प्रयागराज (राजेश सिंह)। भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वायु सेना के एक विंग कमांडर के खिलाफ कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के हाथरस जिले के आरोपी की जमानत अर्जी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर इस तरह की टिप्पणी भारत के लोगों के बीच वैमनस्यता पैदा करते हैं। इस तरह के पोस्ट अभिव्यक्ति की आजादी नहीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सेना और पीएम के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करना, जिससे लोगों में वैमनस्यता फैले अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। कुछ लोगों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में गणमान्य व्यक्तियों के खिलाफ निराधार आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया का दुरुपयोग करना फैशन बन गया है। कोर्ट ने इस टिप्पणी संग भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और भारतीय वायुसेना के एक विंग कमांडर के बारे में कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट व वीडियो अपलोड करने के आरोपी को जमानत देने से इन्कार कर दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने अशरफ खान उर्फ नुसरत की जमानत अर्जी पर दिया। हाथरस के सासनी थाने में अशरफ खान के खिलाफ पीएम, सेना व विंग कमांडर के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में मुकदमा दर्ज है। आरोप है कि उसने अपनी फेसबुक आईडी पर पीएम, भारतीय वायुसेना, विंग कमांडर पर कई गंभीर आपत्तिजनक पोस्ट किए।
आवेदक के वकील ने दलील दी कि आवेदक निर्दाेष है और उसे झूठा फंसाया गया है। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि प्रधानमंत्री, विंग कमांडर के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट आवेदक ने नहीं किए थे। शासकीय अधिवक्ता ने जमानत याचिका का विरोध किया। कहा, सोशल मीडिया पर इस तरह के पोस्ट भारत के लोगों के बीच वैमनस्यता पैदा करते हैं और भारतीय सेना-वायुसेना के प्रति अनादर दिखाते हैं।
कोर्ट ने कहा कि संविधान प्रत्येक नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई व्यक्ति भारत के प्रधानमंत्री, भारतीय सेना और उसके अधिकारियों का अनादर करते हुए वीडियो अपलोड करे।