मेजा, प्रयागराज (राजेश गौड़/दीपक शुक्ला)। गेंहू की बुवाई सर पर है, तो वहीं कालाबाजारी के चलते साधन सहकारी समितियों से डीएपी खाद नदारद है। मेजा तहसील स्थित साधन सहकारी समिति पिपरांव, लक्षन का पूरा में 460 बोरी डीएपी पहुंची है तो उरूवा विकास खंड स्थित उपरौड़ा, शुक्लपुर, मदरा मुकुंदपुर, रामनगर, उरुवा, औंता सहित अन्य समितियों पर अब तक खाद नहीं पहुंच पाई है। जबकि मिश्रपुर, परानीपुर में खाद की उपलब्धता है, लेकिन ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
इसी तरह मेजा विकासखंड में साधन सहकारी समिति तेंदुआ कला, साधन सहकारी समिति लक्षण का पूरा (मेजा), साधन सहकारी समिति नेवढ़िया, साधन सहकारी समिति कोहड़ार, साधन सहकारी समिति पथरा, साधन सहकारी समिति सुजनी-समोधा, साधन सहकारी समिति इटवा कला, साधन सहकारी समिति पिपरांव है।
मजे की बात तो यह है कि बाजार में डीएपी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है लेकिन वह भी नकली। किसानों का आरोप है कि जो खाद समितियों पर मिलनी चाहिए वह निजी दुकानों पर कैसे पहुंची। यही नहीं निजी दुकानों पर मिलने वाली खाद की बोरी तो असली है लेकिन बोरी के अंदर खाद नकली है जो ऊंचे दामों पर बेची जा रही है।
कैसे करते हैं किसान पहचान
किसानों ने बताया कि जो किसान खेती करता है वह असली, नकली की पहचान कर लेता है। किसान अपने तरीके से असली, नकली की पहचान करते है। जो डीएपी होता है उस बैग को खोल कर कुछ दाने मुट्टी में भर लेते हैं। मुट्टी में मुंह से फूंक मारते है। ऐसे में अगर इन दानों में नमी आ जाती है ओर दाने पिघलने लगते है तो वो असली डीएपी होता है। उन दानों में इस तरह की प्रक्रिया के बाद कोई बदलाव नहीं आता है तो उससे यह साबित होता है कि वह असली खाद नहीं है। ये किसानों का खुद का फार्मूला है जो अक्सर वो नकली, असली को देखने के लिए अपनाते है।