प्रयागराज (राजेश सिंह)। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट परिसर में स्थित जिस मस्जिद को हटाने का आदेश दिया है, उसके विवाद की कहानी अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान लिखी गई थी। एक नवंबर 1868 को थॉमस क्राउबी को विवादित जमीन 50 साल के पट्टे पर दी गई थी। बाद में पट्टे की अवधि बढ़ती रही। डीएम इलाहाबाद ने 2001 में पट्टा रद्द कर इस भूमि को हाईकोर्ट के विस्तार के लिए आरक्षित कर दिया।
पांच वर्ष पूर्व हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक शुक्ल ने मूल जनहित याचिका दाखिल कर अतिक्रमण हटाने की मांग की थी। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले तथा न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए अतिक्रमण कर हाईकोर्ट की जमीन में बनी मस्जिद हटाने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।दरअसल सिविल लाइंस के नजूल प्लाट संख्या 59 रकबा 8019.57 वर्गमीटर के एक हिस्से को वक्फ मस्जिद का रूप दिया गया था।
दावा किया गया कि 1981 से मस्जिद है।जानकारी के मुताबिक जिस जमीन पर बंगला बनाया गया था, उसकी लीज 12 अप्रैल 1923 को थामस के वारिस विलियम चाप्लेस ड्यूकेसी के नाम से वर्ष 1967 तक के लिए बढ़ा दी गई। 18 अप्रैल 1945 को ड्यूकेसी के उत्तराधिकारी एडमंड जॉन ड्यूकेसी ने कलेक्टर की अनुमति से इसे लाला पुरुषोत्तम दास को बेच दिया।
30 अप्रैल 1958 को पुरुषोत्तम दास के वारिसों ने मोहम्मद अहमद काजमी पूर्व सांसद 1952-1958 व उनकी बीवी व दो बेटियों को जमीन लीज पर दी थी। यह लीज श्याम सुंदर व श्रीमती दुर्गा देवी ने की।
3 जनवरी 1961 को कलेक्टर इलाहाबाद की अनुमति से जमीन का 2500 वर्ग गज हिस्सा मेसर्स ग्रेट ईस्टर्न इलेक्ट्रोप्लर्स लिमिटेड को बेच दिया गया। लीज की मियाद 31 दिसंबर 1967 को खत्म हो गई। 19 जनवरी 1996 को गवर्नर की अनुमति से 30 साल के लिए जमीन की लीज काजमी परिवार को एक जनवरी 1968 से 31 दिसंबर 1997 तक दी गई और 17 जुलाई 1998 को अगले 30 साल के लिए लीज का नवीनीकरण भी कर दिया गया।
11 जनवरी 2001 को कलेक्टर इलाहाबाद ने यही नजूल जमीन महाधिवक्ता कार्यालय भवन व हाईकोर्ट भवन निर्माण के लिए निर्धारित कर लीज निरस्त कर दी। दो सितंबर 2001 को बंगले का 10 लाख रुपये मुआवजा दिया गया। लीज निरस्त करने को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई। शुरुआत में स्थगनादेश मिल गया, किंतु सात दिसंबर 2001 को याचिका खारिज कर दी गई।
हाईकोर्ट के मुस्लिम न्यायमूर्ति व स्टाफ ने हाईकोर्ट भवन के उत्तरी बरामदे में शुक्रवार को नमाज पढ़ना शुरू किया। बाद में वहां न्यायालय भवन विस्तार किया गया तो उत्तरी बरामदे में नमाज पढ़ी जाने लगी। कुछ दिनों बाद लोगों ने अधिवक्ता काजमी के बंगले के एक हिस्से में नमाज पढ़ना शुरू किया। जिसे टिनशेड में तब्दील कर दिया और फिर मस्जिद का आकार देकर वक्फ मस्जिद घोषित कर दिया गया। 450 वर्ग मीटर में मस्जिद बनी हुई है। उसी जमीन के आधे हिस्से पर महाधिवक्ता भवन है।
शेष पर हाईकोर्ट की नौ मंजिली इमारत बन रही है। इस दौरान 11 मीटर चारों तरफ सेटबैक की जरूरत महसूस हुई ताकि दुर्घटना पर दमकल गाड़ी आसानी से पहुंच सके। इस पर अधिवक्ता अभिषेक शुक्ल ने जनहित याचिका दायर कर अवैध मस्जिद का अतिक्रमण हटाने की मांग की। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की लंबी बहस सुनने के बाद 20 सितंबर 2017 को फैसला सुरक्षित कर लिया और आठ नवंबर 2017 को पौने दो सौ पेज का फैसला सुनाते हुए मस्जिद अवैध घोषित कर हटाने का आदेश दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सही माना है।