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ईद उल अजहा: बकरीद का त्योहार, जानिए इसका धार्मिक महत्व

 

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suraj varta.in
आस्था धर्म डेस्क

आज रविवार 03 जुलाई 2022 है। बकरीद पर मुस्लिम समुदाय के लोग साफ-पाक होकर ईदगाह मे नमाज पढ़ते हैं. इस साल ईद उल अजहा यानी बकरीद 10 जुलाई, रविवार को मनाई जाएगी.

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मदीना मस्जिद मेजारोड के खतीबो इमाम मौलाना अब्दुल कलाम के अनुसार बकरीद रमजान माह के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है. इस ईद में कुर्बानी देने की प्रथा है. बकरीद पर मुस्लिम समुदाय के लोग साफ-पाक होकर ईदगाह मे नमाज पढ़ते हैं. इस साल ईद उल अजहा यानी बकरीद 10 जुलाई, रविवार को मनाई जाएगी. आइए जानते हैं कि साल 2022 में बकरीद (Bakrid 2022) यानी ईद-उल-अजहा (Eid al-Adha 2022) कब मनाया जाएगा और इस पर्व का इस्लाम में क्या महत्व है.

बकरीद का इतिहास और धार्मिक महत्व
बकरीद मनाने के पीछे हजरत इब्राहिम के जीवन से जुड़ी हुई एक बड़ी घटना है. हजरत इब्राहिम खुदा के बंदे थे, उनका खुदा में पूर्ण विश्वास था. एक बार हजरत इब्राहिम ने एक सपना देखा, जिसमें वे अपने जान से भी ज्यादा प्रिय बेटे की कुर्बानी दे रहे थे.

*कैसे मनाया जाता है बकरीद*
ईद-उल-अजहा (Eid Al Adha 2022) यानी बकरीद के दिन मुस्लिम अपने घरों में पहले से पाले हुए बकरे की कुर्बानी देते हैं. जिनके घर बकरा नहीं होता है वे पर्व से कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर घर ले आते हैं. इस दिन बकरे की कुर्बानी देने के बाद मीट को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. पहला हिस्सा फकीरों को दिया जाता है. वहीं दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों को और तीसरा हिस्सा घर में पकाकर खाया जाता है.

*जानें क्यों की जाती है कुर्बानी*
इस्लाम मजहब में कुर्बानी को बहुत अहमियत हासिल है. यही वजह है कि ईद-उल-अज़हा के मुबारक मौके पर मुसलमान अपने रब को राजी और खुश करने के लिए कुर्बानी देते हैं. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक एक बार अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम की आज़माइश के तहत उनसे अपनी राह में उनकी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करने का हुक्म दिया. क्‍योंकि उनके लिए सबसे प्‍यारे उनके बेटे ही थे तो यह बात हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे को भी बताई.
इस तरह उनके बेटे अल्‍लाह की राह में कुर्बान होने को राज़ी हो गए. और जैसे ही उन्‍होंने अपने बेटे की गर्दन पर छुरी रखी, तो अल्लाह के हुक्‍म से उनके बेटे की जगह भेड़ जिबह हो गया. इससे पता चलता है कि हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की मुहब्‍बत से भी बढ़ कर अपने रब की मुहब्‍बत को अहमियत दी. तब से ही अल्लाह की राह में कुर्बानी करने का सिलसिला चला आ रहा है.

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