प्रयागराज (राजेश शुक्ल/राजेश सिंह)। इलाहाबाद के रंगबाज रुभूक्कल-महाराज के पिता जगत-नारायण-करवरिया ने की थी। इस धंधे में राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए जगत नारायण करवरिया ने राजनीति में भी उतरने की कोशिश की, लेकिन वह ना तो अपने धंधे को बहुत आगे बढ़ा पाये और ना ही राजनीति में ही अपना करियर बना पाये
ऐसे में 70 के दशक में उसने अपने बेटे वशिष्ठ नारायण करवरिया उर्फ भूक्कल महाराज को आगे किये.भूक्कल महाराज अपने पिता की अपेक्षा काफी रुशातिर थे।अपनी चालाकी से वह धंधे को तो आगे बढ़ाये ही, राजनीति में भी पहचान बनाई। हालांकि वह चुनावी राजनीति में फेल हो गये।
भूक्कल महाराज की तरह ही उनेक अगली पीढ़ी में ऊनके बड़े बेटे सूरजभान करवरिया और छोटे बेटे कपिल मुनि करवरिया को पुश्तैनी धंधे में रुचि थी। वह शुरू से भूक्कल महाराज के साथ धंधे में शामिल भी थे। यह अलग बात है कि वह कुछ खास नहीं कर पाए। अब बचे मंझला बेटम उदयभान करवरिया. इनकी तो रुबचपन से ही मार कुटाई में रुचि नहीं थी. पढ़ने में बहुत होशियार थे। इनके पिता ने भी उनकी पढ़ाई में बाधा नहीं डाली. इसलिए उदयभान करवरिया ने रुइंटरमीडिएट की पढ़ाई की और अच्छे नंबरों से पास हो हुए।
अच्छी मेरिट की वजह से मिला था इंजीनियरिंग में दाखिला
चूंकि इंटरमीडिएट में उनकी मेरिट अच्छी थी, इसलिए इलाहाबाद के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आईईआरटी में उनका आसानी से दाखिला भी हो गया। यहां से उदयभान करवरिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स से इंजीनियरिंग की और अपने बैच में तीसरे स्थान पर रहें। इस परीक्षा को पास करने के बाद उदयभान करवरिया को दिल्ली की एक रुप्रतिष्ठित कंपनी से अच्छे पैकेज पर नौकरी का ऑफर भी आया. इसलिए उदयभान करवरिया ने भी हमेशा हमेशा के लिए अपने खानदान में मार कुटाई वाला पुश्तैनी धंधा छोड़ कर दिल्ली आने का फैसला कर लिया।
घर से निकलने की वह तैयारी कर ही रहे थे कि एक दिन पिता भूक्कल महाराज की हत्या की खबर आई। पता चला कि भूक्कल महाराज के किसी चेले अतीक अहमद ने ही गोली मारी है। यह घटना उदयभान करवरिया के जीवन का टर्निंग पॉइंट था। उन्होने तत्काल फैसला लिया कि अब वह नौकरी नहीं करेगे. बल्कि अतीक को उसके ही तरीके से सबक सिखाऐंगे। इस प्रकार उदयभान ना केवल पूरे दमखम के साथ अपने पुश्तैनी धंधे में आए, बल्कि साल 1996 से राजनीति की भी शुरूआत कर दी। उस समय वह पहली बार कौशाम्बी में जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष चुने गए।
जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष रहते हुए वह इलाहाबाद के तत्कालीन सांसद मुरली मनोहर जोशी के संपर्क में आए। चूंकि उसकी संगठन क्षमता काफी अच्छी थी इसलिए वह बीजेपी सांसद के बेहद खास हो गये। उदयभान करवरिया सांसद मुरली-मनोहर जोशी की छत्रछाया तो थी ही ,हमेशा जनता के बीच भी रहते थें। हालांकि समानांतर तरीके से वह रेत खनन, अवैध शराब और रियल एस्टेट का धंधा भी जारी रखे हुए थे . इसी धंधे में प्रतिद्वंदिता बढ़ने पर झूंसी से सपा विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की सिविल लाइंस चौराहे पर सरेआम हत्या का आरोप इनके उपर लग जाता है
राजनीति में होने की ही वजह से ही इस तिहरे हत्याकांड में लंबे समय तक किसी पुलिस अफसर ने इन्हे छेड़ने की कोशिश नहीं की। इसी दौरान वह पहली बार साल 2002 में बीजेपी के ही झंडे तले बारा विधानसभा सीट से चुनाव भी जीत गये। साल 2007 में भी यह सीट जीती, लेकिन साल 2012 में यह सीट आरक्षित (एससी) हो गई तो इलाहाबाद (उत्तर) विधानसभा सीट से पर्चा भर दिया। इस चुनाव में उदयभान को कांग्रेस के रुअनुग्रह-नारायण सिंह ने शिकस्त दी थी।
साल 2013 में जब उदयभान जेल भेजे दिए गए तो उन्होने साल 2017 के चुनाव में बीजेपी के ही टिकट पर अपनी पत्नी नीलम करवरिया को मैदान में उतारा, . जेल में बैठकर खुद फील्डिंग सजाई और नीलम को विधायक भी बनवा दिये, संयोग से साल 2019 के चुनाव में उदयभान को सजा हो गई। इसका असर साल 2022 के विधानसभा चुनावों पर पड़ा। इसमें उदयभान की लाख कोशिशों के बावजूद ख़ास कर चुनाव हराने की वज़ह बसपा प्रत्यासी की वजह से पत्नी नीलम चुनाव हार गई।
साल 2007 का चुनाव जीतने के बाद उदयभान करवरिया ने अपने मूल लक्ष्य अतीक अहमद की ओर फोकस किये. इसके लिए साल 2007 में ही उदयभान ने मायावती से सेटिंग की और अपने बड़े भाई सूरजभान करवरिया को बीएसपी से एमएलसी बनवाये। इसके बाद बीएसपी से ही साल 2009 के चुनाव में अपने छोटे भाई कपिल मुनि करवरिया को फूलपुर लोकसभा सीट से टिकट दिलाये उस समय तक अतीक अहमद फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ता था, लेकिन माहौल देखकर उस चुनाव में वह प्रतापगढ़ भाग गया।
इस चुनाव में कपिल मुनि करवरिया सपा के उम्मीदवार श्यामाचरण गुप्ता को हराकर चुनाव जीत गए. वहीं इलाहाबाद छोड़ कर पहली बार प्रतापगढ़ पहुंचे अतीक अहमद को राजनीतिक शिकस्त मिली थी। इसके बाद तो इलाहाबाद में उदयभान करवरिया की हनक ऐसी हो गई कि अतीक अहमद को दोबारा कभी और किसी चुनाव में जीत नहीं मिली। यहां तक कि रेत खनन और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र में भी जगह जगह टकराव होने लगा. नौबत यहां तक आ गई कि अतीक और उसके गुर्गे उदयभान करवरिया को देख अपना रास्ता बदलने लगे थे।
