Ads Area

Aaradhya beauty parlour Publish Your Ad Here Shambhavi Mobile Aaradhya beauty parlour

हिंदी-तमिल में सहकार का संबंध

sv news

काशी-तमिल संगमम का आयोजन सांस्कृतिक आदान-प्रदान, भाषाई संवर्धन और ज्ञान साझाकरण के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ऐसे में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तमिल की उपेक्षा करने और संस्कृत-हिंदी को बढ़ावा देने का आरोप लगाना स्वतः गलत सिद्ध हो जाता है...

पिछले दिनों तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन संस्कृत को मरी हुई भाषा बता रहे थे तो यह भूल गए कि तमिल भाषा के अनेक मनीषियों ने संस्कृत और हिंदी को अपनाया। तमिल के महान कवि सुब्रह्मण्यम भारती मानते थे कि संस्कृत साहित्य में महान ज्ञान संपदा है। सुब्रह्मण्यम भारती ने गीता का संस्कृत से तमिल में अनुवाद किया था। भारती हिंदी के प्रबल हिमायती भी थे। नागपुर से 1907 में ‘हिंदी केसरी’ समाचार पत्र निकलने लगा तो भारती पुदुचेरी से निकलने वाली तमिल साप्ताहिक पत्रिका ‘इंडिया’ में ‘हिंदी केसरी’ में प्रकाशित कई लेखों का तमिल अनुवाद प्रकाशित करने लगे। उन्होंने 1907 में स्वयं हिंदी वर्ग चलाकर तमिल माध्यम से हिंदी सीखने की मुहिम चलाई। सुब्रह्मण्यम भारती ने ‘स्वदेश मित्रन’ पत्रिका में हिंदी पाठों के तमिल रूपांतर प्रकाशित किए।

भारती की तरह हिंदी को अपनाने का क्रम बराबर चलता रहा। पूर्णम सोम सुंदरम ने हिंदी में ‘तमिल साहित्य का संक्षिप्त इतिहास’ प्रस्तुत किया। डा. एनवी राजगोपालन ने तमिल साहित्य के विभिन्न कालों की साहित्यिक प्रवृत्तियों पर विस्तार से लिखा। डा. केए जमुना ने ‘तमिल भाषा और साहित्य’, डा. पी. जयरामन ने ‘आधुनिक तमिल साहित्य सर्वेक्षण’ और ‘संत वाणी’, डा. एम शेषन ने ‘तमिल साहित्यः एक झांकी’ और डा. एम. गोविंदराजन ने ‘आलवार एवं अष्टछाप के भक्तिकाव्य का तुलनात्मक अध्ययन’, ‘श्रीशक्ति तमिल-मालै’ (हिंदी द्वारा तमिल सीखें) पुस्तकें लिखीं। एमजी वेंकटकृष्णन ने ‘तिरुक्कुरल’, डा. एन. सुंदरम ने ‘नायालिर दिव्य प्रबंधन’ और टी. शेषाद्रि ने महर्षि कंबन कृत रामायण का हिंदी में अनुवाद किया। तमिल साहित्य के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘तोल्काप्पियम’, ‘शिलप्पदिगारम’, ‘मणिमेखलै’ का हिंदी अनुवाद उपलब्ध है।

