प्रयागराज (राजेश सिंह)। तरह-तरह के मतों, रूपों, विचारों वाले संतों के अखाड़े महाकुंभ में श्रद्धालुओं के बीच एक बार फिर बड़े आकर्षण के रूप में नजर आएंगे। पौराणिक मान्यता है कि देवासुर संग्राम में 14वें रत्न के रूप में निकले अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए विष्णु ने जिस तरह स्वर्णाभूषणों से अलंकृत विश्वमोहिनी का रूप धरकर पूरे ब्रह्मांड का ध्यान खींचा था, उसी तरह कुंभ में कोना-कंदरा, मठों, आश्रमों से निकलने वाले वेशधारी बाबा लोगों को लुभाएंगे। इसके लिए संगम की रेती पर संन्यासियों, उदासियों और वैरागियों के बेड़े सजने लगे हैं। 13 अखाड़ों की परंपरा और उनकी विशिष्टता से परिचित कराने के लिए हम इस शृंखला की शुरुआत जूना अखाड़े से कर रहे हैं। आइए जानते हैं सबसे बड़े जूना अखाड़े के बारे में...
शस्त्र विद्या में निपुण सनातन धर्म की सबसे बड़ी सेना खड़ी करने वाले पंच दशनाम जूना अखाड़े में इस महाकुंभ में पांच हजार से अधिक नए नागा संन्यासी शामिल होंगे। वैष्णव और शिव संन्यासी संप्रदाय के 13 अखाड़ों में 5.50 लाख से अधिक नागाओं के जत्थे वाला जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है। आठवीं शताब्दी में गठित भैरव अखाड़े को ही वर्ष 1145 में पंच दशनाम जूना अखाड़े के रूप में मान्यता प्रदान की गई।इस बार महाकुंभ के चुनाव में राजसी स्नान की धर्मध्वजा जूना अखाड़े के हाथ सौंपी गई है। यानी सबसे पहले जूना अखाड़ा ही सोने, चांदी और रत्नजड़ित हौदों, सिंहासनों पर सवार होकर अस्त्र-शस्त्र के साथ राजसी स्नान के लिए निकलेगा। इस अखाड़े के अपने गुरु भी हैं और देवता भी। जूना अखाड़े के संन्यासी अपना ईष्टदेव भगवान शिव को और गुरु दत्तात्रेय को मानते हैं। शिव संन्यासी संप्रदाय के तहत ही दशनामी परंपरा का पालन इस अखाड़े के संन्यासी करते हैं।
काशी के हनुमान घाट पर स्थित मुख्यालय से संचालित जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि बताते हैं कि संन्यास ग्रहण कराने के बाद गुरुओं की ओर से इस अखाड़े की दशनामी परंपरा में गिरि, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम को लेकर 10 नाम दिए जाते हैं। अखाड़े के प्रवक्ता महंत नारायण गिरि अखाड़े की विशिष्टता गिनाते नहीं थकते।
वह बताते हैं कि जूना अखाड़े की आंतरिक संरचना भी बहुत दिलचस्प है। इस अखाड़े के भीतर संन्यासियों के 52 परिवारों के बीच सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी नियंत्रक की तरह काम करती है। इस सबसे बड़े संत समूह के संचालन में जूना अखाड़े की चार मढ़ियां भी खास होती हैं। तीन मढ़ी, चार मढ़ी, 13 मढ़ी और 14 मढ़ी वाली इन चारों मढ़ियों में महंत से लेकर अष्टकौशल महंत और कोतवाल, कोठारी के पद पर चुन कर लाए गए संतों का ही गद्दी पर पट्टाभिषेक किया जाता है।
निजाम और अहमद शाह अब्दाली को नागाओं ने किया था परास्त
इस बार महाकुंभ का नेतृत्व चार मढ़ी के हाथ है। महाकुंभ का नेतृत्व संभालने वाले चार मढ़ी के अध्यक्ष महंत विद्यानंद सरस्वती बताते हैं कि कुंभ में राजसी स्नान की खास झलक बनने वाले जूना अखाड़े के संन्यासी शस्त्र विद्या में निपुण होने के साथ ही तलवार, भाला, फरसा जैसे शस्त्रों लैस रहते हैं। मुगल काल में जब बार-बार मंदिरों और मठों को नष्ट करने की कोशिश हुई थी, तब मुगलों के साथ युद्ध में कई हजार नागाओं ने अपने प्राणों की आहुति भी दी। अहमद शाह अब्दाली ने जब मथुरा-वृंदावन के बाद गोकुल पर आक्रमण किया तब नागाओं ने मुगल सेना का मुकाबला कर गोकुल की रक्षा की थी। इसी तरह जूनागढ़ के निजाम के साथ भी नागाओं ने भीषण युद्ध किया था, जिसमें निजाम को हार का सामना करना पड़ा था।
1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में प्रथम अखाड़े के रूप में हुई थी जूना अखाड़ा की स्थापना
13 अखाड़ों में नागा संन्यासियों का सबसे बड़ा अखाड़ा है जूना
5.50 लाख से अधिक नागा संन्यासियों की है फौज