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संतान की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने की ललही छठ की पूजा

 


मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी)

 ललही छठ का पर्व क्षेत्र में मंगलवार को धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर महिलाओं ने व्रत रख पुत्र के दीर्घायु होने की कामना की।  भादों मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन होने वाले इस त्योहार पर व्रती महिलाएं दिनभर व्रत कर पूजा आरती करने के बाद नदी या तालाब में उगने वाले, बिना हल चलाए पैदा होने वाले बोरो चावल और दही खाकर व्रत तोड़ती हैं। जन्माष्टमी से पहले हर साल पड़ने वाले हलषष्ठी या ललही छठ का त्योहार  मंगलवार को क्षेत्र में धूमधाम से मनाया गया।

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जगह-जगह छीउल व कुस को जमीन में गाड़कर सामूहिक रूप से पूजा की गई। पुत्रों की दीर्घायु व पुत्र प्राप्ति के लिए विवाहिता महिलाओं ने व्रत भी रखा। श्रीनारायण शुक्ल "लड्डू गुरु" ने बताया कि भाद्रप्रद कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने वाले इस पर्व के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। ललही छठ पर माताएं जल्द ही सुबह उठकर स्नान करते हुए सबसे पहले सूर्यदेव को जल अर्पित करके व्रत का संकल्प लिया। माताएं हलषष्ठी का व्रत संतान की खुशहाली एवं दीर्घायु की प्राप्ति के लिए और नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए किया। मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा इस दिन हल से जोते गए किसी भी अन्न का ग्रहण नहीं किया जाता है। इस व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। उसके बाद भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं एवं हलषष्ठी की कथा सुनती हैं। लड्डू गुरु ने बताया कि इसके पीछे मान्यता है कि जब कंस को पता चला कि वासुदेव और देवकी की संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेगी तो उसने उन्हें कारागार में डाल दिया। छह संतानों का कंस ने वध कर डाला। सातवां पुत्र होना था,  तब उनकी रक्षा के लिए नारद मुनि ने उन्हें हलष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी, जिससे उनका पुत्र कंस के कोप से सुरक्षित हो जाए।देवकी ने व्रत किया और इसके प्रभाव से भगवान ने योगमाया से कहकर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को रानी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। इससे कंस भी धोखा खा गया। उसने समझा कि देवकी का सातवां पुत्र जिंदा नहीं है। उधर, रोहिणी के गर्भ से बलराम का जन्म हुआ। देवकी को आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण की प्राप्ति हुई। देवकी के व्रत से दोनों पुत्रों की रक्षा हुई। तभी से ललही छठ त्योहार पर महिलाएं व्रत रखकर पूजा अर्चना करती हैं।

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