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न्याय की भाषा वही हो, जो न्याय पाने वाले को समझ आएः पीएम मोदी

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को सामाजिक न्याय का आधार बताते हुए व्यक्ति की हैसियत और स्थिति की परवाह किए बगैर सभी के लिए सुलभ और शीघ्र न्याय की पहुंच पर जोर दिया।

कहा कि जब न्याय सभी के लिए सुलभ हो, समय पर हो और हर व्यक्ति तक उसकी सामाजिक और वित्तीय पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना पहुंचे, तभी यह सही मायने में सामाजिक न्याय की नींव बनता है। प्रधानमंत्री ने लोगों की भाषा में न्याय और फैसलों की उपलब्धता को भी महत्वपूर्ण बताया।

 फैसले और कानूनी दस्तावेज स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराए जाएं- पीएम

कहा कि न्याय की भाषा वही हो, जो न्याय पाने वाले को समझ आए। कानून का मसौदा तैयार करते समय इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। जब लोग कानून अपनी भाषा में समझते हैं, तो इससे बेहतर अनुपालन होता है और मुकदमेबाजी कम होती है। यह भी आवश्यक है कि फैसले और कानूनी दस्तावेज स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराए जाएं।

प्रधानमंत्री ने ये बातें कानूनी सहायता वितरण तंत्रों को सुदृढ़ बनाने पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन और विधिक सेवा दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहीं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने सामुदायिक मध्यस्थता माड्यूल का भी शुभारंभ किया।

समारोह में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष और अगले प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश व अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि कानूनी सहायता तंत्र को सु²ढ़ बनाने और विधिक सेवा दिवस से जुड़े कार्यक्रमों से भारत की न्याय व्यवस्था को नई मजबूती मिलेगी। भारत सरकार द्वारा शुरू की गई कानूनी सहायता बचाव परामर्श प्रणाली के तहत केवल तीन वर्षों में लगभग आठ लाख आपराधिक मामलों का समाधान किया गया है।

इन प्रयासों से देश भर में गरीबों, शोषितों, वंचितों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए न्याय में आसानी सुनिश्चित हुई है। प्रधानमंत्री ने विधिक सेवा प्राधिकरण के योगदान का महत्व बताते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर से लेकर तालुका स्तर तक, विधिक सेवा प्राधिकरण न्यायपालिका और आम नागरिक के बीच सेतु का काम करते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार लगातार ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज आफ लिविंग को बेहतर बनाने के लिए कदम उठा रही है। ईज आफ डूइंग बिजनेस और ईज आफ लिोवग तभी संभव है जब ईज आफ जस्टिस भी सुनिश्चित हो। पिछले कुछ वर्षों में ईज आफ जस्टिस को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। हम आगे इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे।

प्रधानमंत्री ने आम लोगों को न्याय सुलभ कराने की दिशा में नालसा के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि इसने न्यायपालिका को देश के गरीब नागरिकों से जोड़ने का बहुत महत्वपूर्ण प्रयास किया है। आज हम नालसा के सामुदायिक मध्यस्थता प्रशिक्षण मॉड्यूल का शुभारंभ कर रहे हैं। इससे हम उस भारतीय परंपरा को पुनर्जीवित कर रहे हैं, जिसमें संवाद और सहमति के माध्यम से विवादों का समाधान किया जाता था। मध्यस्थता हमेशा हमारी सभ्यता का हिस्सा रही है। नया मध्यस्थता अधिनियम इस परंपरा को आधुनिक रूप से आगे बढ़ा रहा है।

सीजेआइ ने कहा, समाज के अंतिम

व्यक्ति तक पहुंचे न्याय की रोशनीकानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने नालसा की तीन दशक लंबी कानूनी सहायता यात्रा सराहना की। उन्होंने बताया कि 2015-16 में नालसा का बजट 68 करोड़ रुपये था, जो कि वर्तमान वित्त वर्ष में 400 करोड़ तक पहुंच गया है।

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने महात्मा गांधी के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा कि जब भी कोई निर्णय लेने में संदेह हो तो सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें और सोचें कि आपका निर्णय उसके किसी काम आ पाएगा कि नहीं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि यही विचार कानूनी सहायता आंदोलन का सच्चा सार है। न्याय की रोशनी समाज के हर अंतिम व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का वादा तभी पूरा होगा, जब हर व्यक्ति यह महसूस करेगा कि न्याय व्यवस्था उसकी अपनी है।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कानूनी सहायता संविधान के मूल्य को व्यावहारिक राहत में बदल देती है। यह ऐसा माध्यम है, जिसके जरिये गरीब, वंचित और समाज के पीड़ित अपने अधिकारों को स्थापित कर सकते हैं और न्याय पा सकते हैं। 

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