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मुलायम के गढ़ में अखिलेश के कौशल का इम्तहान

SV news

लखनऊ (राजेश शुक्ला)। समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव के लिए अब असली इम्तहान आया है। इसमें उनके सियासी कौशल की परीक्षा होगा। इस तीसरे चरण के चुनाव से साफ होगा कि  उनके अपने गढ़ में सपा क्या असर है। यह भी तय होगा कि सत्ता से बाहर रहते हुए वह भाजपा की चुनौती का सामना कर पाए या नहीं। इसी चुनाव में पता चलेगा कि शिवपाल यादव के साथ आने से सपा का कितना फायदा हुआ। खुद शिवपाल की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। 

तीसरे चरण के चुनाव वाले 16 जिलो में 59 सीटों पर चुनाव होना है। इनमें 7 जिले फिरोजाबाद, एटा, कन्नौज, औरया, इटावा, मैनपुरी व कानपुर देहात तक सपा का खासा असर माना जाता है। पिछली बार यहां की 59 सीटों में सपा को पिछली बार केवल 8 सीट मिलीं थीं। जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव सपा ने 37 सीट जीती थीं।  तीसरे चरण का यह रण इस मायने में खास है कि इसमें पश्चिमी यूपी की 19, मध्य यूपी की 27 व बुंदेलखंड की 13 सीटें आती हैं। इसी हिसाब से यहां मुद्दों का असर एक समान नहीं है। रणनीति दलों को रणनीति भी बदलनी पड़ रही है। 


मुलायम का गढ़ है यह इलाका

यह पूरा इलाका सपा का पुराना गढ़ माना जाता है। मुलायम सिंह यादव ने यहां अपने जनाधार की मजबूत जमीन तैयार की। यही कारण है कि एटा, कन्नौज, फिरोजाबाद, इटावा, मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा जीतती रही है। मुलायम अभी भी मैनपुरी से सांसद हैं। वह भले ही बहुत सक्रिय न हों, लेकिन उनकी शख्सियत असर डालती है। अब उनके बेटे अखिलेश यादव के लिए चुनौती है कि वह अपने गढ़ में पिछली बार  भाजपा से मिली शिकस्त का हिसाब  चुका पाते हैं या नहीं।

करहल में अखिलेश के लिए आना पड़ा मुलायम को 

समाजवादी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह को अब करहल में उतरना  पड़ा है। शिवपाल जसवंतनगर से खुद लड़ रहे हैं और भतीजे के लिए करहल में भी हैं। अब करहल में प्रचार कर रहे हैं। खुद शिवपाल यादव तो जसवंतनगर से लड़ रहे हैं लेकिन भतीजे अखिलेश यादव के लिए करहल में भी प्रचार कर रहे हैं। अखिलेश यादव का यह पहला विधानसभा चुनाव है। उन्होंने अपने इस इलाके का चुनाव काफी सोच समझ कर किया है। यह अलग बात है कि भाजपा ने उन्हें घेरने के लिए उन्हीं की पार्टी में रहे लेकिन अब भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा दिया है। अखिलेश यादव के लिए करहल ही नहीं पूरे इलाके में साइकिल की रफ्तार को बढ़ाना चुनौती है। उनके प्रदर्शन से पता चलेगा कि सत्ता से  बाहर रहते  हुए उन्होंने व उनकी पार्टी ने अपने इलाके में वोटरों तक अपने मुद्दों कितना ले जा पाए। 

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