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ब्रिक्स सम्मेलन में पीएम मोदी के भाषण पर रहेगी दुनिया की नजर

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विदेश मंत्रालय की मीडिया ब्रीफिंग में विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से कोविड महामारी के कारण यह सम्मेलन वर्चुअली हो रहा था लेकिन इस साल यह प्रत्यक्ष तौर पर आयोजित किया जा रहा है..

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने के लिए मंगलवार सुबह जोहानिसबर्ग के लिए रवाना होंगे। दो दिवसीय दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के बाद प्रधानमंत्री यूनान के दौरे पर जाएंगे। अपने पहले यूनान दौरे के दौरान प्रधानमंत्री जहां अपने यूनानी समकक्ष से द्विपक्षीय वार्ता करेंगे वहीं भारतीय समुदाय को भी संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री की दो देशों की विदेश यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि ब्रिक्स बैठक से इतर सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय मुलाकातों के कार्यक्रम को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है। एक सवाल के जवाब में विनय क्वात्रा ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक अभी तय नहीं हुई है। हालांकि उन्होंने कहा कि ऐसे बड़े आयोजनों के दौरान जब विश्व नेता मिलते हैं तो उनके बीच कई मुद्दों पर बातचीत होती है।

विदेश मंत्रालय की मीडिया ब्रीफिंग में विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से कोविड महामारी के कारण यह सम्मेलन वर्चुअली हो रहा था लेकिन इस साल यह प्रत्यक्ष तौर पर आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि मेजबान देश दक्षिण अफ्रीका ने ब्रिक्स सदस्यों के अलावा बड़ी संख्या में अतिथि देशों को आमंत्रित किया है। उन्होंने कहा कि 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए भारत से एक व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी जा रहा है।

विनय क्वात्रा ने बताया कि जोहानिसबर्ग में अपने कार्यक्रम पूरे करने के बाद प्रधानमंत्री यूनान के प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर 25 अगस्त को आधिकारिक यात्रा के लिए यूनान जाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की यूनान यात्रा के दौरान दोनों पक्ष आपसी सहयोग, व्यापार और निवेश खंड का विस्तार, रक्षा और सुरक्षा साझेदारी, बुनियादी ढांचे के सहयोग, जहाज निर्माण उद्योग को गहरा और विस्तारित करने पर ध्यान देंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की इस यात्रा से आपसी हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों तथा हमारे द्विपक्षीय जुड़ाव को व्यापक और गहरा करने में मदद मिलेगी।

हम आपको बता दें कि इस संगठन में शामिल सदस्य देशों- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की कुल जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का 41 प्रतिशत है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इन देशों का 31.5 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार में 16 प्रतिशत योगदान है। इस बार का ब्रिक्स सम्मेलन इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसका सदस्य बनने के लिए 22 देशों ने आवेदन किया हुआ है और यह मुद्दा समूह के पांच सदस्य देशों के नेताओं के एजेंडे में है। भारत ने जहां संगठन के विस्तार पर सदस्य देशों से चर्चा की बात कही है तो वहीं दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने पहले ही कह दिया है कि उनका देश ‘ब्रिक्स’ समूह के सदस्यों की संख्या बढ़ाने का समर्थन करता है। उन्होंने कहा है कि अपने प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए ब्रिक्स को अन्य देशों के साथ साझेदारी करने की जरूरत है, जो उसकी आकांक्षाओं और दृष्टिकोण को साझा करते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूरोपीय देश यूनान की यात्रा से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को नई मजबूती मिलेगी साथ ही संबंध व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक भी बढ़ने की उम्मीद है। यह चार दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यूनान की पहली यात्रा होगी। मोदी जोहानिसबर्ग की अपनी यात्रा समाप्त करने के बाद 25 अगस्त को एथेंस की यात्रा करेंगे। वह प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोटाकिस के साथ व्यापक वार्ता करेंगे। मोदी और मित्सोटाकिस के बीच बातचीत के दौरान दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाने पर तो चर्चा होगी ही साथ ही दोनों पक्ष व्यापार, निवेश, रक्षा और लोगों के संपर्क जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने को लेकर भी वार्ता करेंगे।

देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी की यूनान की यात्रा महत्वपूर्ण है क्योंकि सितंबर 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के यूनान दौरे के बाद यह भारत के प्रधानमंत्री की पहली यात्रा होगी। यूनान के तत्कालीन प्रधानमंत्री एंड्रियास पापेन्द्रु ने तीन बार भारत का दौरा किया था। वह नवंबर 1984 में इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार के लिए, जनवरी 1985 में परमाणु निरस्त्रीकरण पर एक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए और जनवरी 1986 में गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में द्विपक्षीय राजकीय यात्रा पर आए थे। इसके अलावा, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जून में यूनान का दौरा किया था। यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने समग्र द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करने के तरीकों पर चर्चा की थी और कानून के शासन के मौलिक अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करने और संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का आह्वान किया था।

यूनान के दौरे पर जा रहे प्रधानमंत्री वहां भारतीय समुदाय को भी संबोधित करेंगे। माना जाता है कि यूनान में दस से बारह हजार भारतीय रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी विदेश यात्रा पर जाते हैं तो भारतीय समुदाय से मुलाकात करते हैं और भारतीय समुदाय के कार्यक्रमों में वह अवश्य जाते हैं। दरअसल विदेशों में रह रहे भारतीय समुदाय से संपर्क रखना मोदी सरकार की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा है।

उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले ब्रिक्स समूह के नेताओं की 22 अगस्त से दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में दो दिवसीय बैठक पर अमेरिका करीबी नजर बनाये हुए है। माना जा रहा है कि ब्रिक्स समूह ने हाल के वर्षों में अमेरिकी वैश्विक नेतृत्व के कुछ प्रमुख सिद्धांतों को चुनौती दी है। अमेरिका की विदेश नीति निर्माताओं का मानना है कि पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाये थे, ब्रिक्स समूह ने एक तरह से उसका विरोध करके यूक्रेन के संबंध में अमेरिका की रणनीति को कमजोर करने का काम किया है। अमेरिका की नजर ब्रिक्स पर इसलिए भी है क्योंकि इसका विस्तार किया जाना है और बड़ी संख्या में देशों ने सदस्यता के लिए आवेदन किया हुआ है। वर्तमान में ब्रिक्स समूह में पांच देश- रूस, ब्राजील, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। लेकिन यह समूह अब 23 औपचारिक सदस्यों के साथ संगठन का विस्तार करने पर विचार कर रहा है। यदि ब्रिक्स ईरान, क्यूबा या वेनेजुएला के आवेदन को स्वीकार करता है तो एक तरह से अमेरिका विरोधी बड़ा संगठन खड़ा हो जायेगा। साथ ही अमेरिका इसलिए भी चौकन्ना है क्योंकि अल्जीरिया और मिस्र जैसे अमेरिकी साझेदार भी ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं। हम आपको बता दें कि दक्षिण अफ्रीका ने इस बार शिखर सम्मेलन में अफ्रीका, कैरेबियाई क्षेत्र, दक्षिण अमेरिका, मध्य पूर्व, पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों को आमंत्रित करते हुए कहा है कि उनका देश एक खुली और नियम-आधारित वैश्विक शासन, व्यापार, वित्तीय एवं निवेश प्रणाली की वकालत करना जारी रखेगा।

अमेरिका को यह भी लगता है कि ब्रिक्स अमेरिका विरोधी एजेंडे पर चलने वाला ऐसा संगठन है जिस पर चीन हावी है। हालांकि ब्रिक्स ने सदैव अमेरिका विरोधी बयानबाजी से परहेज किया है। यहां तक कि साल 2009 में चीनी विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट रूप से कहा था कि ब्रिक्स को ‘‘किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध निर्देशित’’ नहीं होना चाहिए। वैसे अमेरिका का यह सोचना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि ब्रिक्स चीन द्वारा संचालित है, क्योंकि चीन कुछ प्रमुख नीतिगत प्रस्तावों को इस मंच से आगे बढ़ाने में असमर्थ रहा है। जबकि भारत ने ब्रिक्स सहयोग के सुरक्षा आयाम को मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभाई है और आतंकवाद विरोधी एजेंडे पर समर्थन भी जुटाया है।

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