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मेजा की पहाड़ी पर घायल मिला विलुप्त गिद्ध पक्षी

 दो दशक बाद गिद्ध पक्षी मिलने से क्षेत्र में चर्चा



मेजा, प्रयागराज। (हरिश्चंद्र त्रिपाठी/श्रीकांत यादव)

मेजा की पहाड़ी पर दो दशक से विलुप्त गिद्ध पक्षी घायल अवस्था में मिला। सूचना पर पहुंचे वनकर्मियों ने गिद्ध को वन क्षेत्राधिकारी कार्यालय ले आए। चिकित्सकों ने पक्षीराज का स्वास्थ्य परीक्षण किया। वन क्षेत्राधिकारी अजय सिंह ने गिद्ध के खाने-पीने की व्यवस्था कराई। मेजा तहसील मुख्यालय से चार किलोमीटर पूरब जमुआ गांव के पास पहाड़ी पर सोमवार को दोपहर विशालकाय गिद्ध पक्षी घायल अवस्था में मिला। अनोखा पक्षी समझकर ग्रामीणों का मजमा लग गया। वनकर्मियों के मुताबिक गिद्ध के दोनों पंख तकरीबन पांच फीट लंबे हैं और वह घायल अवस्था में है। वह ठीक से बैठ नहीं पा रहा है।फिलहाल वन कर्मी शत्रुघ्न पांडेय ने बताया कि गिद्ध पक्षी का इलाज कराया गया है।स्वस्थ होने की पूरी उम्मीद है।दो दशक बाद गिद्ध पक्षी मिलने से लोगों में तरह - तरह की चर्चा शुरू हो गई है।वर्तमान समय में गिद्ध, नाम सुनते ही एक तस्वीर हमारे मन में उभर कर सामने आती है बड़े शरीर और पंखों वाला बड़ा सा एक पक्षी।अधेड़ उम्र के कई लोगों ने कभी न कभी कहीं न कहीं अपने आसपास इन पक्षियों को देखा ही होगा, परन्तु वर्तमान पीढ़ी ने सिर्फ किताबों या टी.वी .में इसके बारे में पढ़ा, देखा या सुना होगा, या शायद नहीं।जानकारी के मुताबिक गिद्ध, शिकारी पक्षियों की श्रेणी में आने वाले पक्षी हैं, जो वास्तविकता में शिकार नहीं करते, अपितु मृत पशुओं के अवशेषों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इसलिए इन्हें मुर्दाखोर कहा जाता है, और ये प्रकृति के माहिर सफाईकर्मी भी माने जाते हैं। पर्यावरण को संतुलन बनाये रखने के लिए हर प्राणी का प्रकृति में एक विशेष महत्व है, परन्तु गिद्धों की एक अलग ही भूमिका है। गिद्धों को खाद्य श्रृंखला में शीर्ष स्थान प्राप्त है।

 

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गिद्ध मृत प्राणियों के अवशेषों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तरह ये अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्यों की सहायता करते थे एवं कई तरह की गंभीर संक्रामक बीमारियों से मनुष्यों की सुरक्षा करते थे। अलग अलग समुदायों में गिद्धों का एक अलग सांस्कृतिक-धार्मिक महत्व है। रामायण में जटायु और सम्पाती नामक गिद्ध का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने सीता की खोज के दौरान वन में भगवान श्री राम की सेना की मदद की थी।एक जानकारी के मुताबिक नेपाल और तिब्बत में रहने वाले लामा अपने पुजारी के आग्रह पर अपने प्रियजनों के शवों को गिद्धों को खाने के लिए छोड़ देते है, पारसी समुदाय के लोग भी अपने प्रियजनों के गुजर जाने के बाद उनके शवों को ''टावर ऑफ़ साइलेंस'' में प्रकृति को समर्पित कर देते है, जिनका भक्षण गिद्धों द्वारा कर लिया जाता है।जिससे पर्यावरण संरक्षण में काफी मदद मिलती है।फिलहाल दो दशक बाद गिद्ध पक्षी का मिलना चमत्कार ही लग रहा है।

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