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चांद पर सफल लैंडिंग कर भारत ने रच दिया इतिहास, प्रयागराज के इन दो युवाओं का है दिमाग

SV News

प्रयागराज (राजेश सिंह)। चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की धरती पर कदम रखकर एक नया कीर्तिमान रच दिया है। विज्ञानी मानते हैं कि चंद्रयान दो की विफलता से सबक लेकर चंद्रयान तीन के लैंडर और रोवर में हुए बदलावों के बाद लैंडर सतह पर सुरक्षित तरीके से चंद्रयान 3 ने अपना काम पूरा किया।
इसरो के इस मिशन में प्रयागराज के कई लोग महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जेके इंस्टीट्यूट के पूर्व छात्र हरिशंकर गुप्ता और एमएनएनआइटी की पूर्व छात्रा नेहा अग्रवाल भी शामिल हैं।
चंद्रमा की सतह पर उतरने में चंद्रयान-दो बार की विफलता के बाद इसरो के विज्ञानियों ने चंद्रयान-तीन को सुरक्षित उतारने के लिए हिजार्डस डिटेक्शन मैकेनिकज्म तैयार करने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और इसरो के विज्ञानी हरिशंकर गुप्ता ने अहम भूमिका निभाई है। इस मैकेनिज्म के प्रयोग से चंद्रमा की सतह पर उतरने के दौरान लैंडर खुद ही क्रेटर या गड्ढे के खतरे को भांप लेगा और स्वयं सुरक्षित सतह को खोजकर लैंड करेगा।
चंद्रयान वन, टू और थ्री प्रोजेक्ट में शामिल इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में कार्यरत हरिशंकर गुप्ता की टीम ने ही सुरक्षित लैंडिंग के लिए नई सेंसर आधारित प्रणाली विकसित की थी। वहीं चंद्रयान मिशन में सिविल लाइंस की नेहा अग्रवाल भी जुड़ी है।
मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान एमएनएनआइटी से 2017 में इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्यूनिकेशन में बीटेक करने के बाद वह चंद्रयान परियोजनाओं से जुड़ गईं।
एमएनएनआइटी के इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्यूनिकेशन के प्रो. राजीव त्रिपाठी का कहना है कि चंद्रयान-तीन में कई बदलाव किए गए हैं। अभी तक यह काफी धीमी गति से चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ रहा है। एमएनएनआइटी के भी कई पूर्व छात्र इसरो में इस मिशन में जुड़े हैं। पूरी उम्मीद है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारत पहली बार सफल अभियान के लिए पहचाना जाएगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इनफारमेशन एंड कम्यूनिकेशन टेक्नोलाजी (आइसीटी) सेल के चेयरमैन प्रो. आशीष खरे कहते हैं कि उनके पढ़ाए छात्र मिशन की सफलता को लेकर आश्वस्त है। चंद्रयान को तेजी से चंद्रमा पर पहुंचाने के बजाय सुरक्षित तरीके से लैंड कराने को प्राथमिकता दी गई।
पश्चिमी देशों की तुलना में साफ्ट लैंडिंग पर काम किया गया। चंद्रमा पर ढाई सौ किलोमीटर की दूरी चंद्रयान ने एक सप्ताह में पूरी की और अगले 40 किलोमीटर तय करने में दो दिन का समय लगाया। इस मिशन की सफलता के साथ ही साफ्ट लैडिंग की प्रक्रिया सभी देशों द्वारा प्रयोग की जाएगी।

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