मानस मंदिर में चल रहे सत्संग समारोह में कथा श्रोताओं की जुट रही भीड़
मेजारोड, प्रयागराज (श्रीकान्त यादव)। मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य भक्ति प्राप्त करना है, लेकिन अहंकार नष्ट हुए बिना भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है। ज्ञान के नगर जनकपुर और अभिमान के नगर लंका में शिव धनुष के रूप में हो या अंगद के पैर के रूप में हो अहंकारी लोगों से किसी का उठाना संभव नहीं है। अर्थात अहंकार के रहते भक्ति प्राप्त नहीं होती है। विनम्रता और समर्पण से ही भक्ति प्राप्त होती है। उक्त उद्गार मानस सम्मेलन श्री सिद्ध हनुमान मंदिर पांती, मेजारोड में चल रहे मानस सत्संग समारोह में मानस रत्न बांदा पंडित रामगोपाल तिवारी महाराज ने कही।
कथा को आगे बढ़ाते हुए महाराज डॉ रामसूरत रामायणी महाराज ने कहा कि दर्शन दो प्रकार के होते हैं। एक भगवान राम का दर्शन, दूसरा है रावण का दर्शन। अब हमें आपको चुनाव करना है कि हम आप किस दर्शन का चुनाव करते हैं। राम का या रावण का। यदि अपने जीवन में धन्यता लाना चाहते हैं तो हमें और आपको रावण को छोड़कर राम की ओर चलना पड़ेगा। जैसा कि विभीषण ने किया। "मैं रघुवीर शरण अब जाऊं"।
कथा को आगे बढ़ाते हुए वाराणसी से पधारीं नीलम शास्त्री जी ने कथा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। राजा जनक से लेकर चित्रकूट तक की कथा सुनाई। कथा सुनने के लिए मौजूद रहे सैकड़ों भक्तों ने अपने आप को धन्य महसूस किया। कथा के आयोजक पंडित नित्यानंद उपाध्याय व विजयानंद उपाध्याय ने धर्म प्रेमी सज्जनों से अधिकाधिक संख्या में कथामृत पान करने का आग्रह किया है। कथा श्रवण के दौरान मानस परिवार के साथ-साथ सैकड़ों भक्त मौजूद रहे।