्य इसे बेंचकर धन अर्जन है। कहते हैं, ग्राहक भगवान होता है। उसे रिझाए बिना मन की मुराद नहीं पूरी होगी। तो जैसे प्रभु, वैसी सेवा। अपने मजीरे से वह लोगों का ध्यान खींचते हैं।

हरे रामा-हरे कृष्णा की गूंज रही धुन

यदि बुजुर्ग सामने आए तो हरे राम, हरे कृष्ण की धुन पूरी श्रद्धा के साथ सुनाते हैं। यदि बच्चे मिल गाए तो नन्हीं परी का किस्सा सुनाते हैं। यदि युवा मन से मुलाकात हुई तो सोमदत्त सरा रा रा... से समा बांध देते हैं। और भी कोई मिला तो रघुपति राघव राजा राम... के साथ बम बम भोले की झंकार सुनाते हैं। हालांकि पीतल के मजीरे की चमक में वह भक्ति की ज्योति जलाने की पूरी कोशिश करते हैं।

पिता से सीखा शिल्प अब कर रहे हरि गुणगान 

जैसे ही संगम की लहरों से आध्यात्मिक तरंगे जुड़ती हैं तो अर्थ का लक्ष्य पूरा हो जाता है। सोमदत्त का परिवार इसी कला से पल रहा है। कहते हैं बचपन से पिता के साथ शिल्प सीखा, अब भजन गाकर हरि का गुणगान कर रहे हैं।

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