प्रयागराज (राजेश सिंह)। इलाहाबाद हाई कोर्ट में डूंगरपुर प्रकरण में वरिष्ठ समाजवादी पार्टी नेता व पूर्व मंत्री आजम खां की ओर से दाखिल अपील में जमानत अर्जी पर बहस पूरी हो गई। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित कर लिया है। न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
मंगलवार को याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इमरान उल्लाह ने दलील दी कि एफआइआर घटना के तीन साल बाद दर्ज की गई है। शिकायतकर्ता की ओर से डूंगरपुर में जिस स्थान पर उसका मकान तोड़ने का दावा किया जा रहा है, वहां उसका मकान नहीं था।
पूरे प्रकरण में कोई भी ऐसा साक्ष्य नहीं आया जिसमें यह साबित हो कि आजम खां घटना के समय मौके पर थे। अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा कि मुकदमा देरी से दर्ज कराने पर ध्यान नहीं दिया चाहिए। अपीलकर्ता का आपराधिक इतिहास है। दलीलों के साथ जमानत का विरोध किया।
मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार डूंगरपुर प्रकरण में अबरार ने अगस्त 2019 में रामपुर के गंज थाने में आजम खां, सेवानिवृत्त सीओ आले हसन खां और ठेकेदार बरकत अली समेत तीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। आरोप लगाया कि दिसंबर 2016 में तीनों आरोपियों ने उसके साथ मारपीट करने के अलावा घर में तोड़फोड़ कर जान से मारने की धमकी दी थी।
डूंगरपुर बस्ती को खाली कराने के नाम पर बस्ती में रहने वाले लोगों ने लूटपाट, चोरी, मारपीट सहित अन्य धाराओं में रामपुर के गंज थाने में कुल 12 मुकदमे दर्ज कराए थे। एमपी/एमएलए स्पेशल कोर्ट रामपुर ने 30 मई 2024 को आजम खां को डूंगरपुर प्रकरण में 10 साल की सजा सुनाई है। ठेकेदार बरकत अली को सात साल की सजा सुनाई गई है। इस आदेश के खिलाफ आजम खां ने अपील दाखिल कर जमानत की गुहार लगाई है।