पीटीआई, नई दिल्ली। इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान 48 अध्यादेश जारी किए, जिनमें आंतरिक सुरक्षा का रखरखाव अधिनियम (मीसा) में संशोधन के लिए पांच अध्यादेश शामिल थे। इस अधिनियम में प्रशासन को बिना वारंट किसी को भी हिरासत में लेने की शक्ति दी गई थी।
50 वर्ष पहले 25 जून, 1975 को लगाए गए 21 महीने के आपातकाल में सरकार ने कई बार संविधान में संशोधन किया, जिसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और स्पीकर के पदों के लिए चुनाव को अदालतों के दायरे से बाहर रखना और प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता शब्द शामिल करना शामिल था। विभिन्न कानूनों में संशोधनों से शक्ति संतुलन केंद्र के पक्ष में हो गया था और उच्च न्यायपालिका की शक्तियां कम कर दी गई थीं।
मीसा में किए गए थे संशोधन
आपातकाल लागू होने के बाद 1975 में 26 अध्यादेश, 1976 में 16 अध्यादेश और 1977 में छह अध्यादेश जारी किए गए थे। मीसा में संशोधन का पहला अध्यादेश आपातकाल की घोषणा के कुछ दिनों के भीतर 29 जून, 1975 को जारी किया गया था। आपातकाल के दौरान मीसा (संशोधन) अध्यादेश को चार बार और जारी किया गया एवं संसद द्वारा इसे मंजूरी दी गई थी।
एक दिन बाद राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद ने भारत की रक्षा (संशोधन) अध्यादेश जारी किया, जिसने सरकार को सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए व्यापक अधिकार दिए। पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने बताया, आपातकाल के दौरान संसद सत्र सामान्य से छोटे थे, जिनमें से अध्यादेशों के स्थान पर विधेयकों को पारित करने तथा नए कानूनों को मंजूरी देने के लिए थे। अधिकांश विपक्षी सदस्य जेल में थे, इसलिए विधेयक पारित कराना आसान था।
आपातकाल के दौरान जारी एक अन्य प्रमुख अध्यादेश विवादित चुनाव (प्रधानमंत्री तथा लोकसभा अध्यक्ष) अध्यादेश था। इसका उद्देश्य प्रधानमंत्री तथा स्पीकर के चुनाव पर सवाल उठाने वाली याचिका से निपटने के लिए एक अथॉरिटी की स्थापना था। यह 21 मार्च को आपातकाल समाप्ति से पहले तीन फरवरी, 1977 को जारी किया गया था। चुनाव के फैसले के विरुद्ध हाई कोर्ट में चुनावी याचिका दायर करने की अनुमति देने के बजाय, इसमें ऐसे हाई-प्रोफाइल मामलों से निपटने के लिए एक अथारिटी बनाई गई थी। अध्यादेश को कानून में बदल दिया गया था, लेकिन अगली सरकार ने इसे निरस्त कर दिया था।
व्याख्या के लिए छोड़ दी थीं कई चीजें
आचार्य ने बताया कि 42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम ने संविधान में आमूलचूल परिवर्तन किए थे। अगली सरकार द्वारा पारित 44वें संविधान (संशोधन) अधिनियम ने 42वें संशोधन द्वारा लाए गए कई परिवर्तनों को पलट दिया था। उन्होंने कहा कि आपातकाल लागू करने से संबंधित अनुच्छेद-352 में किए गए बदलावों में कई चीजें व्याख्या के लिए छोड़ दी थीं। आंतरिक अशांति के वाक्यांश में व्याख्या की गुंजाइश थी। बाद में 44वें संशोधन में आपातकाल लगाने के लिए सशस्त्र विद्रोह का वाक्यांश जोड़ा गया। आचार्य ने कहा कि सशस्त्र विद्रोह की व्याख्या या गलत व्याख्या नहीं की जा सकती।
मंत्रिमंडल की नहीं ली थी सहमति
आचार्य ने बताया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की सहमति के बिना आपातकाल की सिफारिश की थी, उनका कहना था कि बिगड़ती स्थिति के कारण तत्काल मंत्रिमंडल की बैठक नहीं बुलाई जा सकी थी। वर्तमान संशोधन के अनुसार आपातकाल घोषित करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश भेजने के लिए मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
आचार्य ने कहा कि आपातकाल के बाद सबसे महत्वपूर्ण संशोधन अनुच्छेद-359 में किया गया था। अनुच्छेद-359 के मुताबिक आपातकाल की घोषणा के बाद राष्ट्रपति नागरिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार निलंबित करने के आदेश जारी कर सकते हैं। लेकिन जनता पार्टी सरकार द्वारा लाए गए संशोधन के अनुसार, राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकते हैं। अनुच्छेद 20 अनुचित दोषसिद्धि से सुरक्षा प्रदान करता है, वहीं अनुच्छेद 21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है।
दो बार बढ़ा था लोकसभा का कार्यकाल
संसद ने दो मौकों पर लोकसभा के कार्यकाल को एक-एक वर्ष बढ़ाने के विधेयक को भी मंजूरी दी थी। लोकसभा ने चार फरवरी, 1976 को लोकसभा (अवधि विस्तार) विधेयक पारित किया गया, जो 18 मार्च, 1976 को सदन का कार्यकाल समाप्त होने से कुछ सप्ताह पहले था। राज्यसभा ने छह फरवरी, 1976 को लोकसभा के कार्यकाल को एक वर्ष बढ़ाने के लिए विधेयक पारित किया। नवंबर, 1976 में संसद के दोनों सदनों ने इसी तरह का विधेयक पारित किया गया था, ताकि लोकसभा का कार्यकाल मार्च, 1977 से एक वर्ष आगे बढ़ाया जा सके। हालांकि, इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी, 1977 को चुनावों का आह्वान किया और 24 मार्च, 1977 को जनता पार्टी के नेता मोरारजी देसाई के नेतृत्व में नई सरकार आने के साथ ही आपातकाल हटा लिया गया। आपातकाल के दौरान दुरुपयोग की व्यापक आलोचना के बाद 1978 में मीसा को निरस्त कर दिया गया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जनता की सुरक्षा से निपटने के लिए बनाए गए भारत की रक्षा अधिनियम मार्च, 1977 में आपातकाल समाप्त होने के बाद समाप्त हो गया। आपातकाल के दौरान बनाए गए कुछ कानून, जिनमें संविधान की प्रस्तावना में संशोधन और मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों को शामिल करना शामिल है, अभी भी लागू हैं।