आठ जिंदगियां खत्म, 13 को जेल, कई हो चुके बूढ़े
प्रयागराज (राजेश सिंह)। छोटी-मोटी बातों के आपसी झगड़े अदालतों में पहुंचकर जिंदगी को किस तरह तबाह करते हैं, यह मुकदमा इसी की एक बानगी भर है। 35 साल पहले मेड़ काटने को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच हुई मारपीट का मुकदमा लड़ते-लड़ते आठ जिंदगियां खत्म हो गईं। बुधवार को अदालत ने दोनों पक्षों के 13 लोगों को तीन-तीन साल कैद की सजा सुनाई। छह-छह हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया। दोषियों में एक 82 बरस की महिला भी है। तीन अन्य दोषी 75 की उम्र पार कर चुके हैं।
इलाहाबाद जिला न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश डॉ. लक्ष्मीकांत राठौर की अदालत ने फूलपुर थाना क्षेत्र के प्रतापपुर कलां गांव में 1988 में हुई मारपीट के मामले में यह फैसला दिया है। तब, मेड़ लेकर विवाद इतना बढ़ा था कि लाठी, बल्लम, गड़ांसा तक निकल आए। नातेदारी-पट्टीदारी भूलकर एक-दूसरे के परिवार के कुल 22 लोगों के खिलाफ नामजद तहरीर दी गई। बच्चों और महिलाओं तक को आरोपी बना दिया गया। इनके विरुद्ध मारपीट, विधि विरुद्ध जमाव, हत्या के प्रयास जैसी धाराओं में आरोप पत्र दाखिल किया गया।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान एक पक्ष के त्रिशूलनाथ व तारकनाथ और दूसरे पक्ष के पारसनाथ, केदारनाथ, लालता प्रसाद, अभय राज, रालबली व नंदलाल की मौत हो गई। 35 साल बाद अब एक पक्ष के बृजकली (82), देवता दीन (80), शेषमणि (54) व उदयराज (64) और दूसरे पक्ष के विशाल नारायण द्विवेदी (78), अनंतराम (76), हरिगोविंद प्रसाद (57), अशोक कुमार (63), कमला शंकर (65), बृजभूषण (61) व चंद्रभूषण (52) को तीन-तीन साल कैद की सजा सुनाई गई है।
फौजदारी मामलों के जिला शासकीय अधिवक्ता (डीजीसी) गुलाब चंद्र अग्रहरि बताते हैं कि मुकदमे की धाराएं समझौते वाली थीं। दोनों पक्ष चाहते तो यह मामला हाथों-हाथ खत्म हो सकता था। अदालत समझौते पर मुहर लगा देती तो किसी को सजा भी नहीं होती। समझौते के लिए कई बार दोनों पक्षों को बैठाया भी गया, लेकिन मन में कलुष इतना ज्यादा था कि कोई किसी की बात मानने को राजी नहीं हुआ।
अपर जिला शासकीय अधिवक्ता अखिलेश सिंह विशेन बताते हैं कि दोनों पक्ष एक दूसरे को सबक सिखाने पर इस कदर आमादा थे कि कैंसर से पीड़ित केदारनाथ अस्पताल से स्ट्रेचर पर लेटकर अदालत में गवाही देने के लिए आए थे। वह भी आरोपियों में से एक थे। गवाही के कुछ समय बाद उनकी मृत्यु भी हो गई थी।