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गर्मी का प्रकोप बढ़ते ही “गरीबों की फ्रिज” बना मटका

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प्रयागराज में टोटी वाले मटके और डिजाइनर सुराही की डिमांड, कुम्हारों को मिला रोजगार

प्रयागराज (राजेश सिंह)। प्रयागराज में भीषण गर्मी के इस मौसम में जहां एक ओर शहरवासियों का जीना मुहाल हो गया है, वहीं दूसरी ओर परंपरागत देसी उपाय ‘मटका’ एक बार फिर चर्चा में आ गया है। प्रयागराज समेत पूरे पूर्वांचल में मिट्टी से बने मटकों और सुराहियों की मांग में भारी इजाफा हुआ है। खास बात यह है कि इन मटकों की बढ़ती मांग से प्रजापति समाज के कुम्हारों के चेहरे पर भी रौनक लौट आई है।

प्रजापति समाज लंबे समय से मिट्टी के बर्तन बनाने की पारंपरिक शिल्पकला से जुड़ा रहा है। आधुनिक तकनीक और प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल के बीच यह पेशा लगभग गुमनाम हो चला था।

लेकिन जैसे ही भीषण गर्मी ने दस्तक दी, और लोगों ने प्राकृतिक उपायों की ओर रुख किया मटके को “गरीबों का फ्रिज” कहकर फिर से अपनाया जाने लगा। प्रयागराज के झूंसी, फाफामऊ और तेलियरगंज क्षेत्रों में रहने वाले कई कुम्हार परिवार अब दिन-रात मटके बनाने में जुटे हैं। खासकर इस बार टोटी लगे मटके और डिज़ाइनर सुराहियों की डिमांड सबसे ज्यादा है। एक कुम्हार ने बताया, पिछले साल की तुलना में इस बार दोगुने मटके बिक रहे हैं। लोग टोटी वाला मटका ज्यादा पसंद कर रहे हैं क्योंकि वह दिखने में भी अच्छा लगता है और उपयोग में आसान भी है।

इससे दो फायदे हुए हैं एक तरफ जहां आम जनता को बिना बिजली खर्च किए ठंडा, स्वास्थ्यवर्धक पानी मिल रहा है, वहीं दूसरी तरफ प्रजापति समाज के लोगों को फिर से रोजगार मिलने लगा है। मटके में रखा पानी न सिर्फ शरीर को ठंडा रखता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है। यह प्राकृतिक फ्रिज न प्लास्टिक पैदा करता है, न बिजली की खपत करता है। यह परंपरागत देसी उपाय न केवल शरीर को ठंडा रख रहा है, बल्कि लोककला, रोजगार और संस्कृति को भी फिर से जीवित कर रहा है।

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