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शुक्रवार के दिन पूजा के समय करें दुर्गा चालीसा का पाठ, हर समस्या का होगा समाधान

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ममतामयी मां दुर्गा अपने भक्तों का उद्धार करती हैं। वहीं दुष्टों का संहार करती हैं। मां के शरणागत रहने वाले साधकों को मृत्यु लोक में ही स्वर्ग लोक समान सुखों की प्राप्ति होती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से मां दुर्गा की पूजा करते हैं। खासकर शुक्रवार के दिन मां जगदंबा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मां दुर्गा बेहद दयालु और कृपालु हैं..

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क।  जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की महिमा निराली है। ममतामयी मां दुर्गा अपने भक्तों का उद्धार करती हैं। वहीं, दुष्टों का संहार करती हैं। मां के शरणागत रहने वाले साधकों को मृत्यु लोक में ही स्वर्ग लोक समान सुखों की प्राप्ति होती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से मां दुर्गा की पूजा-उपासना करते हैं। खासकर, शुक्रवार के दिन मां जगदंबा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही साधक विशेष कार्यों में सिद्धि पाने हेतु साधक विशेष उपाय भी करते हैं। मां दुर्गा बेहद दयालु और कृपालु हैं। महज पूजा-आराधना से प्रसन्न हो जाती हैं। उनकी कृपा से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। अगर आप भी मां दुर्गा की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन पूजा के समय दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य करें। आइए, दुर्गा चालीसा का पाठ करते हैं-

दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुँलोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर आचारज तप कीनो।

काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परम पद पावै॥

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