डा. पी. जयरामन द्वारा तमिल वैष्णव आलवार संतों की कविताओं का हिंदी अनुवाद ‘संत वाणी’ वाणी प्रकाशन से आया है। यह किताब बताती है कि कर्म-ज्ञान-भक्ति योग से आप्लावित भारतवर्ष के दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम तक उसकी भावात्मक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक एकात्मता उसकी सुदीर्घ वैचारिक धारा से स्वयंसिद्ध है। भारतीय एकात्म संस्कृति का निर्माण आध्यात्मिक चेतना की आधारशिला पर हुआ है। उनमें से एक है युगों से चली आने वाली वैष्णव भक्ति धारा। भारतीय निगमों, आगमों, गीता, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, श्रीमद् भागवत आदि द्वारा जो वैष्णव भक्ति चेतना उत्तर भारत में विकसित हुई, वही ईसा पूर्व के संघकालीन तमिल साहित्य से होते हुए संघोत्तरकालीन महाकाव्य ‘शिलप्पधिकारम्’, ‘मणिमेखलै’ आदि में प्रतिष्ठित होकर परवर्ती परम भागवत वैष्णव संत भक्तों-आलवारों के ‘दिव्य प्रबंधम्’ में आकर गहनतम प्रपत्तिपरक नारायण (विष्णु) भक्ति के रूप में व्यापक रूप से प्रचारित हुई। यह वैष्णव भक्ति धारा परवर्ती आचार्यों के माध्यम से दक्षिण से वृंदावन तक पहुंचकर समग्र भारत में फैली। यह भारत की आध्यात्मिक एकात्मता की संक्षिप्त रूपरेखा है।

तमिल और हिंदी भाषाओं के साहित्य में समानता भक्ति परंपरा की प्रवृत्ति में हम देख सकते हैं। परशुराम चतुर्वेदी ने अपनी किताब ‘भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक रेखाएं’ में लिखा है कि भक्ति के विकसित हुए रूप के दर्शन हमें उन तमिल रचनाओं में होते हैं, जो पीछे आलियारों तथा आलवारों द्वारा निर्मित हुई और जो इस समय भी तमिल साहित्य का एक प्रमुख अंग बनकर प्रसिद्ध है। आलियारों के इष्टदेव शिव थे और आलवारों के विष्णु अथवा राम एवं कृष्ण थे। विभिन्नताओं के होते हुए भी उनकी भक्ति साधना में अंतर नहीं था। उनका लक्ष्य एकसमान था, उनके भावों में एक अपूर्व सादृश्य था और उनकी लोकभाषा की रचनाओं ने सर्वसाधारण को प्रभावित किया। संतकाव्य की परंपरा प्रायरू सर्वत्र व्याप्त है। तमिल के ‘अठारह सिद्ध’ संत कवि थे, जिन्होंने सरल वाणी में रहस्यवादी रचनाएं की हैं। इसी प्रकार कबीर, दादू, सुंदरदास आदि की दिव्य प्रतिभा से आलोकित हिंदी का संत काव्य भी गुण एवं परिमाण दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत समृद्ध है। मध्ययुग में संत-काव्य और प्रेमाख्यान काव्य की प्रवृत्तियां तमिल और हिंदी में समान रूप से मिलती हैं।

तमिल और हिंदी में चारण-काव्य की प्रवृत्ति एक जैसी है। तमिल और हिंदी में शृंगार काव्य भी एक जैसा है। दोनों भाषाओं के साहित्य में स्त्री विमर्श तथा दलित विमर्श एक ही तरह से चलते दिखते हैं। भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता को बल पहुंचाने और भारतीय भाषाओं के साहित्य में सहकार संबंध स्थापित करने के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी स्तर पर निरंतर प्रयास होते रहे हैं। पिछले चार वर्षों से काशी-तमिल संगमम का आयोजन उसी का हिस्सा है। इसका चौथा संस्करण दो दिसंबर को प्रारंभ हो चुका है। इसका आयोजन तमिलनाडु और काशी के बीच गहरे सभ्यतागत संबंधों का उत्सव मनाने के लिए किया जाता है।

काशी-तमिल संगमम का आयोजन सांस्कृतिक आदान-प्रदान, भाषाई संवर्धन और ज्ञान साझाकरण के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ऐसे में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तमिल की उपेक्षा करने और संस्कृत-हिंदी को बढ़ावा देने का आरोप लगाना स्वतः गलत सिद्ध हो जाता है।

إرسال تعليق

0 تعليقات

Top Post Ad