कुम्भनगर (राजेश सिंह)। शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि नवग्रह, चौसठ योगिनी, गंगा, यमुना, त्रिवेणी के साथ पृथ्वी का संपूर्ण वैदिक विधि-विधान से पूजन किया। इसके बाद शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के श्प्रश् और श्यागश् अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और इस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा।
प्रयागराज महाकुंभ मेला में श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज के शिविर के लिए आवंटित भूमि का पूजन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने किया। उन्होंने नवग्रह, चौसठ योगिनी, गंगा, यमुना, त्रिवेणी के साथ पृथ्वी का संपूर्ण वैदिक विधि-विधान से पूजन किया। इसके बाद शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के श्प्रश् और श्यागश् अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और इस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा।
इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहां वेणीमाधव रे रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहां बारह स्वरूप विद्यमान हैं, जिन्हें श्द्वादश माधवश् कहा जाता है। इस अवसर पर स्वामी प्रकृष्टानंद सरस्वती, स्वामी बृजभूषणानंद सरस्वती सहित श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अनेक श्री महंत, थानापति और संन्यासी के साथ साथ सुनील शुक्ल, विनोद त्रिपाठी, पंडित त्रयंबक द्विवेदी, श्री शंकराचार्य वेद महासंस्थानम् के बटुक आदि मौजूद रहे।