सोरांव गांव में श्रीराम कथा के प्रथम दिन
मेजा, प्रयागराज(विमल पाण्डेय)। बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। यह बातें श्रीराम तीर्थ क्षेत्र नैमिषारण्य लखनऊ की कथावाचिका देवी राधिका प्रियंवदाजी ने सोरांव गांव में आयोजित सात दिवसीय संगीतमीय श्रीराम कथा के प्रथम दिवस उपस्थित श्रोताओं के समक्ष वाचन करते हुए कही। देवी राधिका प्रियंवदाजी ने आगे कहा कि इसका अर्थ है कि बिना सत्संग के व्यक्ति के भीतर विवेक (बुद्धि) की उत्पत्ति नहीं होती है तथा बिना राम कृपा के यह संभव नही है। राम कृपा का महात्म्य भी अनंत है।
कहा कि अगर स्वर्ग तथा उसके भी ऊपर जो लोक है उनके सुखो को तराजू के एक तरफ रख दिया जाए और एक तरफ एक घड़ी का सत्संग का सुख रखा जाए तो दूसरे पलड़े का भार बहुत अधिक होगा। सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए कहते है कि ‘एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आधी,’ ‘तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध’। अर्थात अगर हम संतो के संगति में एक घडी, आधी घड़ी या फिर उसकी आधी घड़ी भी बैठते हैं तो हमसे होने वाले करोङ़ांे पापो का हरण होता है। कहा कि इसलिए सत्संग करने से लाभप्रद होता है।
श्री राम की कहानी को सबसे पहले सर्वव्यापी गुरु भगवान शिव ने अपनी लौकिक समाधि में श्री राम की कहानी गढ़ी। श्री राम के किसी भी सांसारिक अवतार के प्रकट होने से पहले ही भगवान शिव ने रामचरितमानस (या मानस) की सुंदर कथा को अपने हृदय में संजो लिया था। इसलिए, भगवान शिव ने इसे किसी और के साथ साझा करने से बहुत पहले ही अपने भीतर गहराई से संजो लिया। ‘रामचरितमानस’ शब्द श्री राम के गौरवशाली कार्यों की झील का प्रतीक है, जो भगवान शिव के हृदय में बहती है। तत्पश्चात भगवान शिव ने अपने सर्वज्ञ ज्ञान और भाव के अनुसार ‘रामचरितमानस’ की रचना की और उसे अपने हृदय पटल पर अंकित कर लिया। अवसर पाकर उसी कल्प में भगवान शिव ने अपने हृदय से उत्पन्न श्री राम के अवतार और उनकी लीलाओं की दिव्य कथा अपनी प्रिय अर्धांगिनी शिवा को सुनाई। वह ‘अजा, अनादि, शक्ति, अविनाशिनी, सदा संभु अर्धांग निवासिनी’ है। शिव या आदि शक्ति ब्रह्माण्ड की माता हैं। अजन्मा, शाश्वत, आदि शक्ति, अक्षय, वह जो हमेशा भगवान शिव के शरीर के आधे भाग में निवास करती है।
बहे सत्संग का दरिया,
नहा लो जिस का जी चाहे,
करो हिमत लगा डुबकी,
नहा लो जितना जी चाहे,
बहे सत्संग का दरिया
कथा का शुभारंभ कथा का शुभारंभ वृंदावन धाम से पधारे आचार्य पंडित रविकृष्ण जी महाराज के मुखारविंद से श्रीराम कथा रूपी गंगा प्रवाहमान होती रही। बिना गुरु के भवसागर पार नहीं हो सकते रामकथा प्रेम सिखाती है। श्रीराम माता सबरी को नवधा भक्ति प्रदान किया। जापर कृपा राम की होई, तापर कृपा करें सब कोई। उन्होंने आगे संगीत के माध्यम से मेरे राघव तेरी नौकरी सबसे बढ़िया सबसे खरी। अंतिम में कथा का वाचन रामानंद आश्रम मध्य प्रदेश के पंडित राकेश पाठक ने श्रोताओं को संगीमय कथा सुनाकर झूमने को मजबूर कर दिया।
कथा का शुभारंभ करने से पहले पंडित अभिनाश द्विवेदी की धर्मपत्नी के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रोताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित कर कथा का शुभारंभ किया। कथा के यजमान कृष्ण कुमार उर्फ नंघेसर शुक्ल को पुरोहित कौशलेश मिश्र ने स्वस्ति वाचन कर पूजा कराया। कथा का संचालन मानस प्रचारिणी समिति के अध्यक्ष पंडित विजयानन्द उपाध्याय ने किया। उक्त अवसर पर पूर्व जिला पंचायत सदस्य लक्ष्मी शंकर उर्फ लल्लन शुक्ल, पूर्व प्रधान केशव प्रसाद शुक्ल, पूर्व उपप्रधान नागेश्वर प्रसाद उर्फ कलक्टर शुक्ल, मिथिलेश प्रसाद शुक्ल, आशीष शुक्ल, अवधेश शुक्ल, नारायण दत्त शुक्ल, विनय कुमार शुक्ल, विनयकांत शुक्ल, विजय कांत मिश्र, लालबहादुर कुशवाहा, भूपेंद्र शुक्ल, राजू शुक्ल, धर्मेंद्र शुक्ल उर्फ बबउ, राकेश शुक्ल उर्फ दादा, पप्पू शुक्ल सहित भारी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।