मेजा, प्रयागराज (सूरज़ वार्ता होली स्पेशल बुलेटिन)। हममे शायद ही कोई ऐसा हो, जो इन पंक्तियों के जादू से वाकिफ न हो। ही जी हां, यह पंक्तिया हैं, मशहूर रंगबाज कवि की जो समाज में चोरी छिपे ही दिखाई देते हैं, क्योंकि समाज में अब वह सहनशीलता नही दिख रही है। हर कोई भांग का चार गोला, दारू की दो पैग के साथ अपने में मस्त है तो कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बिना पिये ही मस्ती में सराबोर हैं। पिछले दिनों विधानसभा चुनाव इस कदर हुए कि जैसे अंग्रेजों से लोहा लेते हुए झांसी की रानी को दिखाया गया था।
सिंहासन हिल उठे नेताओं के, अहंकार भी जागा था, बूढ़े मेजा में भी भाभी को देख नयी जवानी आयी थी। ब्राह्मणों की आजादी कुछ लोगों को रास न आई थी। बाहर का नारा दे-देकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी। फिर भी खूब लड़ी मर्दानी वह तो मेजा वाली रानी थी..।। मेजा के बूढ़ों और जवानों की वह मुंहबोली बहन और भाभी थी। स्वाभिमान को ले पति को जेल में छोड़ रोगों के बीच बिताती हैं थी। थोड़े से स्वार्थ को लेकर कुछ लोगों ने खंजर भोका था। जिनकी कोई औकात नहीं वह भी गांव हरा बैठा। परसुराम बनते-बनते ब्राह्मण रावण बन बैठा। सदियों से चली आ रही इस रीति को अब तो दफना दो, अपनों से जलन, ईर्ष्या पर अब तो विराम लगा दो। सोशल मीडिया पर गद्दारों की बखियां उधेड़ा जाता रहा..फिर भी खूब लड़ी बुरा मर्दानी वह तो मेजा वाली रानी थी। गामा का स्वाभिमान जगा, लोगों को चेताया हुल्का में, लेकिन उसका असर उलट हुआ शायद विधना को मंजूर यही था..आखिर खूब लड़ी मर्दानी वह तो मेजा वाली रानी थी।। ना तो कोई गद्दार था, ना ही कोई खंजर भोका, यह तो निष्ठुर भाग्य ने खेल खेला जिसे किसी ने समझ न पाया (बुरा न मानो होली है)।
विशेषः होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपसे विनम्र निवेदन है कि रंग और भांग भरी होली के इस त्योहार को पूरी सादगी से मनायें, सूरज़ वार्ता कार्यालय का कम्प्यूटर जी भी भांग के नशे में सराबोर होकर समाचार लिख रहे है, ऐसे में किसी भी तरह का विवाद उत्पन्न होने पर होली कोर्ट में मुकदमा पंजीकृत कराया जाएगा, जिसकी पहली तारीख अगली होली होगी।