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ट्रंप के तेवर को किया ठंडा, ले ली 6 महीने की छूट, मोदी ने चाबहार पर कैसे पूरा खेल पलट दिया

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डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में यह ऐलान किया घोषणा की कि ईरान के जवाबार पोर्ट पर भारत को दी जा रही प्रतिबंधित वेवर को हटाया जा रहा है। यानी अब इस पोर्ट पर काम करने वाली भारतीय कंपनियों, फाइनेंस एजेंसियों और शिपिंग लाइनों पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हो सकते थे। यह वही पोर्ट है जो भारत, ईरान और अफगानिस्तान तीनों के बीच रणनीतिक और आर्थिक पुल का काम करती है...

जिसकी डिप्लोमेसी मजबूत हो वही दुनिया झुकाता है और आज भारत ने वही कर दिखाया। डोनाल्ड ट्रंप ने जब ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारत को दी गई छूट हटाई तो यह सिर्फ एक फैसला नहीं था। यह वैश्विक राजनीति की परीक्षा थी। पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती क्योंकि उसी अमेरिका ने कुछ हफ्तों बाद यूटर्न लेकर चाबहार पोर्ट को फिर से भारत के लिए छूट दे दी। तो सवाल उठता है ना आखिर कौन झुका? आइए जानते हैं कैसे भारत की कूटनीतिक ताकत ने अमेरिका को कदम पीछे करने पर मजबूर कर दिया। दरअसल डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में यह ऐलान किया घोषणा की कि ईरान के जवाबार पोर्ट पर भारत को दी जा रही प्रतिबंधित वेवर को हटाया जा रहा है। यानी अब इस पोर्ट पर काम करने वाली भारतीय कंपनियों, फाइनेंस एजेंसियों और शिपिंग लाइनों पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हो सकते थे। यह वही पोर्ट है जो भारत, ईरान और अफगानिस्तान तीनों के बीच रणनीतिक और आर्थिक पुल का काम करती है।

ट्रंप का यह कदम सीधा भारत के हितों पर वार था लेकिन जैसा कि इतिहास गवाह है, भारत ने हर बार अपनी चाल चुपचाप और सटीक चली है। ईरान के दक्षिणी तट पर स्थित चाबहार पोर्ट भारत के लिए सिर्फ एक बंदरगाह नहीं यह भारत का गेटवे टू अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया है। क्योंकि पाकिस्तान अपने इलाके से भारत को अफगानिस्तान तक जमीनी रास्ता नहीं देता। ऐसे में भारत के पास सिर्फ एक विकल्प था ईरान का चाबहार। साल 2018 में भारत को इस स्पोर्ट की 10 साल की एक्सेस दी गई। यह शहीद बेहस्ती टर्मिनल को इंडिया पो ग्लोबल लिमिटेड के जरिए भारत डेवलप कर रहा था। इस फोर्ट से भारत को अफगानिस्तान तक सीधा रास्ता मिलता है और वही रास्ता इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी कि आईएएसटीसी को भी मजबूत बनाता है।

मतलब साफ है अगर चाबहार रुकता है तो भारत का सेंट्रल एशिया एक्सेस खत्म हो जाता है। अब ट्रंप प्रशासन की दुविधा दोहरी थी। एक तरफ वो ईरान पर कड़े प्रतिबंध चाहता था। दूसरी तरफ उसे पता था कि अगर भारत को रोका गया तो फायदा होगा चीन और पाकिस्तान को क्योंकि चाबहार का सीधा मुकाबला है पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जो चीन के बिल्ट एंड डोट इनिशिएटिव का हिस्सा है। अगर भारत को चाबहार से बाहर किया जाता तो ग्वादर को क्षेत्रीय वर्चस्व मिल जाता। इससे चीन की पकड़ और मजबूत हो जाती। लेकिन फिर भी ट्रंप ने राजनीतिक कारणों से शुरुआत में यह हटाने का फैसला किया ताकि अमेरिका कड़ा दिखे और ईरान पर दबाव बढ़े।

ट्रैक पर आए रिश्ते

ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों से मिली छूट बड़ी राहत है। भले अभी यह केवल 6 महीने के लिए हो, लेकिन बातचीत के जरिये दोनों देश आगे कोई न कोई रास्ता निकाल सकते हैं। यह खबर भारत-अमेरिका रिश्तों में हो रहे सुधार का संकेत देती है।

रणनीतिक अहमियत

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में, 2018 में भारतीय कंपनियों को चाबहार डिवेलप करने की छूट दी थी। लेकिन, दूसरी बार सत्ता संभालते ही उन्होंने इस छूट को खत्म करने के एग्जिक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर दिए। उनका यह आदेश 29 सितंबर से लागू हुआ था। भारत के लिए चाबहार केवल व्यापार के नजरिये से महत्वपूर्ण नहीं, जहां उसने अरबों रुपये का निवेश किया है इसकी अहमियत रणनीतिक भी है।

चीन को जवाब 

चाबहार एक साथ चीन और पाकिस्तान, दोनों को जवाब है। चीन अपने महत्वाकांक्षी ठत्प् प्रॉजेक्ट के तहत पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को डिवेलप कर रहा है। चाबहार से नई दिल्ली को अफगानिस्तान और मध्य एशिया में एंट्री का नया रास्ता मिल जाता है, वह भी पाकिस्तान जाए बिना। भारत, रूस और ईरान ने मिलकर इंटरनैशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर की योजना बनाई थी और चाबहार इसका अहम हिस्सा है।

वार्ता का असर । एक महीने में ही अमेरिकी रुख में आया बदलाव बताता है कि नई दिल्ली और वॉशिंगटन की बातचीत सही दिशा में चल रही है। महत्वपूर्ण है कि इस छूट की घोषणा से कुछ ही घंटों पहले एशिया पैसिफिक के मंच से ट्रंप ने बताया था कि भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील जल्द होने वाली है। 

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