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तकनीकी विकास पर ध्यान दे निजी क्षेत्र, निर्भरता रखे कम

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आज दुनिया के विकसित देशों में होड़ इस बात की नहीं है कि कौन ज्यादा सक्षम ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) बनाएगा या ज्यादा एआइ यूनिट्स स्थापित करेगा। अब यह दौड़ क्वांटम कंप्यूटिंग में क्षमता विकसित करने की हो गई है...

 केंद्र सरकार देश के निजी क्षेत्र से लगातार कह रही है कि वह अपने लाभ का कुछ प्रतिशत शोध एवं विकास यानी आरएंडडी में लगाए। हाल में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख ने भी कहा कि निजी क्षेत्र पैसे को ‘नकद’ के रूप में रखने की जगह निवेश करे तो देश की जीडीपी सात प्रतिशत तक जा सकेगी। भारत में शोध एवं विकास जैसे तात्कालिक लाभ न देने वाले उपक्रमों को सरकार के भरोसे छोड़ने का निजी क्षेत्र का रिकार्ड रहा है।

हालांकि शोध एवं विकास के लाभ लेने में वे सबसे आगे रहते हैं। अमेरिका जैसे संपन्न देशों में निजी क्षेत्र आरएंडडी के लिए सरकार का इंतजार नहीं करता। गूगल, एनवीडिया या माइक्रोसाफ्ट अधिकांश नवाचार अपने बूते करते हैं। क्वांटम कंप्यूटिंग में गूगल का ‘विलो’ इसका ताजा उदाहरण है।

तकनीकी नवाचार मानव का स्वभाव है। चूंकि यह जीवन और उसके उपादानों को सहज और सस्ता करता है, लिहाजा इसे अंगीकार करना अपरिहार्य होता है। बैलगाड़ी, साइकिल, मोटर-चालित वाहन, वायुयान-इनमें से किसी के प्रयोग को रोकना समाज को निश्चित ही अवनति की ओर ले जाता है। कंप्यूटर और इंटरनेट तकनीकी का नया दौर है-एआइ, लेकिन यह दौर यहीं नहीं ठहरा है। अगला चरण क्वांटम कंप्यूटिंग का है।

यह भी वर्चुअल फेज से निकल कर वास्तविक और व्यावहारिक प्रयोग में आने लगा है। नए क्वांटम कंप्यूटर दुनिया के सबसे तेज सुपर कंप्यूटर के मुकाबले लाखों गुना तेजी से गणना करने जा रहे हैं। चिकित्सा, शिक्षा के साथ कोविड जैसी महामारी में वैक्सीन तैयार करने और कैंसर की कोशिकाओं का त्वरित विश्लेषण कर सटीक निदान बताने में ही नहीं, बल्कि युद्ध में भी इस नई टेक्नोलाजी की अप्रतिम भूमिका होगी।

आज दुनिया के विकसित देशों में होड़ इस बात की नहीं है कि कौन ज्यादा सक्षम ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) बनाएगा या ज्यादा एआइ यूनिट्स स्थापित करेगा। अब यह दौड़ क्वांटम कंप्यूटिंग में क्षमता विकसित करने की हो गई है। जो देश सबसे ज्यादा क्यूबिट्स वाले क्वांटम कंप्यूटर बना सकेगा, वही विजयी होगा-बौद्धिक ही नहीं, आर्थिक और सामरिक रूप से भी। फिलहाल इस दौड़ में अमेरिका का गूगल अपने सुपर कंप्यूटर विलो और चीन अपने जूचोंगझी-3 के साथ खड़े हैं। यूरोप एक जमाने में वैज्ञानिक शोध में सबसे आगे रहा था, लेकिन अब इसमें पिछड़ता जा रहा है।

भारत भी इस दौड़ में पीछे है। रेस में बना रहना है तो अमेरिका और चीन का मुकाबला करने के लिए उसे अपनी पूरी शक्ति लगानी होगी। 2021 में 76,000 करोड़ रुपये (85 करोड़ डालर) के परिव्यय के साथ केंद्र सरकार ने नेशनल सेमीकंडक्टर मिशन शुरू किया, जबकि क्वांटम कंप्यूटिंग में प्रमुख देशों के प्रयास देखते हुए 2024 में नेशनल क्वांटम मिशन के लिए अगले सात साल के लिए मात्र 70 करोड़ डालर का फंड रखा। दोष सरकार का नहीं है। विलो अमेरिकी सरकार ने नहीं बनाया है, न ही उसने कोई फंड दिया है। गूगल शोध में अपने व्यय से यह कमाल करके आज दुनिया का नेतृत्व कर रहा है।

पिछले एक साल में एनवीडिया का राजस्व दोगुना हुआ है। यह संभव इसलिए हुआ है कि इन निजी कंपनियों ने शोध में जम कर पैसा लगाया। इसके उलट भारत में आजादी के बाद से ही निजी क्षेत्र ने अपने को निरीह और क्षमता-विहीन माना और शोध एवं विकास या ढांचागत विकास के लिए सरकार पर आश्रित रहने लगा। इस कारण भी देश तकनीकी नवाचार के मामले में पिछड़ गया। भारत में शोध पर कुल खर्च इसकी जीडीपी का मात्र 0.6 प्रतिशत है, जबकि चीन का लगभग 2.68 प्रतिशत। ध्यान रहे कि चीन की जीडीपी भारत की लगभग पांच गुना है। यानी शोध राशि में अंतर 20 गुना है। दुर्भाग्यवश भारत में निजी क्षेत्र का योगदान मात्र 37 प्रतिशत है।

वित्त मंत्रालय की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश में एआइ और मशीन-लर्निंग तकनीकी जानने वालों की नौकरियां 61 प्रतिशत बढ़ी हैं। एमेजोन ने दुनिया भर में 22 हजार कर्मियों को निकालने की प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें भारत के 1000 कर्मी हैं। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि दक्षिण एशिया के देशों में एआइ की वजह से उद्योगों में नौकरियां 20 प्रतिशत कम हुई हैं। साथ ही एआइ-संबंधित स्किल वालों का वेतन 30 प्रतिशत बढ़ा है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एआइ का यह प्रभाव अस्थायी है, जिसमें नई तकनीकी से कुछ नकारात्मक असर दिखाई देते हैं, लेकिन दीर्घकाल में इससे काम की रफ्तार बढ़ेगी और सुविधाओं का असाधारण विस्तार होगा, जैसा कि 1980-90 के दशक में कंप्यूटर के प्रयोग के बाद के भारत में देखा गया।

अन्य उद्योगों या सेवाओं के अलावा एआइ का प्रयोग व्यापक रूप से कृषि में होने की संभावना अधिक है। जरूरत इसकी है कि देश के युवाओं को एआइ-सक्षम बनाया जाए। इसके लिए त्रिस्तरीय प्राविधिक शिक्षा में आइटी ट्रेनिंग से लेकर आइआइटी-रिसर्च तक पूरी शक्ति एआइ के ज्ञान को उपलब्ध कराने में लगाना होगा। चूंकि एआइ और क्वांटम कंप्यूटिंग का प्रयोग सबसे ज्यादा साफ्टवेयर उद्योगों, मैन्यूफैक्चरिंग, कृषि और निर्माण में होने जा रहा है, इसलिए निजी क्षेत्र को अपने लाभ का निश्चित अंश इससे संबंधित शोध में लगाने के लिए बाध्य करना जरूरी है।

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